42 शाखाओं वाला विश्व का एकमात्र पेड़ भारत में!

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पटोरी के तेतारपुर गाँव में 65 वर्ष का यह 42 शाखाओं वाला ताड़ का वृक्ष गाँव के ही प्रतिष्ठित व्यक्ति दारोगा राय वर्ष 1955 में अपने पुत्र राज कुमार को खोजते-खोजते कलकत्ता गये थे। वहीं एक ताड़ का फल मिला, जिसे उन्होंने घर के पास की जमीन में लगा दिया। वही यह ताड़ का वृक्ष है जो विश्व में आज अपनी तरह का एकमात्र वृक्ष है

ईश्वर करुण/चेन्नई/समस्तीपुर 

लेखक ईश्वर करुण, चेन्नई

विश्व के दुर्लभ वृक्षों में एक वृक्ष…ताड़ का अनूठा वृक्ष! ताड़ के वृक्ष में शाखाएँ उप शाखाएँ नहीं होती! कभी कभार ताड़ वृक्ष जुड़वा देखा गया है! लेकिन यह वृक्ष तो गजब का वृक्ष है शाखाएँ उप शाखाएँ इतनी जितनी कि आम के वृक्ष में भी न हों !…
आश्चर्य! एक दो शाखाएँ नहीं!…इसकी 42  शाखाएँ प्रशाखाएँ और उप शाखाएँ हैं! यह वृक्ष यूरोप अमेरिका आस्ट्रेलिया में होता तो विश्व के दुर्लभ वृक्षों के मानचित्र पर अंकित होता और हम सभी उसे सामान्य ज्ञान की पुस्तक में पढ़ रहे होते  और अपना ज्ञान बढ़ा रहे होते! बरसों पहले यह ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड’ में शामिल हो गया होता। ‘लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में इसका उल्लेख हो गया होता। विश्व भर के सैकड़ों वनस्पति शास्त्र के वैज्ञानिक इसके अध्ययन के लिए आ गए होते। ऐसे अजूबे देखने वाले पर्यटक विश्व भर से इकट्ठे हो गये होते।
किन्तु यह बिहार राज्य में समस्तीपुर जिले के मोहीउद्दीन नगर प्रखंड के सामान्य से एक गाँव…”तेतारपुर” में है! बताया जाता है कि वर्तमान में पटोरी अनुमंडल के मोहिउद्दीननगर स्थित तेतारपुर गाँव मे 65 वर्ष का यह 42 शाखाओं वाला ताड़ का वृक्ष गाँव के ही प्रतिष्ठित व्यक्ति दारोगा राय वर्ष 1955 में अपने पुत्र राज कुमार को खोजते-खोजते अपने अभिन्न मित्र सुरेंद्र ओझा जी के साथ कलकत्ता गये थे। वहीं एक ताड़ का फल उन्हें मिला, जिसे उन्होंने घर के पास की जमीन में लगा दिया। वही यह ताड़ का वृक्ष है जो विश्व में आज अपनी तरह का एकमात्र वृक्ष है।
पास के काॅलेज के छात्रों या फिर आसपास के लोगों में भी अधिकांश को यह पता नहीं है कि विश्व का एक अद्भुत वृक्ष उनके पास के गाँव में है।

42 शाखाओं वाला विश्व का एकमात्र पेड़ समस्तीपुर में!

हालांकि इस दुर्लभ वृक्ष के बारे स्थानीय पत्रकारों ने इसके संबंध में समाचार भेजे किन्तु वह राज्य स्तर पर भी सुर्खीयाँ बटोर नहीं सका। इस क्षेत्र के श्री ईश्वर करुण जो चेन्नै में रहते रहे हैं, उन्हें यह सूचना मिली तो वर्ष 2026 में बिहार जाने पर उन्होंने इस गाँव का दौरा किया और इस अद्भुत वृक्ष की जानकारी दूर दूर तक फैलाने में लग गए। इस की फोटोग्राफी की सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया में इसको लेकर प्रचारित प्रसारित किया! पहली बार इसका वीडियो सोशल मीडिया पर पहुँचा फिर वर्ष 2018 में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर इस गाँव के और आसपास लोगों के साथ एक जागरूकता रैली प्रातः काल निकाला। फिर इस वृक्ष के ही नीचे इस की साफ-सफाई करवा कर दारोगा राय जी के पुत्र , जिनके दरवाजे पर यह वृक्ष है, के सहयोग से एक भव्य समारोह का आयोजन किया और लोगों को इस दुर्लभ वृक्ष के बारे में जानकारी देते हुए इस संबंध में अपने अध्ययन का सारांश रखा। इस वृक्ष का सामूहिक अभिनंदन किया गया।
इस समारोह में महनार के डीसीएलआर श्री ललित कुमार सिंह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुए। महनार के सामाजिक /सांस्कृतिक क्षेत्र के श्री मेहता जी, श्री बैद्यनाथ पंडित प्रभाकर, सुधांशुजी मोहीउद्दीननगर के श्री राजेश सिंह जी, सुरेंद्र साह जी सहित बड़ी संख्या में आसपास के लोग और तेतारपुर के लोग भी उपस्थित थे। इस अवसर पर श्री ईश्वर करुण द्वारा क्षेत्र के युवा पर्यावरण सेवी श्री सुजीत कुमार भगत को “विश्व पर्यावरण दिवस सम्मान” देते हुए उन्हें शाल माला – पत्रम् पुष्पम् फलं तोयम प्रदान किया गया। साथ ही इसके संरक्षण और इसे पर्यावरण के मानचित्र पर लाने की जिम्मेदारी भी दी गयी।
आगत अतिथियों को ग्रामवासियों की ओर से दूध पिलाकर पर्यावरण संरक्षण के प्रति उत्साह प्रदर्शन किया गया। इसका समाचार राज्य के अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित हुआ। डीसीएलआर श्री ललित सिंह जी ने भी इस को राष्ट्रीय फलक पर लाने के लिए प्रयास किया गया। श्री ईश्वर करुण ने यहाँ बीबीसी हिन्दी के समस्तीपुर संवाददाता को भी इसके कवरेज के लिए भेजा। उनके प्रोत्साहन से इसके वीडियो भी बने और सोशल मीडिया पर आए।
विश्व पर्यावरण दिवस” पर इस वृक्ष को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाने हेतु दृढ़संकल्प लिया गया !अब भी श्री ईश्वर करुण इस वृक्ष को विश्व के दुर्लभतम वृक्ष के रूप में स्थापित करने के लिए लगे हुए हैं। इस वर्ष भी विश्व पर्यावरण दिवस पर उन्होंने भारत सरकार से अपील की है कि इस वृक्ष को “गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड” में सम्मिलित करवाने के लिए भारत सरकार उचित कदम उठाए। किन्तु इतने सब के बावज़ूद इस दुर्लभ वृक्ष को जो विश्वस्तरीय “पहचान” मिलनी चाहिए जो अब तक नहीं मिल सकी है।

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