एसी व कूलरों से कोविड-19 का कितना खतरा? बता रहे डॉ स्कन्द शुक्ल

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इन विषाणुओं का आकार लगभग 120 नैनोमीटर है; इन्हें फ़िल्टर करना इन एयर-कंडीशनिंग-तन्त्रों द्वारा असम्भव रहा होगा। हवाई जहाज़ों के वातानुकूलक तन्त्र के साथ भी यही स्थिति लागू होती है।

लेखक: डॉ स्कन्द शुक्ल/ लखनऊ के जाने माने डॉक्टर 

डॉ स्कन्द शुक्ल, लखनऊ

घरो में लगे निजी एसी व कूलरों से कारण कोविड-19 का कोई अतिरिक्त ख़तरा विशेषज्ञों के अनुसार नहीं है। किन्तु सार्वजनिक स्थलों पर इस्तेमाल किये जा रहे सेंट्रली एयरकंडीशनिंग यूनिटों से यह विषाणु फैल सकता है, अगर उनकी परिधि में कोई कोविड-19-संक्रमित व्यक्ति मौजूद हो। भारत में जहाँ लॉकडाउन के बावजूद बैंक और अनेक सरकारी संस्थान काम कर रहे हैं , वहाँ यह बात बड़े महत्त्व की हो जाती है।

विषाणु खाँसने-छींकने-थूकने-बोलने के कारण निकली नन्ही बूँदों से सीधे एक व्यक्ति से दूसरे में फैल सकता है अथवा आसपास के सामानों पर जमा होने के बाद उन्हें छूने से भी। ऐसे में सेंट्रली एयरकंडीशनिंग सिस्टम में रीसायकिल हो रही हवा में यदि किसी रोगी के विषाणु-कण पहुँच गये, तब संक्रमण दूसरे स्वस्थ लोगों में फैल सकता है।

यद्यपि एयर-कंडीशनर व सार्स-सीओवी 2 विषाणु-प्रसार पर और शोध की आवश्यकता है, यह भी सत्य है। इस बाबत 3,700 यात्रियों से भरे हुए डायमंड प्रिंसेस नामक यात्री-क्रूज़ से सीखे गये सबक महत्त्वपूर्ण हैं, जिसे जापान के योकोहामा शहर के तट पर लॉकडाउन में डाला गया था। इस क्रूज़ से एक व्यक्ति हॉन्गकॉन्ग में उतरने के बाद कोविड-पॉजिटव पाया गया था। अमेरिका की संस्था सेंटर्स फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एन्ड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार इस जहाज़ के 46.5 प्रतिशत लोग टेस्टिंग के दौरान पॉज़िटिव पाये गये थे। क्रूज़ के भीतर अनेक सतहों पर उसे खाली करा लेने के बाद भी लगभग सत्रह दिन बाद तक विषाणु-कणों की उपस्थिति पायी गयी थी।

वैज्ञानिकों का यह भी मानना रहा कि इस क्रूज़ का एयर-कंडीशनिंग-तन्त्र इस प्रकार का नहीं था कि वह विषाणु-कणों को फ़िल्टर कर पाये और इस कारण यह बीमारी जहाज़ के भीतर सभी केबिनों में फैल गयी। एयर-कंडीशनिंग के दौरान बाहर से वायुमण्डल की कुछ हवा लेकर उसके साथ भीतर की कुछ हवा मिलायी जाती है। इस तरह से किन्तु 5000 नैनोमीटर से छोटे कणों को छानकर अलग नहीं किया जा सकता। इन विषाणुओं का आकार लगभग 120 नैनोमीटर है; इन्हें फ़िल्टर करना इन एयर-कंडीशनिंग-तन्त्रों द्वारा असम्भव रहा होगा। हवाई जहाज़ों के वातानुकूलक तन्त्र के साथ भी यही स्थिति लागू होती है।

अब-तक प्राप्त जानकारियों के अनुसार घरों के विंडो या स्प्लिट वातानुकूलक यन्त्रों ( एसी ) का प्रयोग किया जा सकता है। घरों के निजी वॉटर-कूलरों के साथ कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। किन्तु सेंट्रल एयरकंडीशनिंग के विषय में अधिक सावधानी रखने की ज़रूरत है।

भारत में अभी तक तो लॉकडाउन के कारण अधिकांश ऐसे संस्थान बन्द हैं, जहाँ इस तरह के वातानुकूलन का प्रयोग होता है। किन्तु बैंकों व अन्य दफ़्तरों को, जहाँ बाहर से लगातार लोगों का आना-जाना लगा रहता है, यथासम्भव एसी-इंजीनियरों से इस विषय पर अपने-अपने संस्थान के अनुसार चर्चा कर लेनी चाहिए।

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