धंधा घटा तो जीएसटी से भी वसूली घटी

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बजट में केन्द्र सरकार ने अनुमान लगाया कि 2017-18 के लिए जीएसटी राजस्व 4.44 लाख करोड़ रुपए होगा। अगले वित्त वर्ष में यह राशि 11.5 प्रतिशत बढ़कर 7.43 लाख करोड़ होने की उम्मीद है। पर मौजूदा हालात को देखते हुए सरकार को लग रहा है कि जीएसटी राजस्व में 50,000 करोड़ रुपए की कमी रह जाएगी।

संजय कुमार सिंह/वैशाली, गाजियाबाद
सरकार के तमाम दावों के बावजूद जीएसटी से वसूली कम हुई है। फरवरी में यह राशि 85,174 करोड़ रुपए रही जबकि जनवरी में यह राशि 86,703 करोड़ रुपए थी। खास बात यह है कि सिर्फ 69 प्रतिशत ऐसेसी ने ही रिटर्न दाखिल किए हैं। इस साल के बजट में सरकार ने अनुमान लगाया है कि 2017-18 के लिए जीएसटी राजस्व 4.44 लाख करोड़ रुपए होगा। अगले वित्त वर्ष में यह राशि 11.5 प्रतिशत बढ़कर 7.43 लाख करोड़ रुपए हो जाने की उम्मीद है।
पर मौजूदा हालात को देखते हुए सरकार को लग रहा है कि जीएसटी राजस्व में 50,000 करोड़ रुपए की कमी रह जाएगी। वित्त सचिव हंसमुख अधिया ने यह जानकारी दी है। इस संबंध में आज के टेलीग्राफ में प्रकाशित खबर देखिए। खबर के साथ प्रकाशित तालिका के मुताबिक जीएसटी वसूली सितंबर 2017 से लगातार कम हो रही है। सितंबर में यह राशि 92,150 करोड़ रुपए थी जो अक्सूबर में 83,364 नवंबर में 80,808 दिसंबर में 86,703 जनवरी 2018 86,318 और फरवरी में 85,174 करोड़ रुपए रही।
 
सरकार को उम्मीद है कि एक अप्रैल से ई-वे बिल लागू होंगे और टैक्स चोरी रोकने के अन्य उपाय किए जाएंगे तो कर वसूली बढ़ेगी। पर अभी तक टलता रहा ई-वे बिल लागू हो जाए तो उसका अनुपालन कम मुश्किल नहीं है। सरकार कहती है कि कर चोरी रोकने के उपायों से वसूली बढ़ती है पर जीएसटी और अब ई-वे बिल का अनुपालन इतना मुश्किल है कि काम-धंधा ही चौपट हो रहा है। छोटे कारोबारी परेशान है उसकी चिन्ता किसी को नहीं है और मुमकिन है वसूली इसीलिए कम हो रही हो। यह भी संभव है कि गुजरात चुनाव से पहले जीएसटी दरों में की गई भारी कमी का भी असर हो। पर सरकार अभी प्रयोग कर रही है। ईमानदारी के दावों के बीच चुनाव जीतना ज्यादा जरूरी है।
 
आप जानते हैं कि जीएसटी में रिटर्न फाइल करना ही समस्या है। कायदा तो हर महीने रिटर्न फाइल करने का है पर हो नहीं पा रहा है और इसमें सबसे मुख्य कारण रहा है जीएसटी साइट का बैठ जाना। इसमें छूट दी गई और जुर्माने में भी राहत दी गई पर सिर्फ 69 प्रतिशत रिटर्न दाखिल होना जीएसटी की सफलता के दावों पर बहुत कुछ कहता है। कहने की जरूरत नहीं है कि मजबूरी में लोगों ने जीएसटी पंजीकरण तो करा लिया पर रिटर्न फाइल करना मुश्किल, गैरजरूरी (उनके हिसाब से) और अव्यावहारिक होने के कारण दाखिल नहीं हो रहा है।
दूसरी ओर, जीएसटी के कारण कितने बैंक खाते बंद हैं, कारोबार कम हो गए हैं और लोगों को परेशानी हो रही है सो अलग। उसका कोई हिसाब नहीं है।  सरकार ने जीएसटी के जो फायदे बताये वो इस लायक है कि नहीं कि इतना घाटा उठाया जाए – यह कैसे तय होगा? उद्योग धंधं बंद हो रहे हैं, राजस्व कम आ रहा है, लोग परेशान हैं पर सरकार को लाभ दिख रहा है।
(लेखक जनसत्ता के पूर्व वरिष्ठ पत्रकार  हैं)

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