जब मैं भूस्खलन में बह गए लोगों की रिपोर्टिग के लिए चीन बोर्डर पहुंचा

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मालपा भूस्खलन भारत में अब तक के आये सबसे खराब भूस्खलनों में से एक था। यह भूस्खलन उत्तरांचल के पिथौरागढ़ के पास पढ़ते मालपा गांव में हुआ था। 1998 में यात्रा के मालपा पड़ाव में जबरदस्त भूस्खलन हुआ। इस हादसे में 60 यात्रियों सहित 221 लोगों ने जान गवां दी।

पत्रकारिता का सफरनामा-3, लेखक राय तपन भारती, वरिष्ठ पत्रकार

सन 1998 से 1995 तक महाराष्ट्र के दैनिक लोकमत समाचार में चीफ रिपोर्टर रहने के बाद मैं 1996 की शुरुआत में दिल्ली चला आया। संपादक Nisheeth Joshi जी ने मुझे दैनिक राष्ट्रीय सहारा के लिए चुना और जल्द ही मुझे एनसीआर दिल्ली की खबरों की जिम्मेवारी मिल गई। जोशीजी आज भी मेरे गुरु हैं और वे आजकल देहरादून में पंजाब केसरी ग्रुप का एक अखबार निकालने की तैयारी कर रहे हैं। राष्ट्रीय सहारा अखबार में मेरा मुख्य काम रिपोर्टरों की खबरों को तराशना और फोटो का चयन था, इस काम के लिए हमारी टीम में आधे दर्जन पत्रकार साथी सहयोगी थे। संपादन के साथ-साथ मैं रिपोर्टिंग का भी मौका खोजता रहता था।
इस अखबार में मुझे एक अच्छा काबिल पत्रकार दोस्त मिला- विजय प्रकाश श्रीवास्तव, जो अब मेरे पड़ोसी भी हैं। शाम 6 से रात 2 बजे तक प्रेस में खबरों का संपादन कर पेज तैयार करवाता था और दिन में अपने वाहन से दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में घूमता था। इस दौरान कुछ रिश्तेदारों-मित्रों के घर भी गया। नागपुर में तीन-चार महीने तक परिवार रुक गया इस वजह से मुझे दिल्ली एनसीआर का भूगोल समझने का अच्छा अवसर मिला जो रिपोर्टरों की खबरों तराशने में बहुत काम आया।
विभांसु दिव्याल जी जब इस अखबार के संपादक बने तो उत्तरांचल में चीन की सरहद के निकट पिथौरगढ़ के मालपा में जबरदस्त भूस्खलन हुआ। खबर आई कि 18 अगस्त 1998 को तड़के 3 बजे मशहूर नृत्यांगना प्रोतिमा बेदी, जो फिल्म अभिनेता कबीर बेदी की पहली पत्नी थीं, समेत 60 मानसरोवर यात्री मालपा के भूस्खलन में दब गई हैं। मुझे अंदाजा लग गया कि यह बड़ी राष्ट्रीय आपदा है। संपादक ने विचार-विमर्श के बाद मुझे दोपहर में ही चीन की सरहद के करीब मालपा जाने की इजाजत दे दी। मैं पहले बरेली पहुंचा और फिर वहां से पिथौरागढ़। यह मालपा का जिला मुख्यालय है इस वजह से सारे राहत-आपरेशन यहीं से चल रहे थे। दिल्ली से पिथौरागढ़ करीब 522 किलोमीटर दूर है और बरेली से वहां जाने का रास्ता बेहद दुर्गम है। होटल में मैंने पिथौरागढ़ में गर्वमेंट पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज के लेक्चरर पांडेयजी को बुलाया और उन्हीं के साथ शहर में एसडीओ-डीएम दफ्तर जाकर मालपा भूस्खलन हादसे की सूचनाएं इकट्ठी कर दिल्ली भेजी।
मालपा भूस्खलन भारत में अब तक के आये सबसे खराब भूस्खलनों में से एक था। यह भूस्खलन उत्तरांचल के पिथौरागढ़ के पास पढ़ते मालपा गांव में हुआ था। 1998 में यात्रा के मालपा पड़ाव में जबरदस्त भूस्खलन हुआ। इस हादसे में 60 यात्रियों सहित 221 लोगों ने जान गवां दी। इसके बाद मालपा में यात्री पड़ाव नहीं डालते, अब केवल दिन का भोजन करते हैं।
कैलास मानसरोवर यात्रा हर वर्ष जून में शुरू होती है। पैदल यात्रा के दौरान बरसात के कारण भूस्खलन का खतरा बना रहता है। 1998 तक इस यात्रा का पड़ाव पिथौरागढ़ जनपद का मालपा क्षेत्र भी होता था। जुलाई 1998 में यात्रियों का तीसरा जत्था, जिनकी संख्या 60 थी, मालपा में कुमाऊं मंडल विकास निगम के पर्यटन गृह और आसपास के घरों में रुका था। इस दल के साथ वहां करीब दर्जन भर से अधिक खच्चर स्थानीय दुकानदार और पोर्टर सहित 221 लोग रुके थे। अ‌र्द्धरात्रि को भयानक आवाज के साथ विशाल पहाड़ी भरभरा कर मालपा के ऊपर गिर गई। भूस्खलन इतना भयानक था कि वहां ठहरे 221 लोग पहाड़ी के नीचे दफन हो गए। मानसरोवर यात्रा में आज तक का सबसे बड़ा हादसा था। लगभग दो महीने तक यहां आपदा कार्य चला। भूस्खलन की वजह से शारदा नदी की तेज धारा में बह गई कुछ ही लाशें मिल पाई। वर्ष 1998 के बाद मालपा पड़ाव में रात्रि विश्राम बंद कर दिया गया।
महज 49 साल की उम्र में प्रोतिमा बेदी के इस दुनिया से चले जाने से भी अधिक विस्मयकारी लगा कि उनके तलाकशुदा पति कबीर बेदी मालपा नहीं आए। प्रोतिमा ने एक साल पहले ही अपने बेटे सिद्धार्थ को खो दिया था जब उसने अमेरिका में पढ़ाई के दौरान खुदकुशी कर ली।
प्रोतिमा बेदी, दिल्ली में पैदा हुई थीं और तीन बेटियों तथा एक बेटे के साथ चार बच्चों के परिवार में दूसरी बेटी थीं। उनके पिता, लक्ष्मीचंद गुप्ता एक व्यापारी थे जो हरियाणा के करनाल जिले के एक बनिया परिवार से संबंधित थे और उनकी मां रेबा बंगाली थी। अपनी शादी के विरोध के कारण उनके पिता को घर छोड़ना पड़ा, उसके बाद उन्होनें दिल्ली में काम करना शुरू किया, जहां उनकी पहली बेटी मोनिका के बाद प्रोतिमा का जन्म हुआ, प्रोतिमा के जन्म के बाद बिपिन और आशिता का जन्म हुआ।
1953 में, उनका परिवार गोवा तथा बाद में 1957 में मुंबई चला गया। नौ साल की उम्र में, उन्हें कुछ समय के लिए अपने पिता की बहन के पास रहने के लिए करनाल भेजा गया, जहां उन्होनें स्थानीय स्कूल में अध्ययन किया। वापस लौटने पर, उन्हें पंचगनी में लड़कियों के बोर्डिंग स्कूल, किमिंस हाई स्कूल भेजा गया जहां उन्होनें प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, बाद में उन्होनें सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज, मुंबई (1965-67) से स्नातक की उपाधि ली।
जिला प्रशासन ने स्थानीय गोताखोरों और कुलियों की मदद से प्रोतिमा की तलाश की। मुझे आज भी याद है कि नदी में मिले हैंड बैग और कपड़े से प्रोतिमा बेदी के शव की शिनाख्त भूस्खलन के सातवें दिन बाद हो सकी। मालपा जाने के लिए मैं बेचैन था, वहां कोई जीम नहीं जा रही थीष तब इंडियन एयरफोर्स ने अपने हेलीकॉप्टर से दिल्ली के अन्य पत्रकारों के साथ मुझे मालपा ले गई तो देखा कि वहां हादसे का भयानक मंजर था। नदी की तेज धारा से मैं भयभीत हो गया, शाम होने के पहले हमे पिथौरागढ़ पहुंचा दिया गया। एक सप्ताह तक पिथौरागढ़ में रहने के बाद मैं दिल्ली वापस आया और अगले दस दिनों तक मालपा हादसे की सीरिज लिखता रहा जिसकी पेपर कटिंग आज भी मेरी निजी लाइब्रेरी में है।
Comments on facebook:
Govinda Sharma: Nice Information..and Valuable Task Done by You..Soo Impressive and Proud Feeling..
 
Poornima Patil: रोचक जानकारियों के साथ रिपोर्टर की इच्छाशक्ति लगन और मेहनत की दास्तां बयां पसंद आया। अगली कड़ी का इंतजार है..
 
Rajeeb Kumar Roy: मैं मालपा मे ट्रेकिंग कर के गया वहां से १०० km और आगे, डर लगता है वहां से गुजरने में.
This is the trekking route to om parvat and adi kaisah and kailash mansarovar, I went for adi kaishash a total of 156 km trekk on this route. It was some extreme experience.
 
Sanjeev Ray: अच्छी जानकारी।
 
Rakesh Jawa: साहसिक रिपोर्ट.
 
Nisheeth Joshi: मालपा में मिट्टी का पहाड़ है…. सबसे कच्चे पहाडों में शामिल हैं…आपकी यह रिपोर्टिंग रोमांचक और बहुत कुछ सिखाने वाली रही…
 
Deorath Kumar: साहसिक पत्रकारिता का वो समय आपके मानसपटल पर आज भी अंकित है
 
Alka Kaushik: उस रिपोर्टिंग सीरीज़ को पढ़ने या तो मैं आपके घर या पढ़वाने आप मेरे घर पधारें
 
Srikant Ray: बहुत ही रोचक जानकारी। आप के पत्रकारिता का सफरनामा किस्तों में पढ़ कर अच्छा लग रहा है।
Amod Kumar Sharma: रोचक यात्रा व्रितांत है।
 
Shyam Kishore Choubey: तपन जी, आरम्भिक दौर से ही मजे हुए पत्रकार हैं। इनकी लेखनी का तो कहना ही क्या। बहुत सुंदर।
 
Sharma Nirmala: दुखद घटना बहुत सुंदर लिख रहे हैसर जी
 
Roy Manoranjan Prasad: उत्कृष्ट बृतांत 👍
 
Raghvendra Sharma Tharet: सर जी आपकी पत्रकारिता का सफरनामा आज पहिली बार पढा ऐसा लगा जो भी हादसा हुआ उसका मै गबाह बन गया लेखन के लिए धन्यवाद
 
Bharti Ranjan: अनुभव और अहसास का संगम
 
Sanjeev Tiwari: excellent narration, sir

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