सचिन अ बिलियन ड्रीमज़

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एक इंसान जो लाखों भारतीयों की उम्मीदों पर 200 टेस्ट मैचों और 463 वन डे इंटरनेशनल में खरा उतरा, और इसके बावजूद भी जब 16 नवंबर 2013 को भीड़ से खचाखच भरे वानखेड़े स्टेडियम में उसने अपनी आखरी स्पीच दी तो वहां खड़ा एक भी शख्स ऐसा नहीं होगा जिसने मन में उसे दोबारा पिच पर देखने की प्रार्थना ना की हो।
प्रियंका राय/ खेल मामलों की एक्सपर्ट

जी हां, आज मैं सचिन तेंदुलकर की ही बात कर रही हूँ।

आप सोचते होंगे अचानक सचिन ही क्यों??

वजह है हाल ही रिलीज़ हुयी उनकी बायोग्राफिकल फ़िल्म सचिन: अ बिलियन ड्रीमज़

सचिन अ बिलियन ड्रीमज़ सिर्फ एक बायोग्राफिकल फ़िल्म नहीं बल्कि ग्लोबल ऑडियंस के लिए बनाई गयी एक बेहतरीन फ़िल्म है।

यह सिर्फ एक स्पोर्टिंग आइकन की कहानी नहीं है। फिल्म में कई फ्लैशबैक दृश्य हैं, जो ’90 के दशक में सेट किए गए हैं, जो आपको उस समय की याद दिलाते हैं जब देश कई प्रकार के मुद्दों का सामना कर रहा था और ऐसे में एक गुमनाम युवा मुंबईकर लाखों भारतीयों के लिए आशा का प्रतीक बन गया।

लेकिन … क्या कई बार आशा बोझ बन सकती है? 1996 के विश्व कप के सेमीफाइनल में, ईडन गार्डन में भारत की हार के रूप में आप खुद को इस सवाल का सामना करने से ना तब बचा पाये होंगे ना यह फ़िल्म देखने के दौरान बचा सकते हैं। सचिन के बाद खिलाडियों का ताश के पत्तों की तरह धड़ाधड़ गिर जाना ने और इस तरह उस मैच में भारत की हार ने तेंदुलकर पर टीम की निर्भरता को सारे देश के सामने उजागर कर दिया।

फ़िल्म में सचिन ने अपने जीवन की घटनाओं को अविश्वसनीय स्पष्टता के साथ बताया है। उन्होंने कप्तान के रूप में हटाए जाने पर कैसा महसूस किया था, वह उनके जीवन का एक बहुत निराश हिस्सा है। उनकी सजा का यह एहसास उनकी बातों के माध्यम से दर्शकों को तब होता है जब वह कहते है कि कप्तानी उनसे ली जा सकती है- लेकिन क्रिकेट नहीं।

फिल्म सचिन के संघर्षपूर्ण और शानदार दोनों ही जीवन के ज्यादातर पहलुओं पर फोकस करती है। उनके जीवन की कठिन अवस्था को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया गया हैऔर कहानी हर समय, कुरकुरी और मुखर है।

महान व्यक्तियों पर अपेक्षाओं का दबाव कैसा होता है ये बात फ़िल्म अच्छी तरह से समझाती है, लेकिन फिल्म इसके अलावा भी एक और बात की ओर इशारा करती है, यह सब इतना आसान नहीं है। एक संघर्षरत राष्ट्र की आशा होने के साथ साथ दुनिया के लिए तैयार एक देश के प्रतीक बनने के लिए, सचिन ने एक लंबे और कठिन पथ को पार किया है। सचिन ने अपने शहर मुंबई में अपने करियर की शुरुआत की और अपने ही शहर में विश्व कप जीता। आप जब यह देखते हैं तो आपको एहसास होता है की जैसे उनके क्रिकेट जीवन का चक्र संपूर्ण हो रहा है।

एक दर्शक के रूप में, आप जिस तरह से इस फिल्म को कई क्षणों तक जीते हैं, और पृष्ठभूमि में ए आर रहमान का उत्साही संगीत सचिन सचिन बजता है तब जा कर आप समझते हैं की सचिन: अ बिलियन ड्रीमज़ आप के शहर के एक थियेटर में आपके द्वारा अच्छी तरह बिताई गई एक शाम है।

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