मांझी की परेशानी बढ़ा रही है सुनने आ रही भीड़

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biharगर्मी का मौसम होने के बावजूद जिला मुख्यालयों में हो रही मांझी की सभाओं में उनकी बिरादरी यानी मुसहर ही नहीं रविदास और पासवान लोगों की भी ठीकठाक उपस्थिति बिहार में सत्ता की लड़ाई की एक नई राजनीतिक गोलबंदी का संकेत दे रही है विधानसभा चुनाव में अभी तीन-चार महीने की देर है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की अब तक हो चुकी लगभग 40 जनसभाओं में सुनने आ रही भीड़ ने राजद और जदयू, दोनों पार्टियों के नेतृत्व की पेशानी पर बल ला दिया है। पनी सभाओं में अपने-अपने साधनों से आ रही पांच से सात हजार की भीड़ मांझी को जहां उत्साहित कर रही है, वहीं लालू प्रसाद और नीतीश कुमार को चितिंत भी कर रही है। मांझी की अब तक बगहा, बेतिया, मोतिहारी, दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, भागलपुर, रोहतास, बिक्रमगंज, औरंगाबाद, नवादा, जमुई, बिहारशरीफ में बड़ी सभाएं हो चुकी हैं। मुजफ्फरपुर, गया और सहरसा की सभाओं में भारी भीड़ उमड़ी थी। जदयू का जब तक राजद से चुनावी गठबंधन का औपचारिक ऐलान नहीं हुआ था, मांझी चुनाव में किसके साथ जाएंगे, यह कयास लग रहे थे। मांझी के बयान भी भ्रम पैदा कर रहे थे।

यही वजह थी कि राजद के लोग भी उनकी ओर उम्मीद भरी नजरें गड़ाए थे। नीतीश से गठबंधन में देरी का एक कारण यह भी था। लालू प्रसाद जब पूरी तरह से आश्वस्त हो गए कि मांझी उनके साथ नहीं आएंगे तभी जाकर उन्होंने नीतीश का नेतृत्व स्वीकारा। अब जब लालू और नीतीश के बीच तालमेल का औपचारिक एलान हो गया है, मांझी के लिए भी भाजपा से चुनावी तालमेल करने या अकेले मैदान में उतरने के सिवाय कोई विकल्प नहीं रह गया