मेट्रो सिटीज में Live-in Relationship के बढ़ते ट्रेंड के पीछे हैं ये 8 वजहें

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लाइफस्टाइल डेस्कः शादी का डिसीजन लेना वाकई बहुत ही मुश्किल टास्क होता है, क्योंकि आपका एक डिसीजन पहले की जिम्मेदारियों को जस्ट डबल कर देता है। इसे निभा पाना आसान नहीं होता। बहुत सारी चीजें मैनेज करनी होती हैं तो बहुत सारी इग्नोर। प्रॉब्लम्स की शुरुआत तब होती है, जब शादी अरेजन्ड हो, क्योंकि यहां दोनों ही एक-दूसरे की आदतों से अनजान होते हैं। इन्हीं इश्यूज़ को खत्म करने के लिहाज से मेट्रो सिटीज में लिव-इन रिलेशनशिप का ट्रेंड शुरू हुआ जो पार्टनर को जानने और समझने का एक बहुत ही अच्छा जरिया है। लिव-इन में रहने के और क्या फायदे होते हैं, ये जानना भी बहुत ही जरूरी है।
1. जिम्मेदारियों का बोझ नहीं
लिव-इन रिलेशनशिप की शुरुआत ही शायद इसे ही ध्यान में रखकर हुई होगी कि वहां जिम्मेदारियों का कोई बोझ नहीं होगा। शादीशुदा लोगों की तरह उन पर घर के किसी काम को करने का प्रेशर नहीं होगा। आए दिन होने वाले फैमिली फंक्शन्स, पूजा-पाठ में जाने के झमेले भी नहीं होंगे। कभी चाची किसी बात का बुरा मान गई तो कभी बुआ, जैसी बातों की कोई जगह नहीं होगी। समाज क्या सोचेगा और कहेगा, इसकी भी टेंशन नहीं होगी, क्योंकि लिव-इन में रहने का फैसला ही समाज को पीछे छोड़ने की बात होती है।
2. फाइनेंशियली टेंशन फ्री
लिव-इन का एक और फायदा है कि इसमें पैसों का हिसाब-किताब बराबर होता है। अपने पैसे कमाना और खुद पर उड़ाना। घर के किराए से लेकर इलेक्ट्रिसिटी के बिल तक में शेयरिंग की जा सकती है। यह शादीशुदा कपल्स के बीच मुश्किल है, क्योंकि वहां जरूरी नहीं कि पत्नी भी कमाती हो। ज्यादातर मामलों में पत्नियां पतियों के ऊपर ही डिपेंड होती हैं। गर्लफ्रेंड और ब्वॉयफ्रेंड के बीच तो हमेशा ब्वॉयफ्रेंड की ही जेब ढीली होती है।
3. शादी के पहले का डेमो
किसी अनजान शख्स के साथ पूरी जिंदगी गुजारने के लिए उसे थोड़ा-बहुत तो जानना जरूरी है और लिव-इन रिलेशनशिप इसकी पूरी आजादी देता है। लव मैरिज हो या अरेन्ज, किसी भी रिश्ते में बंधने से पहले उसे परखा जा सकता है इस लेटेस्ट ट्रेंड के माध्यम से। वैसे, अब लिव-इन को एक तरह से समाजिक मान्यता भी मिल गई है, लेकिन अभी मेट्रो सिटीज में ही। मंझोले और छोटे शहरों में लिन-इन रिलेशन के बारे में सोचा नहीं ज सकता। बहराहल, चौबीसों घंटे साथ रहने पर बहुत सी ऐसी आदतों के बारे में पता चलता है जो कभी मेल खाती हैं जो कभी नहीं। इन्हीं आदतों-जरूरतों को जानने-पहचानने का पूरा मौका देता है लिव-इन रिलेशनशिप।
4. रिस्पेक्ट बरकरार
रिस्पेक्ट की वहां कोई गुंजाइश नहीं होती जब महिला-पुरुष, दोनों को ही एक-दूसरे की कमियां पता हो। साथ ही, कोई भी एक शख्स दूसरे पर डिपेंड हो। लेकिन लिव-इन में ऐसी कोई प्रॉब्लम नहीं होती। फाइनेंशियली, इकोनॉमिकली, सोशली दोनों ही आजाद होते हैं, जिससे उनके बीच प्यार और रिस्पेक्ट की पूरी जगह होती है। लिव-इन में एक-दूसरे को जानने-समझने के लिए ढेर सारा वक्त होता है।

5. आजादी
बहुत सारे मामलों में देखा गया है कि शादी के बाद आजादी पर कई तरह की पाबंदी लग जाती हैं। शादी के पहले दोस्तों के साथ रात भर घूमना, पार्टी करना, बियर पीना आम बात होती है, जिसे शादी के बाद बदलना पड़ता है। अब वही वक्त पार्टनर को देना पड़ता है। इसीलिए लोग कहते हैं कि शादी के बाद लाइफ बहुत बदल जाती है। लेकिन दूसरी ही तरफ देखें तो लिव-इन रिलेशनशिप में इस बात की आजादी होती है। वहां जरूरी नहीं कि आप लिव-इन पार्टनर के साथ ही पूरा वक्त शेयर करें। अपने दोस्तों-यारों के साथ भी क्वालिटी टाइम बिताने का टाइम होता है।
6. कम्पेटिबिलिटी टेस्ट
ऐसा जरूरी नहीं कि जिससे प्यार हो, उसी से शादी भी हो या जिसे पेरेंट्स ने पसंद कर लिया, उसी के साथ पूरी जिंदगी बितानी है। शादी का डिसीजन लेने से पहले आपसी समझ और कम्पेटिबिलिटी को टेस्ट करना भी जरूरी है। इस चीज को परखने के लिए पेरेंट्स की रजामंदी से भी लिव-इन में रहा जा सकता है। इसे सामाजिक स्वीकृति मिल चुकी है, इसलिए कोई इस पर आपत्ति भी नहीं कर सकता।
7. संबंधों को लेकर क्लियर विजन
लिव-इन में रहने के दौरान ही कपल सारी प्लानिंग कर लेते हैं, जिसमें फाइनेंशियल और सोशल सारे विजन क्लियर होते हैं। साथ रहने पर आपसी संबंधों को लेकर भी किसी प्रकार की हिचकिचाहट और माथापच्ची नहीं होती, बल्कि इसे लेकर वो ज्यादा एक्साइटेड रहते हैं। लिव-इन रिलेशनशिप को बढ़ावा मिलने की ये सबसे खास वजह है।
8. ब्रेक-अप आसान
लिव-इन रिलेशनशिप में ब्रेक-अप को लेकर ज्यादा टेंशन नहीं रहती। समझ में आया तो आगे तक रिलेशनशिप जारी रखा जा सकता है, शादी तक की जा सकती है, न समझ आया तो राम-राम। एक-दूसरे से जुदाई के गम में शराब-सिगरेट जैसी चीजों पर पैसे बर्बाद नहीं होते। सिर्फ यही एक ऐसा रिलेशनशिप होता है, जिसमें लोग खुशी से अलग होते हैं, वरना तो डाइवोर्स, डिप्रेशन, दिमागी परेशानी ही ज्यादातर ब्रेक-अप्स का कारण होती है।