भारत में नियम के मुताबिक, 10 साल बाद यानी 2021 में फिर से जनगणना होनी थी, लेकिन अभी नहीं हुई। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इस महीने ही भारत 1.42 अरब की आबादी के साथ दुनिया की सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन जाएगा।
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नई दिल्ली: भारत इस महीने चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे बड़ी आबादी वाला देश बनने जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अप्रैल खत्म होते-होते भारत की आबादी बढ़कर 1 अरब 42 करोड़ हो जाएगी। 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत की 79.8 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है।
मुस्लिम आबादी के लिहाज से भारत, इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद तीसरे नंबर पर आता है। एक वर्ग कहता है कि भारत की बढ़ती आबादी में मुसलमानों का सबसे बड़ा हाथ है। लेकिन सैयद मोहम्मद तल्हा को इस बात का फख्र है कि उनकी एक ही बेटी है। उनकी सात की बिटिया एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ती है। 42 वर्षीय तल्हा बिजनसमैन हैं और नोएडा में रहते हैं जबकि बेटी का मॉन्टेसरी स्कूल दिल्ली में है।
एक बच्ची से खुश हैं मो. तल्हा वो कहते हैं कि 2.55 लाख रुपये की ऐनुअल फी भरने में उन्हें दिक्कत नहीं होती है बल्कि अच्छा लगता है। उन्होंने कहा कि अगर उनके दो बच्चे होते तो वो उन्हें इतने बड़े स्कूल में नहीं भेज पाते। उन्होंने कहा, ‘एक बच्चा होने से हम पूरा ध्यान उसी पर रख पाते हैं। उसे अच्छी तालीम के साथ-साथ अन्य कई सुविधाएं देते हैं। एक बच्चा होने के बहुत फायदे हैं।’ भारत के मुस्लिम परिवारों में तल्हा जैसी भावना जोर पकड़ रही है।
जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमों की सफलता न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने छह मुस्लिम पुरुषों और महिलाओं के साथ-साथ मुस्लिम नेताओं, इस्लाम के जानकारों और जनसंख्या विशेषज्ञों से बात की। सभी ने माना कि भारत के मुसलमानों में परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण के प्रति चेतना पैदा हुई है। 14.2 प्रतिशत की साझेदारी के साथ मुसलमानों की भारत में दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। हालांकि, देश में दशकों से जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं।
फिर भी दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बनने की कगार पर पहुंचने को इन कार्यक्रमों की असफलता कह सकते हैं, लेकिन दूसरी तरफ मुसलमानों में छोटा परिवार रखने की समझ पैदा होना इनकी सफलता मानी जा सकती है।
एक्सपर्ट्स भी कहते हैं कि जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम भारत में बहुत हद तक कारगर साबित हुए। इस कारण यहां जनसंख्या स्थिरता आई है। मुसलमानों में घट रही है प्रजनन दर मुसलमानों में छोटे परिवार रखने का बढ़ता चलन राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) में भी दिखा। सर्वे के मुताबिक, बीते 15 वर्षों में मुसलमानों में जन्म दर लगातार घट रही है।
सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि 2005-06 में प्रत्येक मुस्लिम महिला औसतन 3.4 बच्चे पैदा करती थी। यह आंकड़ा 2015-16 में घटकर 2.6 और 2019-21 में और घटकर 2.4 रह गया है। हालांकि, भारत के किसी भी दूसरे समुदाय के मुकाबले मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर अब भी ज्यादा है। अच्छी बात यह है कि मुसलमानों में बच्चा पैदा करने दर में गिरावट भी तेज है। 1992-93 में प्रति मुस्लिम महिला 4.4 की औसत से बच्चे पैदा होते थे।
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