एम्स का निर्माण नेहरू के समय हुआ परन्तु इसके निर्माण में सबसे बड़ा योगदान भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री कपूरथला के रजवाड़े की राजकुमारी अमृता कौर का रहा। शिमला में में अपना पैतृक मकान, मैनरविल, भी उन्होंने AIIMS को दान कर दिया ताकि वहां की नर्सें यहां आकर छुट्टियां बिता सकें।
निशा शर्मा/ नई दिल्ली
75 साल की उम्र में 6 फरवरी, 1964 को राजकुमारी अमृत कौर गुज़र गईं लेकिन आज़ाद भारत के बनने और उसके स्वस्थ बने रहने में उनका योगदान एक ऐसी कहानी है, जो सबको पता होना चाहिए। देश में पहला मेडिकल कॉलेज अस्पताल और पब्लिक मेडिकल रिसर्च यूनिवर्सिटी ‘ऑल इंडिया इंस्टीटूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (एम्स) को 64 साल हो गये हैं। भले ही एम्स का निर्माण नेहरू के समय हुआ परन्तु इसके निर्माण में सबसे बड़ा योगदान भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री कपूरथला के रजवाड़े की राजकुमारी अमृता कौर का रहा।
18 फरवरी 1956 को जब अमृता कौर ने लोकसभा में एक नया बिल पेश करते हुए कहा था कि मेडिकल में पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए हमारे देश में एक ऐसा संस्थान होना चाहिए जहाँ देश के मेधावी छात्र जो मेडिकल की पढ़ाई को उच्च स्तर पर अध्ययन करना चाहते हैँ। मेडिकल शिक्षा में उच्च स्तर की पढ़ाई के इस बड़े केंद्रीय संसथान के निर्माण के लिए राजकुमारी को फंड इकट्ठा करने में 10 साल लग गए । उनके इस प्रस्ताव ने लोकसभा में संस्थान की प्रकृति को लेकर खूब बहस हुई परन्तु इस बिल को दोनों सदनों के सदस्यों ने हामी भरी और इसका निर्माण हो सका।
कौन थीं राजकुमारी अमृत कौर?
जब देश आज़ाद हुआ, तब उन्होंने यूनाइटेड प्रोविंस के मंडी से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतीं। ये सीट आज हिमाचल प्रदेश में पड़ती है। सिर्फ चुनाव ही नहीं जीतीं, बल्कि आज़ाद भारत की पहली कैबिनेट में हेल्थ मिनिस्टर भी बनीं। लगातार दस सालों तक इस पद पर बनी रहीं। वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली की प्रेसिडेंट भी बनीं। यही नहीं, इस पद पर पहुंचने वाली वो एशिया से पहली व्यक्ति थीं। स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद उन्होंने कई संस्थान शुरू किए, जैसे इंडियन काउंसिल ऑफ चाइल्ड वेलफेयर, ट्यूबरक्लोसिस एसोसियेशन ऑफ इंडिया, राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज ऑफ नर्सिंग, और #सेन्ट्रल लेप्रोसी एंड रीसर्च इंस्टिट्यूट।
इन सभी के अलावा उन्होंने एक ऐसा संस्थान भी स्थापित करवाया, जो आज देश के सबसे महत्वपूर्ण अस्पतालों में से एक है. ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज। यानी AIIMS. इसके लिए उन्होंने न्यूजीलैंड, जर्मनी, अमेरिका जैसे देशों से फंडिंग का इंतजाम भी किया. शिमला में में अपना पैतृक मकान, मैनरविल, भी उन्होंने AIIMS को दान कर दिया. ताकि वहां की नर्सें यहां आकर छुट्टियां बिता सकें।
एम्स के निर्माण पर अमृता ने अपना विचार प्रकट करते हुए कहा कि ” मैं चाहती हूँ कि ये कुछ अद्भुत हो जिस पर भारत को गर्व हो। पिछली कुछ महीनो से पूरा विश्व कोरोना से लड़ रहा है और देश के स्वस्थ संस्थानों में एम्स की चर्चा खूब होती है।
राजकुमारी अमृत कौर ने महिलाओं और हरिजनों के उद्धार के लिए भी कई कल्याणकारी कार्य किए। वे बाल विवाह और पर्दा प्रथा के सख्त ख़िलाफ़ थीं और लड़कियों की शिक्षा में इन्हे बडी बाधा मानती थीं। उनका कहना था कि शिक्षा को नि:शुल्क और अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। राजकुमारी अमृत कौर ने महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखकर ही 1927 में ‘अखिल भारतीय महिला सम्मेलन’ की स्थापना की। वह 1930 में इसकी सचिव और 1933 में अध्यक्ष बनीं। उन्होंने ‘ऑल इंडिया वूमेन्स एजुकेशन फंड एसोसिएशन’ के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया और नई दिल्ली के ‘लेडी इर्विन कॉलेज’ की कार्यकारी समिति की सदस्य भी रहीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ का सदस्य भी बनाया था , जिससे उन्होंने ‘भारत छोडो आंदोलन’ के दौरान इस्तीफा दे दिया था। उन्हें 1945 में लंदन और 1946 में पेरिस के यूनेस्को सम्मेलन में भारतीय सदस्य के रूप में भेजा गया था। वह ‘अखिल भारतीय बुनकर संघ’ के न्यासी बोर्ड की सदस्य भी रहीं।
कपूरथला रजवाड़े की राजकुमारी अमृता कौर, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की छात्र रह चुकी हैं और वह महात्मा गांधी की बहुत बड़ी भक्त थीं और सविधान सभा की मुख्य सदस्यों में से एक थी। अमृता ‘सदा जीवन और उच्च विचार’ में विश्वास रखती थी। इतिहास के पन्नो में उन्हें उनके अंग्रेज़ो को देश से निकालने , नारीवादी उत्साह और भी कई सहयोग के लिए जो उन्होंने देश की स्वास्थ्य की संरचना के लिए याद करता हैँ।