मैंनें पूछा था, आप जैसा खांटी ईमानदार शख्स घोटालेबाज पार्टी में तालमेल कैसे बैठा लेता है? इस सीधे सवाल पर कुछ क्षणों के लिए वे चुप हो गये। उनकी आंखें डबडबा आयीं थी। फिर बोले, वीरेंद्र जी! सियासत बहुत क्रूर होती है।
वीरेंद्र सेंगर/नई दिल्ली
रघुवंश प्रसाद सिंह भी अनंत यात्रा पर निकल गये। वे हम सबके रघुवंश बाबू थे। सियासत में लंबे समय से वे बहु विवादित नेता लालू यादव के मजबूत स्तंभ थे। लालू चारा घोटाले में महीनों से जेल में हैं। उनकी सेहत भी अच्छी नहीं है। उनके दोनों बेटों के हाथ ही राजद की कमान है। छोटा बेटा तेजस्वी कम पढ़ होने के बाद भी फायर ब्रांड नेता बन गया है। वहीं पार्टी के सीएम पद के चेहरे हैं जबकि बड़ा पुत्र उतना सुपुत्र नहीं साबित हुआ। वे सनकपन की हरकतों के लिए ज्यादा चर्चित रहे हैं। …
पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी भी दोनों पुत्रों की सलाहकार की भूमिका में है। पूरी पार्टी की कमान एक घर मे ही। लालू यादव डिग्री धारक थे। लेकिन उनके पूत इंटरमीडिएट भी पास नहीं हो पाए। तेजस्वी जरूर कुछ शालीन हैं। भाषण देने की कला में माहिर हैं। कभी कभी अपने पिता श्री से भी बढ़िया भाषण कर लेते है। लेकिन उनके भ्राताश्री तेज भाई कन्हैया जी का स्वांग करते रहते हैं। कभी कभी कन्हैया बनकर बंशी बजाते हुए गौ माताओं के बीच तमाशा आइटम बनते रहते हैं।.. पिछले महीनों में वे अपनी सुघड़ पत्नी से उलझ गये थे। पत्नी रहीं एश्वर्या से अब तलाक हो गया है। ऐश्वर्या खासी पढ़ी लिखी हैं। लेकिन उनके महत्वाकांक्षी पिताश्री ने लगभग अनपढ़ तेज प्रताप से बेटी की शादी करा दी। जो महीनों की फूहड़ नौटंकी के बाद टूट गयी।मामला अदालत में लंबित भी है। तेज, नीतीश सरकार में हेल्थ मिनिस्टर थे। जबकि छोटे भ्राताश्री तेजस्वी उप मुख्यमंत्री थे। कुछ महीनों में ही नीतीश ने पलटा मार दिया था।
वे राजद के बजाए भाजपा के फिर से साथी बन गये। माना जाता है कि नीतीश जी लालू के बड़े सुपुत्र की सियासी नौटंकी से काफी तंग हो चुके थे।अब यही भ्रतागण उनके लिए सियासी चुनौती हैं। बिहार में हालात खराब हैं। कानून व्यवस्था की स्थिति भी काफी नाजुक है।सुशासन बाबू कहलाने वाले नीतीश अब आम लोगों के लिए कुशासन बाबू बन गये हैं। पूरे देश का विपक्ष राजद पर टकटकी लगाए है।यही कि बिहार में राजद नेतृत्व वाले गठबंधन ने मजबूत टक्कर दे दी, तो मोदी एण्ड कंपनी की सियासत को बड़ा झटका लग सकता है।
अगले महीने ही यहां विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। लंबे समय से पार्टी में लालू के बाद दूसरे नंबर की हैसियत हर मापदंड से रघुवंश बाबू की ही रही है। लालू पुत्रों की कमान से चलने वाली पार्टी में वे कई बार अपने को अपमानित महसूस करते रहे। लालू भी कोई कारगर निदान नहीं दे पाए। इसी पीड़ा के चलते उन्होंने पिछले दिनों ही इस्तीफे की चिट्ठी लिखी थी। कहा था,बहुत हो गया अब मुझे बाहर जाने की इजाजत दे दीजिये। जवाब में लालू ने अपनी दोस्ती का हवाला देकर संदेश दिया था कि पार्टी छोड़कर आप कहीं नहीं जा रहे। लेकिन दिल्ली के एम्स में भर्ती रघुवंश बाबू, पार्टी क्या? दुनिया ही छोड़कर चले गये। डाक्टरेट डिग्री धारक रघुवंश बाबू प्राध्यापक भी रह चुके हैं।
मनमोहन सरकार में वे खास प्रतिष्ठा वाले ग्रामीण विकास मंत्रालय के मंत्री थे। उन्हीं के दौर में मनरेगा योजना, क्रांतिकारी बदलाव वाली योजना साबित हुई थी। किसानों और वंचितों के लिए उनकी खास हमदर्दी किसी से छिपी नहीं थी। वे सरकार का हिस्सा होकर भी किसानों के हितों की पैरवी किसी विपक्षी नेता की तरह तल्ख तेवरों में कर बैठते थे। यूपीए सरकार के दौरान उनके खांटी तल्ख तेवर कई बार-बार पीएम मनमोहन सिंह के लिए भी परेशानी का सबब बन जाते थे। इस दौरान मेरी उनसे खूब मुलकातें होती थीं। जब उनसे कहा कि किसानों के मुद्दे पर अपनी सरकार की ही क्यों क्लास लगा देते हैं? इस पर वे कहते थे, कारपोरेट की लाबी वंचित वर्गों को और गरीब बनाना चाहती है।
ऐसे मुद्दों पर मैं कैबिनेट बैठकों में भी भिड़ जाता हूं। संसद में ही बोल देता हूं। मैं किसान पहले हूं, मंत्री बाद में। उनकी खांटी ईमानदारी के तमाम जौहर मैंनें अनुभव किये हैं। उनकी बिटिया कुमुद अमर उजाला अखबार समूह के कारोबार अखबार में उप संपादक थीं। अखबार का दफ्तर दिल्ली के प्रीति बिहार में था। लेकिन बिटिया डीटीसी से सफर करती थी। कभी सरकारी कार का चालक झांसा. देकर बिटिया को दफ्तर छोड़ जाता। किसी तरह यह बात, रघुवंश बाबू का पता चलती तो वे नाराज हो जाते थे। मैं भी इसी अखबार के राजनीतिक ब्यूरो का प्रमुख था। रघुवंश बाबू से कहा कि आपकी पार्टी का नेतृत्व तो चर्चित भ्रष्ट है,फिर आप अपनी खांटी ईमानदारी का अत्याचार बिटिया पर क्यों करते है? मेरे तंज से वे भड़क गये थे। बोले थे,जो मेरे हाथ में है वो तो मैं कर ही ही सकता हूं। एकदम भदेस ढ़ंग से रहने वाले रघुवंश बाबू की आवाज खनकदार थी। वे हमेशा तेज बोलते थे।संसद मे दर्जनों बेहतरीन भाषण उनके नाम दर्ज हैं। करीब एक साल पहले की बात है।
मैं दिल्ली वाले घर में मुलाकात करने गया। मैंनें पूछा था, आप जैसा खांटी ईमानदार शख्स घोटालेबाज पार्टी में तालमेल कैसे बैठा लेता है? इस सीधे सवाल पर कुछ क्षणों के लिए वे चुप हो गये। उनकी आंखें डबडबा आयीं थी। फिर बोले, वीरेंद्र जी! सियासत बहुत क्रूर होती है। कुछ न कुछ समझौते करने ही पड़ते हैं। वर्ना आप हमेशा के लिए मुख्यधारा से बाहर हो जांएगे। मेरे पास सेक्यूलर जमात में रहने का और कोई जमीनी विकल्प है ही नहीं। इतना कहने के साथ उन्होंने मुझ पर भी तंज किया। क्या आप जैसे खांटी पत्रकार समझौते नहीं करते? ये सवाल भी उछाला और जवाब भी खुद दे डाला। बोले, आप जैसे पत्रकार भी तो कर चोर सेठों के अखबारों में काम करते हो न? कई बार आप जैसों को भी दलाल और चरित्रहीन संपादकों के साथ भी काम करना पड़ता है न? बस, इतनी ही आपके हाथ में रहती है गुंजाइश कि जितनी संभव हो बेहतर पत्रकारिता कर पांए। यही व्यवाहरिक सच भी है। यही सच सियासत का भी है। जब वे ये शब्द उगल रहे थे, तो उनकी आंखें नम थीं। दिल की पीड़ा चेहरे पर झलक आयी थी। रघुवंश बाबू! आप मेरे जैसे हजारों लोगों के दिलों में हमेशा जीवंत रहेंगे। सादर नमन!