नींद की गोली न बनाएं इन योग विधियों को

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चिकित्सकीय परीक्षणों से साबित हो चुका है कि योगनिद्रा के अभ्यास के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। यानी चेतना अंतर्मुखता और बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। चेतना के अंतर्मुख होते ही मन तमाम तनावों से मुक्त हो जाता है। यह गहरी निद्रा से भी आगे सूक्ष्म निद्रा की अवस्था होती है।

किशोर कुमार

भक्तिकाल के महान संत अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ानाँ उर्फ रहीम का एक प्रसिद्ध दोहा है – “रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजै डारि। जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥“ हम सब बोलचाल में इसी बात को कहते भी हैं कि जहां सुई की जरूरत है, वहां तलवार का क्या काम? पश्चिम के दार्शनिकों और वैज्ञानिकों ने ऐसी ही परिस्थितियों के लिए लॉ ऑफ इंस्ट्रुमेंट की व्याख्या कर दी। पर अब्राहम मास्लो की व्याख्या सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुई – यदि आपके पास केवल और केवल हथौड़ा ही है तो आप हर वस्तु को कील समझने लगते हैं। गुरूत्तर उद्देश्य वाली योग विद्या के साथ व्यवहार रूप में ऐसा ही हो रहा है। प्राणायाम, प्रत्याहार और धारणा की जिन विधियों का उपयोग शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य और चेतना के विकास के लिए होना चाहिए था, उनका इस्तेमाल नींद की गोलियों की तरह किया जा रहा है। यानी सुई का काम तलवार से।
ऑस्ट्रेलियाई सेना के ब्रिगेडियर ओलिवर डेविड जैक्सन की एक प्रचलित कहानी है। साठ के दशक में उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम के बीच युद्ध चरम पर था। ब्रिगेडियर डेविड की अगुआई में आस्ट्रेलियाई सेना दक्षिणी वियतनाम की तरफ से जंग-ए-मैदान में थी। दुश्मनों ने एक रात आस्ट्रेलियाई सेना की एक टुकड़ी के सभी जवानों पर एक साथ वार करके उन्हें मौत की नींद सुला दी। ब्रिगेडियर डेविड खुद किसी तरह बच गए। पर उस हृदयविदारक घटना से इतने द्रवित हुए कि हृदयाघात हो गया। अस्पताल ले जाया गया। वहां उनकी नजर एक साधु पर पड़ी तो पूछा लिया, “आप यहां क्या कर रहे हैं?” उत्तर मिला, “मैं मरीजों को योगाभ्यास कराता हूं।“ ब्रिगेडियर डेविड ने अगला सवाल किया, “क्या मैं योग की बदौलत फिर से युद्ध के मैदान में खड़ा हो सकता हूं?” इसके बाद जो हुआ, उससे उनका जीवन बदल गया। वे “योगनिद्रा” की बदौलत स्वस्थ हो गए और युद्ध के मैदान में जा खड़े हुए थे।
 
चिकित्सकीय परीक्षणों से साबित हो चुका है कि योगनिद्रा के अभ्यास के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। यानी चेतना अंतर्मुखता और बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। चेतना के अंतर्मुख होते ही मन तमाम तनावों, उत्तेजनाओं से मुक्त हो जाता है। यह गहरी निद्रा से भी आगे सूक्ष्म निद्रा की अवस्था होती है। बीटा और थीटा की यही अदला-बदली योगनिद्रा का रहस्य है। तभी कई गंभीर बीमारियों से जूझते मरीजों पर यह कमाल का असर दिखाता है। जरा सोचिए, इतनी प्रभावशाली योग विद्या का इस्तेमाल हम अपने संपूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य के लिए न करके केवल नींद के लिए करते हैं तो इसे क्या कहा जाए? मेरे कई जानने वाले उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, अवसाद आदि गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं। मैं जब उनसे पूछता हूं कि आप योगनिद्रा का नियमित अभ्यास करते हैं तो जबाव होता है कि हां, जब नींद नहीं आती है तो उसका प्रयोग कर लेता हूं। तुरंत ही नींद आ जाती है।
योगनिद्रा की तरह ही अजपा जप एक महान योग विधि है। इस पर भी दुनिया भर में अध्ययन किया गया। सिलसिला अब भी जारी है। इस योग विधि में शारीरिक तनाव, मानसिक तनाव और भावनात्मक तनाव इन तीनों को एक साथ ही दूर कर देने की असीम शक्ति है। ऐसे में इसके सामान्य अभ्यास से ही नींद आ जाना मामूली बात है। पर जीवन में ऐसी उथल-पुथल मची रहती है कि हम इस बात पर विचार नहीं करते कि नींद क्यों नहीं आती है और क्या नींद न आने के कारणों का इलाज इस योग विधि से संभव है? नतीजा होता है कि हम छोटे लाभों के लिए बड़ा अवसर गंवा देते हैं और समस्या बढ़ती चली जाती है।
“अजपा जप” प्राणायाम और धारणा के बीच का उच्चतर योग कर्म है। यह जब सिद्ध होता है तो बिना जप किए जप होने लगता है। अंतर्ध्वनि खुद प्रकट हो जाती है। रामायण में प्रसंग है कि जब हनुमान जी सीती जी की खोज में जंगलों में भटक रहे थे तो उनकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी। वह नींद में था। पर उसके मुख से राम नाम का मंत्र निकल रहा था। तब हनुमान जी अपने इष्ट श्रीराम को याद कर आराधना करते हैं। कहते हैं – हे प्रभु, ऐसी अवस्था मुझे भी प्राप्त हो जाए। उस राम नाम का संबंध श्रीराम से नहीं था। शास्त्रों में उल्लेख है और परंपरागत योग के संन्यासी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते भी हैं कि कृष्ण और राम नाम वाले तमाम मंत्र कृष्ण भगवान और मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के जन्म से पहले भी थे। खैर, अजपा जप में प्रयुक्त मंत्र की शक्ति इतनी प्रबल होती है कि यह आधुनिक युग की अनेक बीमारियों की एक दवा हो सकती है। आध्यात्मिक चेतना का विकास तो होता ही है।
 
भ्रामरी प्राणायाम भी बेहद शक्तिशाली प्राणायाम है। पर इसका प्रयोग नींद के लिए किया जाने लगा है। यह सच है कि यदि नींद न आ रही हो और इस प्राणायाम का अभ्यास कर लिया जाए तो नींद आने की संभावना प्रबल हो जाती है। पर भ्रामरी प्राणायाम का इसे बाईप्रोडक्ट कह सकते हैं। इस प्राणायाम में दम इतना कि अमेरिका के येल स्कूल ऑल मेडिसिन में अध्ययन हुआ तो पता चला कि यह त्वचा कैंसर से मुक्ति दिलाने में मददगार है। दरअसल, इससे पीनियल ग्रंथि उदीप्त होता है तो मिलेनिन का बनना बंद हो जाता है, जो त्वचा कैंसर की प्रमुख वजह है। योगशास्त्र में पीनियल ग्रंथि वाले स्थान को ही आज्ञा चक्र कहते हैं, जो मस्तिष्क के कार्य, व्यवहार और ग्रहणशीलता को नियंत्रित रखने में सहायक है। इसलिए बच्चों को विशेष तौर से यह योगाभ्यास करने की सलाह दी जाती है। ताकि बौद्धिक विकास हो और जीवन में स्पष्टता आए।
योग एलोपैथिक दवा नहीं कि किसी रोग की वजह से दर्द हुआ और एक दर्दनाशक टैबलेट खाकर उससे अस्थाई मुक्ति पा ली। शारीरिक स्वास्थ्य के संदर्भ में योग का पहला उद्देश्य तो है कि मानव शरीर रोगग्रस्त हो ही नहीं। यदि रोग हो ही गया और आधुनिक चिकित्सा पद्धति से रोग का कारण पता लगाकर आयुर्वेदिक आहार के साथ समुचित योगाभ्यास कमाल का असर दिखाता है। कुल मिलाकर बात इतनी कि नींद क्यों नहीं आती, इसकी पड़ताल करके उससे मुक्ति पाने के लिए योग कर्म होना चाहिए। तभी योग की सार्थकता है।

(लेखक https://ushakaal.com/ के संपादक और योग विज्ञान विश्लेषक हैं)