यह मुठभेड़ कैसे हुआ: पुलिस वैन पलटी, पिस्तौल छीन भागा विकास दूबे और फिर कहानी खत्म

0
551

एसपी कानपुर वेस्ट का कहना है कार के पलट जाने के बाद घायल पुलिसवाले की पिस्टल छीनकर विकास ने भागने की कोशिश की। पुलिस ने सरेंडर करने को कहा लेकिन उसने एक पुलिसकर्मी पर गोली चला दी। जवाबी फायरिंग में वह घायल हो गया। बाद में उसे अस्पताल पहुंचाया गया। 

Written by Roy Tapan Bharati

आठ पुलिसकर्मियों की हत्या का मास्टरमाइंड विकास दुबे आखिरकार मारा गया। इससे योगी सरकार की वाहवाही होना स्वाभाविक है। विकास को किन किन नेताओं का संरक्षण था यह राज अब कभी नहीं खुल सकेगा। बताया जा रहा है कि कानपुर टोल नाके से 25 किलोमीटर दूर विकास दुबे को ला रही पुलिस की कार पलट गई। इस दौरान विकास दुबे ने पुलिस का हथियार छीनकर भागने की कोशिश की।
 
इस एनकाउंटर में कुछ पुलिसकर्मियों के घायल होने की भी खबर है। अभी पुलिस की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं जारी किया गया है। पर कानपुर के पत्रकार और मानवाधिकार वाले संगठन इस मुठभेड़ की कहानी खंगालने में लग गये हैं और दिल्ली का टीवी चैनल उन्हें दिशा निर्देश देने में व्यस्त हो गया है।
पुलिस ने बताया कि अपराधी विकास दुबे को कानपुर ला रही एसटीएफ के काफिले की गाड़ी आज सुबह दुर्घटनाग्रस्त हो गई। हादसा कानपुर टोल प्लाजा से 25 किलोमीटर दूर हुआ। बताया जा रहा है कि जब गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हुई, उस समय विकास दुबे हथियार छीनकर भाग निकला।
घटनास्थल से सात से आठ किलोमीटर की दूरी पर विकास दुबे और पुलिस के बीच मुठभेड़ हुआ। इस मुठभेड़ में विकास दुबे गंभीर रूप से घायल हो गया था। उसे तुरंत लाला लाजपत राय हॉस्पिटल में लाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
मौके पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शी का कहना है कि हमने फायरिंग की जबरदस्त आवाज सुनी थी। गाड़ी का एक्सीडेंट नहीं हुआ था। हमने गोली की आवाज सुनी। इसके बाद पुलिस ने हमें भगाने की कोशिश की। हम वहां से हट गए। हम लोगों ने गोलियों की आवाज सुनी थी।
हादसे को लेकर यूपी एसटीएफ के अफसर अभी कुछ बोलने से बच रहे हैं, लेकिन माना जा रहा है कि मीडिया की नजर से विकास दुबे को बचाने के लिए गाड़ी की रफ्तार काफी तेज थी। बारिश और तेज रफ्तार के कारण गाड़ी पलट गई।
कानपुर के बिकरु गांव में दो जुलाई की रात को आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर देशभर में सुर्खियों में आया उत्तर प्रदेश का मोस्ट वांटेड गैंगस्टर विकास दुबे गुरुवार सुबह उज्जैन के महाकाल मंदिर परिसर में मिला था। छह दिन की तलाश के बाद मध्य प्रदेश पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, जिस कुख्यात अपराधी को लेकर कई राज्यों की पुलिस अलर्ट थी, उसकी गिरफ्तारी उतनी ही नाटकीय ढंग से हुई।

मेरे फेसबुक मित्रों ने इस लेख पर क्या लिखा:

Ajay Sharma Baba: इस पुरे घटनाक्रम ने हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था पर जबरदस्त प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। न्यायवस्था पर यदि अन्य संवैधानिक संस्थाओं को ही विश्वास नहीं है तो आम आदमी के विश्वास का क्या होगा। बहुत बड़ा सवाल है यह । खादी ,खाकी और नौकरशाही जब चाहे जिसे चाहे माफिया बना सकती है अपनी समानांतर सत्ता चला सकती है और जब किरकिरी हो तो अपने हिसाब से उसका सफाया भी कर सकती है।इसकी क्या गारंटी है की कोई दूसरा विकास दूबे नहीं पैदा होगा।यह सिस्टम सड़ चुका है पुरी तरह गल चुका है हम शर्मशार हैं की ऐसे असभ्य समाज के हम भी एक अंग हैं।

Akhilesh Kuwnar ये लोकतंत्र नहीं है

Avanish Ram Sudhi Bhatt: डिटर्जेंट बहुत ही अच्छा था, खाकी पर एक दो छींटे छोड़कर बाकी साफ हो गया। और खादी की चमाचम सफेदी बरकरार रहेगी।
Bharti Ranjan Kumari: नाटक अच्छा है, इनका
पं. दीपक शर्मा: खैर चाहे जो हुआ हो विकास को अपने कर्मों की सज़ा मिल ही गयी ।
Dinesh Sharma अच्छा हुआ एक अपराधी का अन्त हो गया…
Gaurav Bhagi Rath Sharma: अब लोग ये कहेंगे कि नेताओं को बचाने के लिए ऐसा किया गया। ये जनता है कभी संतुष्ट नही होगी।
Kamlesh Chandra Sharma: मुंबई हमले का मास्टरमाइंड ने 166 लोगो की जान ली थी उसको 4 साल तक जेल और केस लड़ने की मोहलत क्यों दी गई
Kanhaiya Bhatt Goswami: बिकास दुबे को जानबूझ कर मारा गया है।
Kundan Bhatt: सही कहा आपने। लेकिन उसको जिन्दा रखता तो कई अपराधी (सफेदपोश, नौकरशाह आदि) सामने आते, सरकार और पुलिस की पोल खुलती। हुआ तो एनकाउंटर ही, लेकिन प्लांड गेम की तरह।
Navin Kumar Kuwar Bathua: सरकार एनकाउंटर कर दे तो सारे राज दफन और छोड़ दे तो मिलीभगत का आरोप लगाने वाले ही सबसे बड़े सफेदपोश हैं।
Nivedita Kumari: आज मुठभेड़ मे अपराधी नही मारा गया । असली अपराधी तो अभी जिन्दा है,बस सबूत मिटाया गया है।
Panna Shrimali: विकाश दुबे को कोर्ट में पेश करना चाहिए था और उसे किन किन सफेद पोश और किन किन खाकी धारियों का सरंक्षण कब से और किन किन लोगों से है उसकी पूरी परताल करनी चाहिए थी। लेकिन राज कभी ना खुले उसके लिए सोची समझी नकली मुठभेड़ कर दिया गया।
Parmanand Choudhary: देश की लचर कानून व्यवस्था के कारण इनकाउंटर ही सर्वोत्तम व्यवस्था है। ये तो होना ही था।
Prabhakar Bhatt: 🇮🇳🔥मोदी बनाम गोदी मीडिया के रूप में अलंकृतों से ऐसी ही उम्मीद! 🔥
Pushp Kumar Maharaj: पहले से ही आशंका थी अब सारे सफेदपोश, पुलिस महकमा व तमाम लोग जो विकास दूबे से जुड़े थे आज दिवाली मनाएंगे…..सबके पाप धूल गये
Puspraj Mani: Bilkul sahi kadam….. For motivation for police personnel and warning for criminals..
राजन शर्मा: विकास का अंत तो ठीक है लेकिन खाकी और खादी बच गये
Rakesh Sharma, एडवोकेट: यह तो सर्वविदित है कि अपराधी किसी के सगा नहीं होते हैं और ना ही उनकी कोई जाति होती है, वे अपने फायदे और सुरक्षा के बिच आनेवाले सभी लोग को सफाया करते रहते हैं।अब बात कानून के राज और विश्वास की है तो हमारी कानून व्यवस्था इतना लचर है कि अपराधी उसका लाभ उठा लेते हैं,इन जैसे अपराधियों के खिलाफ लोग कोर्ट में भय से साक्ष्य भी नहीं दे पाते हैं जैसा कि देखने को मिला है,इस अपराधी के विरुद्ध जो थाना में जाकर विधायक की हत्या किया था, पुलिस जैसे साक्षी साक्ष्य नहीं दे सके। सभी अपराध और अपराधी एक जैसे नहीं होते हैं, जो कानून को कुछ नहीं समझते हैं उनके लिए सहानुभूति रखना और कानून की बात करना बहुत ही हास्यास्पद लगता है।जो व्यक्ति अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए सरेआम हमारे कानून के रक्षक पर गोली चलता है और आठ आठ पुलिसकर्मियों को हत्या कर देता है और हत्या के बाद पैर काटता है और फिर उनसभी को एक साथ जलाने का प्रयास करता है,वह सभ्य कानून का लाभ पाने का हकदार नहीं है। उसके विरुद्ध न्यायालय में कोई साक्ष्य नहीं दे सकता है, और न्ययालय उसे बाइज्जत बरी भी कर देता,इन परिस्थितियों में पुलिस ने जो इनकाउंटर किया है वह कहीं से नाजायज नहीं है।रही बात अपराधी और राजनेताओं के गठजोड़ की तो यह राज दफन नहीं हो सकता है,उसका काल डिटेल निकालकर प्राप्त किया जा सकता है और प्राप्त कर भी क्या फायदा जब कानून में उसके बचने के सौ उपाय भरे पड़े हैं।यह अपराधियों के विरूद्ध एक बहुत बड़ा संदेश है समाज में कानून का भय होना चाहिए, सरकार के इस कृत्य से अपराध पर लगाम लगेगा।
Rewti Choudhary, Advocate: खाकी,खादी दोनों साफ रहे इसलिए विकास मारा गया। जरा इतनी तत्परता दिखाई होती साद और ताहीर के मामले में तो कुछ अच्छा कहा जाता।
Roy Tuhin Kumar: महाकाल हत्यारे विकास दूबे को नहीं बचा सके।अनेक संलिप्त और संरक्षक राजनेताओं, पुलिसकर्मियों और व्यक्तयों की अब पोल नहीं खुल सकेगी।
Shalini Sharma ये सब प्री पलांनिंग के तहत हुआ है क्योकि इंकाउण्टर ना हो इस वजह से उसने खुद को अरेस्ट कराया।बहुतो की किताबें खुलती इसी डर से ऐसा दिखाया जा रहा है।
Satyendra Raj Bhatt: राजनीति की भेंट चढ़ा विकाश दुवे 🇮🇳
Srikant Ray: विकास दुबे जो महाकाल मंदिर से भागने की कोशिश नहीं की। उसने ने अपनी गिरफ्तारी आसानी से दे दी। वह रास्ते से क्यों भागता। मेरा अनुमान पहले से था कि उत्तरप्रदेश पुलिस के हाथों सौंपे जाने के बाद उसका एनकाउंटर होना निशित है। चाहे एनकाउंटर का ढंग नाटकीय ही क्यों न हो । चुकि जिंदा रहने पर बड़े लोगों की पोल खुल जाती। अब वे सभी वे सभी बड़े लोग बच निकले जो संरक्षक थे।
Suresh Sharma, Advocate:  आखिर में खाकी और खादी दोनों बच गए…??
Sanjay Prakash Singh: अति का अंत हो गया जिसे संपूर्ण देशवासियों का कई दिनों से इंतजार था वह आज हुआ कालों के काल महाकाल ने उसे आशीर्वाद में यही दिया कि आज का दिन तुम्हारी आखरी दिन है धरती पर जय महाकाल
Sanjay Sharma: इसे सीधे तौर पर हत्या करार दिया जाए।
Shyam Kishore Choubey: दुष्यंत की पंक्तियां याद करें, सबके सब साले मादा निकले…
Sunil Kumar: विकास दुबे को मार के अपने चेहरे बचा लिए नेताओं ने, ऐसे में असली अपराधी आजाद है क्या आप मानते हो कि ऐसे मे अपराध पर शिकंजा कस सकते हैं…
Sunil Srivastava: जो भी हुआ, अच्छा हुआ। किन्तु परन्तु कुछ नहीं। 
Vivek Bhatt:: हाथ तो बाधा होगी ,,, फिर हथियार कैसे,,,,छिनने ,,,,,??
Yashawant Bhatt: पुलिस वो किसी भी प्रदेश की क्यों ना हो, हमेशा से ही प्रताड़ना की शिकार होती रही है।
खास कर वातानुकूलित कमरों में बैठने वाले बुद्धिजीवी / लिबरल और सीमित मानसिकता वाले ने पुलिस को हमेशा प्रताड़ित किया है। अगर अपराधी को पकड़ने गई पुलिस, जान बचाने के लिए फायरिंग करती है, तो भी उन बुद्धिजीवियों को समस्या है कि पुलिस ज्यादती कर रही है। अगर पुलिस मानवाधिकार के डरते फायरिंग नहीं करती है, तो वह असफल और नाकाम कहलाती है। माना की पुलिस में कई अवांछित तत्व है और राजनीतिक दबाव भी है, तो पहली बात, सब पुलिस वाले गलत नहीं है? और दूसरी मानो की झूठा एनकाउंटर किया भी, तो वो कौनसा भला आदमी था? था तो वह शातिर अपराधी ही ना? और रही बात राजनीतिक पर्टियोंके नेतायोंके इन गुंडों बदमाशों के इस्तेमाल की तो इसी से गुंडों ने सबक लेना चाहिए कि वे सिर्फ उनको इस्तेमाल करते है और बाद में पुलिस के हाथो मरने पर छोड़ देते है। अगर ये बात की समाज उन बदमाशों ने आ गई तो उन नेताओंको कोई गुंडा साथ नहीं देगा तो अपने आप हो राजनीतिक गुंडागर्दी बंद हो जाएगी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here