- विष्णु प्रभाकर के जन्मदिवस पर (21 जून 1912)
एकांकी नाटकों में हमें विष्णु जी के कुशल कहानी लेखक और नाटक लेखन के समान दर्शन होते हैं। कहानी की मार्मिकता नाटकों में उभर कर आ जाती है। एकांकी नाटकों में तो विष्णु जी मानवीय अनुभूति के सत्य के अन्वेषण में तत्पर मिलते हैं।
प्रशान्त करण/Ranchi
विष्णु प्रभाकर हिंदी साहित्य का एक बहुत बड़ा नाम है। लगभग दो दर्जन पुस्तकों के लेखक रहे। साहित्य की विभिन्न विधाओं में एक साथ प्रयोग किए- कहानी, उपन्यास, एकांकी, स्केच और रिपोर्ताज़ आदि में विभिन्न रचनाएँ सर्वथा नई भाव भूमि से परिचित कराती हैं। यह भाव भूमि यथार्थ आदर्श और स्वाभाविकता की टकराहट से उपजी हुई प्रतीत होती हैं। विष्णुजी की कृतियाँ इसलिए महत्वपूर्ण भी हैं क्योंकि इन तीनों प्रवृत्तियों की सीमाएं एक छोर पर आकर मिलती हुई सी साफ दिखाई देती हैं।
इनका जन्म 21 जून 1912 में उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद के मीरनपुर गाँव में हुआ। पंजाब से स्नातक करने के पश्चात ही हिंदी लेखन के क्षेत्र में प्रवेश कर गए थे। इनकी धर्मपत्नी विदुषी सुशीला प्रभाकर (1938-1980) थीं। विष्णु जी हमलोगों के बीच से 11 अप्रैल 2009 को चले गए।विष्णु प्रभाकर जी ने अपना पहला नाटक ‘हत्या के बाद’ लिखा और हिसार में एक नाटक मंडली के साथ भी कार्यरत हो गये। इसके पश्चात् प्रभाकर जी ने लेखन को ही अपनी जीविका बना लिया आज़ादी के बाद वे नई दिल्ली आ गये और सितम्बर 1955 में आकाशवाणी में नाट्यनिर्देशक नियुक्त हो गये, जहाँ उन्होंने 1957 तक अपनी सेवाएँ प्रदान की थीं। इसके बाद वे तब सुर्खियों में आए, जब राष्ट्रपति भवन में दुर्व्यवहार के विरोधस्वरूप उन्होंने ‘पद्मभूषण’ की उपाधि वापस करने घोषणा कर दी। विष्णु प्रभाकरजी आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र पत्रिकाओं तथा प्रकाशन संबंधी मीडिया के विविध क्षेत्रों में पर्याप्त लोकप्रिय रहे।
इनकी कहानियों में हमें कोमल क्षणों की मार्मिक वेदना मिलती है तो कहीं कहीं दुरूहता भी। उनकी कहानियां रोचक होने के साथ संवेदनशील भी हैं। चरित्र चित्रण में कहीं कहीं आदर्शवादी वृत्ति खटकती अवश्य है लेकिन कहानी के प्रवाह को अवरुद्ध नहीं करती। उपन्यासों में से ढलती रात या स्वप्नमयी, दोनों में रोमानी तत्व और कुछ मिथ्या आदर्शवादी तत्व मिलकर एक अच्छी कथावस्तु को उनकी संभावनाओं के विकसित होने से रोकते हैं। विष्णु जी के उपन्यासों को पढ़ने से ऐसा लगता है कि जैसे उनका शिल्प कम और कवि मन अधिक जागरूक है।
एकांकी नाटकों में हमें विष्णुजी के कुशल कहानी लेखक और नाटक लेखन के समान दर्शन होते हैं। कहानी की मार्मिकता नाटकों में उभर कर आ जाती है। एकांकी नाटकों में तो विष्णुजी मानवीय अनुभूति के सत्य के अन्वेषण में तत्पर मिलते हैं।
स्केच और संस्मरण में विष्णु जी की सफलता यह है कि किसी भी व्यक्तित्व के भीतर उसकी व्यापक वाह्य विरुद्धता के बाबजूद, जो कोमल है, मानवीय है, उसको पकड़ने की चेष्टा बराबर बिना किसी आरोप के मिलती है। इनकी शैली और इनकी भाव-व्यंजना में इनकी मूल प्रकृति से स्रोतस्विनी की भांति फूटता है जिसमें न अधिक भावुकता है और न ही कटुता।
रिपोर्ताज़ में विष्णुजी के पास तटस्थ दृष्टि है, जो एकदम निरपेक्ष भाव से किसी वस्तु को देखकर उसे अक्षरों में लिपिबद्ध कर सके। मार्मिक, सुन्दर, सफल और विवेचनात्मक हैं।
वे जीवनी-आवारा मसीहा से जनमानस में प्रसिद्ध हुए। उनके प्रकाशित ग्रन्थों में आदि और अन्त, संघर्ष के बाद, ढलती रात, स्वप्नमयी, नव प्रभात, डॉक्टर, जाने-अनजाने चर्चित रहे। इस सरस्वती पुत्र,हिंदी साहित्य के मूर्धन्य हस्ताक्षर को विनम्र श्रद्धांजलि और नमन।