मास्क पहनना क्यों है जरूरी: डॉ स्कन्द शुक्ल

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अमेरिका की सीडीसी कह रही है कि सार्वजनिक जगहों पर मास्क लगाकर रहें किन्तु WHO ने इस महामारी के बचाव के सन्दर्भ में सभी लोगों को सार्वजनिक-मास्क प्रयोग के लिए नहीं कहा है। दुनिया-भर के अन्य संगठनों व सरकारों का भी यही हाल हैं।

डॉ स्कन्द शुक्ल/लखनऊ

डॉ स्कन्द शुक्ल, लखनऊ

“मास्क पहनना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि परहित से बड़ा कोई ‘पुण्य’ नहीं और परपीड़ा से बड़ा ‘पाप’!” हमारी बातचीत इस पर ख़त्म हुई थी। लॉकडाउन के दौरान भी वह आवश्यक काम से बाहर निकलते हुए जब-तब मास्क लगाना नज़रअंदाज़ कर रहा था। नतीजन यह वार्तालाप ज़रूरी हो गया था।

“क्या मास्क लगाना इतना ज़रूरी है ?” उसकी शरारती आवाज़ में उच्छृंखल साहस मौजूद था। “साइंटिफ़िक प्रमाण हैं कि मास्क लगाने से इस महामारी से हम बच ही जाएँगे ? गाइडलाइन … आप-डॉक्टर-लोग तो गाइडलाइन शब्द का प्रयोग भी करते हैं न ! तो गाइडलाइन क्या हैं स्वास्थ्य-संस्थाओं की? एक स्वर में सब मान और कह रहे हैं कि समाज का हर व्यक्ति बाहर मास्क लगाकर निकले? बताइए।”

“नहीं एक-स्वर में तो सभी स्वास्थ्य-संस्थाएँ और एजेंसियाँ नहीं कह रहीं। अमेरिका की सीडीसी कह रही है कि सार्वजनिक जगहों पर मास्क लगाकर रहें किन्तु विश्व-स्वास्थ्य-संगठन ने अब-तक इस महामारी के बचाव के सन्दर्भ में सभी लोगों को सार्वजनिक-मास्क प्रयोग के लिए नहीं कहा है। दुनिया-भर के अन्य संगठनों व सरकारों का भी यही हाल हैं। कोई कह रहा है, कोई अब-तक नहीं कह रहा। जिन्होंने नहीं कहा वे विचार कर रहे हैं।”

“पर जनता में जो पढ़े-लिखे लोग हैं, वे तो इस तरह की दुविधात्मक और अनिश्चयात्मक स्थिति से कन्फ्यूज़ होंगे न! जब स्वास्थ्य-संस्थाएँ ही एकमत नहीं, तब लोगों को राह कौन दिखाएगा ?” वह कहता है।
 
“ऐसे निर्णयों की वैज्ञानिकता के साथ इनकी एक सामाजिकता भी होती है। चलो एक बात बताओ, समाज में महामारी के दौरान मास्क लगाने को क्यों कहा जा रहा है ? इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण वजह क्या है?”
 
“अपना बचाव करना और क्या !”
 
“न। मास्क का आम प्रयोग व्यक्ति के अपने बचाव के लिए नहीं कहा जा रहा। लोग ऐसा सोचते हैं और ग़लत सोचते हैं। मास्क का सार्वजनिक प्रयोग किया जाए, इसके पीछे परहित का भाव है। हम मास्क अपने लिए बाद में पहनते हैं, पहले दूसरों को बचाने के लिए। जानते हो जितने लोग कोविड-19 संक्रमित होकर लक्षणों के साथ बीमार हुए हैं, उनके अलावा एक बड़ी आबादी ऐसी है जिसमें कोई लक्षण नहीं है किन्तु वे दूसरों में बोलते-थूकते समय यह विषाणु पहुँचा सकते हैं। जब सब सार्वजनिक तौर पर मास्क लगाने लगते हैं, तब इन लक्षणहीन संक्रमित लोगों से भी संक्रमण का प्रसार कदाचित् थम सकता है।”
 
“तो फिर विश्व-स्वास्थ्य-संगठन व अन्य कई संस्थाएँ क्यों नहीं स्पष्ट गाइडलाइन देतीं इसके पक्ष में ?”
 
“गाइडलाइन यानी दिशा-निर्देश देने में बड़ा उत्तरदायित्व निहित है। बिना पर्याप्त वैज्ञानिक पुष्टि के गाइडलाइन नहीं दी जा सकतीं समाज को। सार्स-सीओवी 2 का प्रसार सभी लोगों के मास्क लगाने से रुक ही जाएगा, इसका अब-तक सीधा और स्पष्ट वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। यह विषाणु नया है, यह पैंडेमिक भी। हमें जो भी मास्क-प्रयोग के सबक मिले हैं, वह पिछली इन्फ़्लुएन्ज़ा-महामारियों से प्राप्त हुए हैं। पर इनमें भी शोधकर्ताओं का शोधबिन्दु वे लोग थे , जिन्होंने मास्क लगाया हुआ था , न कि समाज के सभी लोग। ऐसे में सम्पूर्ण समाज में सभी लोग सार्वजनिक स्थानों पर मास्क लगाया ही जाए — बिना पर्याप्त स्पष्ट शोध के ये संगठन कैसे कह दें ?”
 
“तब लोग क्या करें ?”
 
“लोग विज्ञान के प्रमाण के अलावा अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का भी परिचय दें। जिस काम में उन्हें कोई हानि नहीं है , और दूसरों को लाभ हो सकता है — उसे करने से क्यों रुका जाए ! क्या आप परोपकार के पक्ष में सांख्यिकी के खड़े होने की प्रतीक्षा करेंगे कि जब गणित सबूत लेकर सामने आएगी , तभी मैं मास्क लगाकर निकलूँगा। नहीं ! मास्क अपने लिए लगाना जितना ज़रूरी है, उससे कहीं अधिक सामने के व्यक्ति व समूचे समाज के लिए !”
“मास्क से आपका आशय साधारण मास्क से है न?”
 
“जनता के लिए मास्क का अर्थ साधारण मास्क ही है। फैक्ट्री-निर्मित मास्क न हो तो कपड़े से अपना मास्क स्वयं बना सकते हैं। वह भी न हो, तब बड़ी रुमाल, गमछा या दुपट्टा इस्तेमाल कर सकते हैं। एन-95 जैसे उन्नत मास्क उन लोगों के लिए हैं, जो कोविड-19 रोगियों के साथ काम कर रहे हैं। अगर सभी लोग एन-95 लगाने के लिए इन मास्कों को लेने लगेंगे तब स्वास्थ्य-कर्मी कहाँ जाएँगे? क्या एक आम व्यक्ति और एक स्वास्थ्य-कर्मी का कोविड-19-संक्रमित होने का रिस्क बराबर है? नहीं ! जब रिस्क बराबर नहीं , तब सुरक्षा को उसी स्तर तक बढ़ाकर रखने का क्या अर्थ ? इस तरह से तो फिर अनेक आम लोग पीपीई पहनने की बात करने लगेंगे। एन-95 व पीपीई का प्रयोग केवल कोविड-19 संक्रमण के आसपास मौजूद लोगों के लिए हैं, अन्य के लिए नहीं।”
 
“लेकिन संक्रमित व्यक्ति तो कहीं भी हो सकता है। नहीं ?”
 
“‘हो सकता है’ और ‘है’ में जोखिम बराबर है? और ‘हो सकता है’ और ‘है’ में रक्षा-उपकरण एक-जैसे होंगे और होने चाहिए? सोचकर देखिए।”
 
“मास्क लगाने के साथ अन्य बातों का भी तो महत्त्व है।”
 
“बिलकुल है। यह कोई कह ही नहीं रहा कि मास्क लगाने के बाद अन्य सुरक्षा-उपायों पर ध्यान दीजिए ही नहीं। सोशल (फ़िज़िकल) डिस्टेंसिंग रखिए, ठीक से हाथ धोइए, चेहरा न छूइए और साथ में बाहर निकलते समय मास्क या मास्क-जैसी किसी उचित वस्तु का इस्तेमाल कीजिए। मास्क का प्रयोग अकेला काफ़ी नहीं, लेकिन मास्क न लगाना भी सही नहीं। यह सच है कि मास्क लगाने से अनेक लोगों में एक झूठी सुरक्षा का बोध भी पैदा हो जाता है। हमने मास्क लगा लिया, अब हमें कुछ नहीं हो सकता ! ऐसा सोचना एकदम ग़लत है। मास्क कोविड-19 से रक्षा में योगदान दे सकता है, केवल मास्क लगाने-भर से रक्षा नहीं हो जाती।”
 
“मास्क लगाने में और हाथ धोने में किसका महत्त्व ज़्यादा है ?”
 
“दोनों के महत्व अपने-अपने हैं, कोई किसी से कम नहीं। आपने रोकथाम के विरोधाभास का नाम सुना है : इसे अँगरेज़ी में प्रिवेंशन-पैराडॉक्स कहते हैं। ऐसे अनेक काम हैं, जो व्यक्तिगत स्तर पर लोगों को मध्यम स्तर की सुरक्षा देते हैं किन्तु जनसंख्या स्तर पर यह सुरक्षा बढ़ जाती है। सीटबेल्ट लगाना भी इसी प्रकार का प्रयोग है।”
 
“कैसे ?”
 
“सीटबेल्ट लगाने से जितना व्यक्तिविशेष को लाभ होता है , उससे कहीं अधिक जनसंख्या को होता है। दुर्घटनाएँ कम हो जाती हैं। लेकिन जनसंख्या के स्तर पर मिलने वाले लाभ तभी मिलते हैं , जब अधिकांश लोग इसका पालन करें। लगभग सभी सीटबेल्ट लगाएँगे , तभी जनसंख्या को लाभ होगा। इसी तरह जब सभी लोग मास्क लगाएँगे , तब इसके कारण जनसंख्या को अधिकाधिक लाभ सम्भावित होगा। आपने हर्ड-इम्यूनिटी का नाम सुना होगा ? सत्तर प्रतिशत लोग जब संक्रमण या टीकाकरण के बाद इम्यूनिटी विकसित कर लेते हैं , तब बाक़ी के तीस प्रतिशत असंक्रमित या अटीकाकृत लोग भी रक्षा पा जाते हैं। इसी तरह से आप सीटबेल्ट लगाने को या मास्क पहनने को भी समझिए।”
 
“ठीक है। मास्क तो नहीं है , पर एक बड़े रुमाल से मास्क बना लेता हूँ। उसी को पहनकर निकलूँगा, मजबूरी में अगर निकलना हुआ।”
 
“यह सोच बेहतर है। मास्क अपने लिए पहनने से पहले दूसरों के लिए पहनिए। विज्ञान का स्पष्ट गणितीय निर्देश न हो , तब भी परोपकारी वृत्ति का कहा सुनिए। समाज की भलाई करने के लिए गणित की सहमति माँगना यान्त्रिक मूर्खता है। मास्क पहनने के साथ अन्य सभी रोकथाम के उपायों पर भी उतना ही ध्यान दीजिए। मास्क अकेले कोविड-19 से सुरक्षा नहीं देता , जिस तरह केवल सीटबेल्ट का प्रयोग दुर्घटना से सुरक्षा नहीं देता। जानिए कि सारी सुरक्षाएँ (और दुर्घटनाएँ भी) तमाम संयोगों और अनेक उपायों के आपसी द्वन्द्व से पैदा होती हैं।”
 
“अपनी तरफ़ से द्वन्द्व घटाऊँगा। मास्क अपने से पहले दूसरों के लिए।”
 
“उत्तम। परहित सरिस धर्म नहीं भाई , परपीड़ा सम नहीं अधमाई।”

 (दि लैंसेट में हाल ही में प्रकाशित कोविड-19 में मास्क-प्रयोग-सम्बन्धी कमेंटरी को आधार बनाकर इस वार्तालाप को रचा गया है।)

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