आइए, लॉकडाउन में यौगिक क्रियाओं से मन का प्रबंधन करें

0
1220

कोविड-19 का खौफ और अशांत होता मन। यानी संकटों के मध्य राह बनाने के वक्त अनिर्णय वाली मन:स्थिति। इससे मुक्ति का एक ही मार्ग है। वह है मन का प्रबंधन। पर लॉकडाउन में इस दुरूह काम को अंजाम कैसे मिले? इसके लिए कुछ आसान यौगिक उपाय हैं। विभिन्न स्तरों पर आजमाए हुए उपाय।

किशोर कुमार
किशोर कुमार

इंसान जैसा सोचता है, वैसा बन जाता है। हम सदियों से अपनी आध्यात्मिक शक्तियों की बदौलत ऐसा परिणाम लेते रहे हैं। आधुनिक विज्ञान भी टेढ़े- मेढ़े रास्ते तय करते हुए इसी निष्कर्ष पर आ पहुंचा है। हमें दवा का परिणाम मिलता है तो दुआ भी चमत्कार दिखाता रहा है। महान योगी परमहंस योगानंद ने दुनिया को क्रियायोग की शक्ति से चमत्कृत किया तो पश्चिम की रांडा बर्न और उन जैसे अनेक वैज्ञानिक-मनोवैज्ञानिक अध्ययनकर्ताओं ने साबित किया कि दरअसल भारतीय योगियों ने चमत्कार नहीं किया, बल्कि उस रहस्य को सामने ला दिया जो पहले से उपलब्ध था और वहां तक उनकी पहुंच नहीं थी। हां, कहने का अंदाज बदला, शब्द बदले। हम दुआओं की बात करते थे। उन्होंने “प्लेसीबो इफेक्ट” कहा। आइए, अपने ही सूत्रों के सहारे नई सुबह की तैयारियों में जुट जाएं।

कोविड-19 का खौफ और अशांत होता मन। यानी संकटों के मध्य राह बनाने के वक्त अनिर्णय वाली मन:स्थिति। इससे मुक्ति का एक ही मार्ग है। वह है मन का प्रबंधन। पर इस दुरूह काम को अंजाम कैसे मिले? इसके लिए कुछ आसान यौगिक उपाय हैं। विभिन्न स्तरों पर आजमाए हुए उपाय। न केवल अशांत मन को सांत्वना मिलेगा, बल्कि संकल्प-शक्ति हो तो जीवन को नया आयाम मिल सकता है।
क्या हैं आसान यौगिक उपाय? क्रियायोग से दुनिया को साक्षात्कार कराने वाले परमहंस योगानंद की बहुचर्चित आत्मकथा “योगी कथामृत” पढ़ लीजिए या इसी आत्मकथा पर आधारित डक्यूमेंट्री फिल्म “अवेक: द लाइफ ऑफ योगानंद” देख लीजिए। इसी तरह अमेरिका की लेखक-फिल्म निर्माता राण्डा बर्न की बेहद शक्तिशाली पुस्तक “रहस्य” पढ़ लीजिए या उस पर आधारित फिल्म “द सीक्रेट” देख लीजिए। दोनों ही फिल्में यूट्यब पर या नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध हैं। इसके बाद पहमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा दुनिया को दिया गया अनुपम उपहार “योगनिद्रा” की साधना कीजिए। महाभारत और रामायण सीरियल देखते रहिए। यकीन मानिए कि अवसाद से मुक्ति के सूत्र मिल जाएंगे।
अवसाद से मुक्ति के लिहाज से रामायण और महाभारत सीरियल बड़े काम के हैं। रामायण में भी योग है और गीत तो पूरा योग ग्रंथ ही है। अर्जुन जब रणक्षेत्र में गए तो विषाद हो गया। तो श्रीकृष्णजी को उनके मनोवैज्ञानिक इलाज इस तरह करने पड़े थे कि गीता के अठारह अध्यायों में से सत्रह अध्याय उसी में निकल गया। तब अर्जुन को बात समझ में आई थी और अठारहवें अध्याय में उन्होंने कहा, “भगवान अब बात समझ में आ गई।“ इसलिए गीता को योग का श्रेष्ठ ग्रंथ माना जाता है। आधुनिक समय में सात सौ श्लोकों के जरिए मन का प्रबंधन करने की सब में न शक्ति है, न सामर्थ्य। ऐसे में अपेक्षाकृत आसान रास्ता ही अपनाना होगा।
महान योगी परमहंस योगानंद की आत्मकथा पढ़ें या उस पर आधारित फिल्म देखें दोनों से दिव्य अनुभूति होती है। आत्मकथा में बताए गए क्रियायोग की साधना तन-मन को संतुलित करने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाती है। भागवद्गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने दो स्थानों पर क्रियायोग की चर्चा की है। परमहंस योगानंद ने अपने परमगुरू की क्रियायोग विधि के जरिए प्राण-नियंत्रण और मन पर नियंत्रण के ऐसे-ऐसे परिणाम दिए कि पश्चिम का विज्ञान जगत चौंक गया था। लाखों लोगों का जीवन बदल गया। फिल्म में इन बातों की झलक मिलती है। साथ ही परमहंस जी के जीवन की घटनाओं की प्रस्तुति के साथ ही उनके वीडियो और उनके जीवन-दर्शन को साक्षात जानने, अनुभव करने वाले व प्रभावित होने वाले महानुभावाओं के इंटरव्यू हैं। जहां तक पुस्तक की बात है तो यह विश्व की 26 भाषाओं में अनुदित है और इसके बारें में इंडिया जर्नल ने लिखा – “यह एक ऐसी पुस्तक है, जो मन और आत्मा के द्वार खोल देती है।“
हिंदी भाषा की पुस्तक “रहस्य” और अंग्रेजी में लिखी गई “द सीक्रेट” कालजयी पुस्तक है। मौजूदा संकट के लिहाज से प्रासंगिक भी। इस पुस्तक में प्रमाणित किया गया है कि बीमारियों की मुख्य वजह तनाव है और तनाव नकारात्मक विचार से शुरू होता है। फिर बताया गया है कि इस विचार को यहां तक इस इससे उत्पन्न बीमारियों को भी प्लेसीबो इफेक्ट से किस तरह ठीक किया जाता है। ऐसी परिस्थितियों में प्रेम और कृतज्ञता की कितनी सकारात्मक भूमिका होती है। हमारे योग शास्त्रों से लेकर जातक कथाओं तक में प्लेसीबो प्रभाव और उसके चमत्कारों का जगह-जगह उल्लेख है। पर यहां कहने का तरीका बदला हुआ है। विज्ञान की कसौटी पर इस बात को प्रमाणित किया हुआ है। प्लेसीबो प्रभाव क्या है? इसे सरल भाषा में ऐसे समझा जा सकता है कि जब आदमी दवा के बदले दुआ से ठीक होता है तो उसे ही प्लेसीबो इफ़ेक्ट कहा जाता है।
योग की अतीन्द्रिय शक्तियों के लिहाज से “द सीक्रेट” के परिणाम भगवान बुद्ध को साधना से हुई अनुभूति को ही स्वीकार करने जैसा है। यह ठीक है कि अनुभूति की व्याख्या शब्दों में नहीं हो सकती। पर जैसा कि उल्लेख है, ज्ञान प्राप्त होने के बाद कुछ लोगों ने भगवान बुद्ध से सवाल किया – “क्या मिला?” भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया – “पूछो मत कि क्या खोया।“ अजीब बात थी। इतनी साधना खोने के लिए?  तब भगवान ने समझाया –  “वही पाया, जो मेरे पास था और सिर्फ वही खोया जो मेरे पास नहीं था।“ यानी साधना से ज्ञान पर जमा धूल जैसे ही हटा, ज्ञान प्रकट हो गया। पाया कुछ नहीं। जो था वह दिख गया। व्यवहार रूप में भी यही होता है कि हम चेहरे पर पड़ी धूल साफ करने के बदले पूरा जीवन आईना साफ करने मे बीता देते हैं।
यह स्थापित सत्य है कि जब योग की बदौलत मन पर नियंत्रण और चेतना का विस्तार होता है तो अलौकिक शक्तियों से साक्षात्कार होता है। भारत के योगी सदियों से ऐसा कहते आएं है और यह बात विज्ञान की कसौटी पर भी खरी उतर रही है। किसी साधक ने सद्गुरू जग्गी वासुदेव से पूछ लिया – “हमारे जीवन में योग क्यों जरूरी है?” सद्गुरू ने उत्तर दिया – “यदि आप चाहते हैं कि आपका मन और शरीर आपके इच्छानुसार काम करे तो उन्हें वश में कर लेना होगा। यह काम योग के बिना संभव नहीं है।“  परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं, “इंद्रियों का मालिक मन और मन का सलाहकार बुद्धि है। पर योग साधना के बिना मन का नहीं चल पाता। वह बुद्धि से परामर्श लेकर काम करने के बदले इंद्रियों का दास बनकर भटकता रहता है। यह विज्ञानसम्मत बात है।“
अवसाद से मुक्ति के पूरी दुनिया में ध्यान या मेडिटेशन की सलाह दी जा रही है। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के मुताबिक, ध्यान लगाना सीखा नहीं जा सकता, बल्कि योग की अनेक साधनाओं से ध्यान लग जाता है। इसलिए उन्होंने मन को नियंत्रित करके आध्यात्मिक उत्थान के लिए प्रत्याहार से योगनिद्रा का आविष्कार किया था। वही “योगनिद्रा” इन दिनों चर्चा में है। इधर भारत के प्रधानमंत्री उसकी अहमियत बता रहे हैं तो दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति की बेटी उससे चमत्कृत हो रही हैं। इसी कॉलम में योगनिद्रा के लाभों पर व्यापक रूप से चर्चा की जा चुकी है। परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की आवाज में यह यूट्यूब पर उपलब्ध है।
भारतीयों में अपने योगबल से विपरीत परिस्थियों को भी अनुकूल बना लेने का सामार्थ्य है। परमहंस योगानंद और परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की शिक्षा और राण्डा बर्न के वैज्ञानिक अध्ययनों के परिणाम मौजूदा हालात में जीवन को व्यवस्थित करने के लिए संजीवनी का काम करेगी।
(लेखक किशोर कुमार वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)
Kishore Kumar
+919811147422
Twitter : @kishorenet / Facebook : kishoredel

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here