कोविड 19 का डर: रसायनों से फल-सब्ज़ी धोना नादानी: डा स्कन्द

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सार्स-सीओवी विषाणु भोजन से नहीं फैलता। यह विषाणु खाँसने-छींकने-थूकने-बोलने से निकलने वाली नन्ही बूँदों से सीधे एक-व्यक्ति-से-दूसरे में फैलता है

लेखक: डा स्कन्द शुक्ल/जाने माने डाक्टर

जब दिनेश ने मुझे बताया कि इस समय कोविड 19-पैंडेमिक के दौरान वह अपने घर में आने वाली सब्ज़ियों-फलों को डेटॉल और सोडियम हायपोक्लोराइट से धो रहा है , तब मुझे आश्चर्य से अधिक दुःख हुआ। इस तरह अनियन्त्रित ढंग से भयभीत होकर हम इस महामारी का मुक़ाबला भला कैसे करेंगे ?
 
डा स्कन्द शुक्ल

वर्तमान कोविड-19 पैंडेमिक के दौरान अब-तक यह बात वैज्ञानिक बताते रहे हैं कि सार्स-सीओवी विषाणु भोजन से नहीं फैलता। यह विषाणु खाँसने-छींकने-थूकने-बोलने से निकलने वाली नन्ही बूँदों से सीधे एक-व्यक्ति-से-दूसरे में फैलता है (और अगर ये बूँदे वस्तुओं पर जा बैठें, तब उन संक्रमित वस्तुओं को छूने से भी फैल सकता है)। ऐसे में लोग यह जानना चाहते हैं कि दुकानों-स्टोरों से राशन व अन्य सामान लाते समय वे किस तरह तय करें कि इनके ऊपर विषाणु मौजूद नहीं हैं और वे इनका सुरक्षित इस्तेमाल कर सकते हैं ?

 
बाज़ार के अनेक स्टोर ग्राहकों और अपनी सुरक्षा के लिए सामाजिक दूरी बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं। सामान बेचते समय उन्होंने दुकान के बाहर गोले बना रखे हैं , वे ग्राहकों व अपने बीच पर्याप्त अन्तर बनाकर बिक्री कर रहे हैं। दुकानों के भीतर कम-से-कम लोग दाखिल हों , इसकी भी कोशिश की जा रही है। अपने स्टोरों-दुकानों के सामानों को भी वे डिसइंफेक्ट यानी असंक्रमित बनाने में लगे हैं।
 
ग्राहकों को भी कुछ सावधानियाँ सामान की खरीद के समय रखनी है। उन्हें बाज़ार तभी जाना है , जब यह वाक़ई बहुत ही ज़रूरी हो। एक बार बाज़ार जाने के बाद कुछ दिनों या हफ्तों न जाना पड़े , इसका यथासम्भव प्रयास करना है। एक ही दुकान या न्यूनतम दुकानों से सामान ख़रीदने की कोशिश करनी है। पीक हावर में जब दुकानों में भीड़ अधिक होती है , वहाँ जाने से बचना है। पूरी परिवार को लेकर दुकानों में नहीं जाना है। अगर सामान की होम-डिलेवरी हो सकती है , तब इस विकल्प को चुनना बेहतर माना जा सकता है।
 
साथ ही अगर किसी व्यक्ति में फ़्लू के लक्षण मौजूद हैं , तब उसे बाज़ार जाने से परहेज़ करना बेहद ज़रूरी है। स्टोर पर यदि साबुन-पानी अथवा सैनिटाइज़र की व्यवस्था है, तब पहले हाथों को अच्छी तरह साफ़ करना है। यह काम शॉपिंग के बाद अन्त में भी किया जा सकता है। मास्क या कपड़े से मुँह को ढँक कर ही दुकानों में सामान देखना या ख़रीदना है। केवल उसी सामान को छूना है, जिसे लेने का मन बना चुके हैं। अनावश्यक सामानों को छूने से बचना है। अपना चेहरा तो ख़रीद का दौरान बिलकुल भी नहीं छूना है। दुकान अथवा स्टोर के भीतर सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर रखनी है।
 
ग्लव्स पहनें कि न पहनें? अगर पहनेंगे तब ग्लव्स से आप हाथों को चाहे बचा लें, लेकिन जहाँ-जहाँ अपने ग्लव्स-युक्त हाथों से छुएँगे , संक्रमण के पहुँचने की आशंका रहेगी। इसलिए अगर दुकान ग्लव्स पहुंचकर गये हैं और सामान छुआ है, तब गाड़ी चलाने से पहले ग्लव्स उतार दें। अगर पैदल सामान लेकर जा रहे हैं, तब घर पहुँच कर इन्हें उतारें। घर पहुँचकर हाथ तो अच्छी तरह धोने ही हैं। फलों-सब्ज़ियों को भी अच्छी तरह नल के बहते पानी से रगड़ कर धोना है। किसी भी हालत में रसायनों से फल-सब्ज़ी धोना नादानी है और इस तरह से धोये गये फलों-सब्ज़ियों को खाने से तबियत बिगड़ सकती है। बर्तन माँजने के साबुन, डेटॉल , ब्लीच इत्यादि खाद्य-पदार्थों की सफ़ाई के लिए कदापि नहीं होते।
 
खाना घर के बाहर भी देर तक नहीं छोड़ा जा सकता। पता नहीं कौन सी वस्तु कितनी देर में ख़राब हो जाए : गरमी का मौसम है। जो वस्तुएँ नल के साफ़ पानी से धोयी जा सकती हैं , उनमें दवाओं की स्ट्रिपें , ट्यूबें व बोतलें भी शामिल हैं क्योंकि ये एयरटाइट ढंग से बन्द होती हैं। अनेक दवाओं को धूप में रखने पर वे ख़राब हो सकती हैं , ऐसे में इन्हें बाहर से एल्कोहॉल से भी साफ़ कर सकते हैं। याद रखें : सतह पर मौजूद कोरोना-विषाणु कुछ ही दिनों में मर जाते हैं , महीनों तक सक्रिय नहीं रह सकते। अगर पुनर्चक्रित ( रीयूज़ेबल ) थैलों का इस्तेमाल करते हैं , तब उन्हें भी धोया जा सकता है। अगर वे नहीं धोये जा सकते , तब उन्हें धूप में देर तक छोड़ा जा सकता है।
 
कोरोना-विषाणु अगर खाद्य-सामग्रियों पर न भी होता , तब भी इनकी सफ़ाई सामान्य दिनों में भी ज़रूरी होती। खाने-पीने के लिए लाये गये फल-सब्ज़ी बिना धोये तो खाये नहीं जा सकते थे ! स्वच्छ्ता हमें कोरोना-विषाणु-भर के लिए नहीं करनी है , स्वच्छता करने से तो अन्य ढेरों कीटाणुओं से भी हम अपनी सुरक्षा कर सकते हैं। महामरी आज है , कल नहीं रहेगी ; पर स्वच्छता के संस्कार हमारी आदत में शामिल हो गये तो दीर्घकालिक लाभ पहुँचाएँगे।
 
(अन्त में हर वस्तु के मामले में निर्णय व्यक्तिगत समझदारी से लेना है। न पता होने पर किसी समझदार से पूछ लेना है। सबका रहन-सहन भिन्न है , वस्तुएँ तो ख़ैर अलग-अलग हैं ही। )
 
— स्कन्द।

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