लौक डाउन, एक कहानी
कथाकार: नवोदित
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पूरी दिल्ली में लौक डाउन की घोषणा करदी गई है। इसका कड़ाई से पालन कराने की ज़िम्मेदारी पुलिस को सौंप दी गई है। सब बंद, सन्नाटा। बेटे की फैक्ट्री बंद, बहू का ऑफिस बंद, पोते का स्कूल बंद।
करोना करोना के मैसेज और अनगिनत काल की वजह से मोबाइल भी लभभग बंद।
न्यूज में करोना करोना इसलिए टीवी भी लगभग बंद। कामवाली का आना बंद।
सब मिलजुल कर घर का काम कर रहे हैं। सब एक टाइम पर एक साथ खाना खा रहे हैं। डायनिंग टेबल पर कुछ साल पहले वाली चकल्लस लौट आई है।
करोना के रिपीट मैसेज से कोफ्त होती है पर बहू कहती है- बाबूजी, वो अपने ऑफिस का लंच वाला क़िस्सा फिर से सुनाइए ना।
बेटा कहता है- मम्मी वो ताजमहल वाली बाबूजी की बात फिर से बताओ।
कितना मज़ेदार क़िस्सा है। सब मिल कर टीवी पर एक दो फिल्में देख लेते हैं। दो चार बोर्ड कैरम के हो जाते हैं।
मम्मी रात को बाबूजी से पूछती हैं- लेटे लेटे बहुत देर से क्या सोच रहे हैं आप।
मैं सोच रहा हूं, ये लौक डाउन चार छह महीने में एक बार तो होना ही चाहिए।