पत्थर हों या न हों, कोई फर्क नहीं पड़ता। वे केवल पत्थर फेंकेंगे, लेकिन वे आपको कभी काटेंगे नहीं क्योंकि वे फल खाना चाहते हैं। कोई भी ऐसा व्यक्ति जो फल के मूल्य को जनता है, जिसने इसकी मिठास को चखा है, वो आप के ऊपर पत्थर फेंकेगा, पर वो कभी आपको काटने के बारे में नहीं सोचेगा।
सत्य और ईश्वर की खोज में मैं अनेक पंथ और गुरुओं के निकट गया…पर आजकल मुझे सद्गुरु के विचार अधिक सार्थक और आज के संदर्भ में सबसे सही लगते हैं…
सद्गुरु का विचार सुनकर बहुत संतोष हुआ…वह कह रहे थे,” इससे पहले कि वे पत्थर मारें, अगर आप अपनी मर्जी से फल नीचे गिराने लगें, तो उनकी ओर से पत्थर मारने का सिलसिला घट जाएगा क्योंकि हर कोई फल पाने की प्रतीक्षा में है।
कोई हम पर पत्थर फेंकेगा, क्या यही सोच कर हम फल देना बंद कर देंं ? यह तो एक त्रासदी होगी। अगर आप पर लोग पत्थर फेंक रहे हैं, तो इसमें कोई हर्ज़ नहीं है। पत्थर खाने से अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि आप फलदार हैं। फल पैदा करना ही आपके जीवन को अर्थपूर्ण और लाभप्रद बनाता है।
पत्थर हों या न हों, कोई फर्क नहीं पड़ता। वे केवल पत्थर फेंकेंगे, लेकिन वे आपको कभी काटेंगे नहीं क्योंकि वे फल खाना चाहते हैं। कोई भी ऐसा व्यक्ति जो फल के मूल्य को जनता है, जिसने इसकी मिठास को चखा है, वो आप के ऊपर पत्थर फेंकेगा, पर वो कभी आपको काटने के बारे में नहीं सोचेगा। अगर आप पर कोई फल नहीं होता तो वे आपको काट कर अपना फर्नीचर बना चुके होते। बेहतर होगा कि उन्हें पत्थर फेंकने और फल खाने दें।
इससे पहले कि वे पत्थर मारें, अगर आप अपनी मर्जी से फल नीचे गिराने लगें, तो उनकी ओर से पत्थर मारने का सिलसिला घट जाएगा क्योंकि हर कोई फल पाने की प्रतीक्षा में है।