ऋषिकेश को हिमालय का प्रवेशद्वार कहा जाता है। 25 किलोमीटर की यात्रा कर हम ऋषिकेश आ गए। राम व लक्ष्मण झूला प्रसिद्ध पुल को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह पुल गंगा नदी पर बने हैं। पहाड़ों के बीच बहती गंगा नदी का दर्शन बड़ा मनोरम है।
प्रियंका राय/ पटना

वृन्दावन से हमने इनोवा कार 3 दिनों के लिए बुक कर ली। और हम पवित्र नगरी हरिद्वार के लिये निकल पड़े। हमारी ये यात्रा गंगा-यमुना सभ्यता संस्कृति का अनोखा संगम था। अब हमारे पांचवे दिन की यात्रा जारी थी और थोड़ी थकान भी महसूस हो रही थी तो मैं कार में ही एक दो झपकियां लेती रही। रुड़की पहुंचकर हम सबने बीकानेर रेस्तरां में शाही जलपान किया। यहाँ की राज कचौरियां बेहद लज़ीज़ थी। दूर से सैनिक छावनी देखी। आस-पास का नजारा खूबसूरत था। कार चालक कुछ रास्तों से गुजरते जानकारियां दे रहा था जब उत्तराखंड में 5 साल पहले त्राहि आई थी तब का आलम क्या था, इन रास्तों की स्तिथि क्या थी….वृन्दावन से लगभग 350 किलोमीटर की यात्रा कर हरिद्वार धाम में पहुंच एक स्थिरता का बोध हो रहा था। शाम ढल चुकी थी, सबने रुककर कुल्हड़ वाली चाय पी और मैंने और बच्चों ने मलाई वाली लज़ीज़ दूध। थोड़ा रिफ्रेश होकर, हमने पास ही ‘गणपति प्लाजा’ में रूम बुक करवाया। सामान रख थोड़ा आरामकर होटल के समीप ही पंजाबी होटल में रात्रि भोजन का आंनद लिया। हरिद्वार का खाना भी बेहद स्वच्छ-सात्विक था। होटल पहुंचकर सफर की थकान से चूर हम सब अच्छी नींद चाहते थे। सुबह नींद जल्दी खुल गई, ऐसा भी लगा मानो यहाँ सूरज पहले ही निकल आता है। आंख खुलते आसपास घन्टो और मंत्रों की उच्च ध्वनि सुनाई दे रही थी। होटल की चौथी मंजिल से सूरज की रौशनी सीधे कमरे तक आ रही थी, चुकी मौसम थोड़ा ठंड था तो ये हमें राहत ही दे रही थी।

वहां हरि की पौड़ी के सामने मनसा देवी का मंदिर है। दूसरी तरफ पहाड़ी पर चंडी देवी का मंदिर है। हरिद्वार की शिवालिक पहाड़ियों पर माता मनसा का मंदिर महा शक्ति के उस रूप में शुशोभित है जो सबके मन की इच्छाए पूरी करती है इसलिए इनका नाम मनसा देवी पड़ा है। मनसा देवी जाने के दो रास्ते है, एक पैदल यात्रा का और दूसरा उड़न खटोले द्वारा जिसे रोपवे भी कहते हैं। उड़न खटोला की प्रीमियम टिकट 400/- रूपये प्रति व्यक्ति है। इस टिकट में दोनों देवियों के उड़न खटोले द्वारा दर्शन, उड़न खटोले द्वारा वापिसी, मनसा देवी से चंडी देवी ट्रांसपोर्ट शुल्क तथा चंडी देवी से वापिसी का ट्रांसपोर्ट शुल्क सम्मिलित है। दूर पहाड़ियों पर ये मंदिर प्राकृतिक छटाओं के बीच शुशोभित लग रहे थे। रोपवे से पूरे हरिद्वार का नजारा देखने लायक होता है। हालांकि, मुझे रोपवे पर बहुत डर लगता है। पर, मेरे बच्चे बहुत खुश थे। मेरे पतिदेव पूरी यात्रा में कुछ बातों पर गौर दिलाते रहते :-” ये देखो इसे जरूर अपनी यात्रा संस्मरण में शामिल करना”। यहाँ भी मेरे डर को भगाने के लिये कुछ बातों का जिक्र करते रहे। यहाँ के मंदिरों में भक्तों की टोली गीत-नृत्य पर पूरी झूम रही थी। यहाँ लगभग पूरा दिन बीत गया। यहाँ से लौटते वक्त देरी होने की वजह से संध्या गंगा आरती देखने का सौभाग्य हमें नही मिला। हम शायद इस लालसा से अगली बार यहां जल्द फिर से जरूर आएं। रात्रि विश्राम के बाद हमारी कल की यात्रा थी पावन ऋषिकेश धाम की।
अगली सुबह हमारी गाड़ी ऋषिकेश के लिये रवाना हुई। ऋषिकेश को हिमालय का प्रवेशद्वार कहा जाता है। 25 किलोमीटर की यात्रा कर हम ऋषिकेश आ गए। वहां राम व लक्ष्मण झूला प्रसिद्ध पुल को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह पुल गंगा नदी पर बने हैं। पहाड़ों के बीच बहती गंगा नदी का दर्शन बड़ा मनोरम प्रतीत होता है। गंगा नदी में कई वाटर डाइविंग कर रहे थे जो बेहद रोमांचक लगा। यहां से खूब बड़े-बड़े पहाड़ दिखते हैं। हमारी यात्रा बहुत ही रोमांचक व यादगार रही।
हमने घूमने का मजा भी लिया और हमारी तीर्थ यात्रा भी हो गई। यहां हमें प्रकृति की सुंदरता देखने को मिली। आगे हम सब “नीलकंठ” के दर्शन को बढ़ें। पहाड़ियों पर नीलकंठ भगवान का दरबार अति रमणीय था। ऋषिकेश के पास मणिकूट पर्वत पर नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। मान्यता है कि, समुद्र मंथन के दौरान निकला विष शिव ने इसी स्थान पर पिया था। विष पीने के बाद उनका गला नीला पड़ गया, इसलिए उन्हें नीलकंठ कहा गया। यहाँ भी लम्बी कतार में पैदल बहुत चलना पड़ता है। अंदर पाताल नगरी में नीलकंठ देव विद्यमान हैं। उनके पवित्र दर्शन से अभिभूत होकर अब हम वापस लौटने की तैयारी में थे।
रास्ते में हमने रुककर “पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय” का भ्रमण किया। योग गुरु बाबा रामदेव ने देश में स्वदेशी ज्ञान, स्वदेशी शिक्षा, स्वदेशी परंपराओं, स्वदेशी तकनीक, स्वदेशी विज्ञान, स्वदेशी अर्थनीति का बोलबाला कर रखा है यहाँ आकर इस बात से सहमति हुई। पतंजलि महाविद्यालय के प्रयासों की सराहाना अक्सर सुनने को मिलती है।
अब हम सब आगे दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे।

मेरी ख़ुशी अपनी छोटी भाभी सुनिधि को देखकर और बढ़ गई। उससे पहली बार मिल रही थी। पर, उसके विचार और व्यवहार की जितनी तारीफ करूँ कम होगी। रात में मेरे लिये गर्म चपातियां सेकी और देरी होने पर खाने की इक्छा नही थी फिर भी उसने प्यार से भोजन परोसा। मैं उसके बनाये खाने को भूल नही सकती, बेहद स्वादिष्ट भोजन। थोड़ी देर बैठी रही पर, रात बहुत हो गई तो मैंने उसे सोने जाने को कहा क्योंकि सुबह उसे ऑफिस जाना था। उस दिन मौसा जी फिरोजपुर गए थे, उनसे मिल नही पाई। फिर रात में हम मौसी- बेटी की बातें चल रही थी। मेरी तबियत सफर के थकान और बदलते मौसम से थोड़ी खराब थी। मौसी ने कहा:-” हल्दी वाला दूध लाती हूं पी ले, या थोड़ी तेल बालों में लगा दूं” पर रात बहुत हो चुकी थी और अब बस सोना चाहती थी। खांसी बहुत तेज़ उठ रही थी और मौसी बीच में पीठ सहलाती रही। युहीं मौसी को माँ-सी नही कहा जाता। मेरी मौसियों ने बचपन से ही बहुत प्यार दिया है।
सुबह जल्दी उठ गई। मौसी बोली चल सोसाइटी घूमा दू, पर फिर मैं अपनी बहन नेहा और आजकल मेरी छोटी मौसी भी वही दिल्ली में ही रहती हैं तो उन सबसे और बच्चों से मिलने में समय का पता नही चला। इस बीच मेरे परम् आदरणीय दंपत्ति राय तपन भारती अंकल और संध्या आंटी से भी मिलने की मेरी हार्दिक इक्छा थी। क्योंकि इस यात्रा के दौरान मुझे इन्होंने भी कई बार और खासकर प्यारी संध्या मामी जी ने भी बड़े प्यार से दिल्ली में आने पर जरूर मिलने को कहा था।

संजय जी, जो मेरे बड़े जेठ जी के दामाद हैं और दिल्ली में ही रहते हैं वो अपनी कार से हमें दिल्ली मेट्रो की सैर कराने ले गए। मेरे बच्चों को मेट्रो देखने की बहुत इक्छा थी। साथ में मेरे जेठ जी के दोनों बेटे नीरज और आलोक भी थे। उन्होंने ने ही मेट्रो घुमाया और अब समय बीतता चला जा रहा था। मैं अपने जेठ जी के घर पहुंची और सभी से मिली। मेरे जेठ जी जेठानी और उनके सभी बच्चे बहुत मिलनसार और अच्छे स्वभाव के हैं। दोपहर भोजन कर हम सब अब वापस पटना लौटने की तैयारी में थे। 4.30 बजे हम स्टेशन, संजय जी की कार से आ पहुंचे।
राजधानी एक्सप्रेस समय से पहुंच चुकी थी। हम सब अपनी आरक्षित सीटों पर बैठ गए, रात्रि स्वादिष्ट भोजन भी मेरी जेठानी जी और उनकी बेटी ममता जी ने बनाकर दे दिया था। अब ट्रेन में बैठकर हम अपनी यात्रा की विषय और अपनों से मिलने की खुशी के बारे में चर्चा कर रहें थे की हमने अच्छे मनःस्थिति में यात्रा का पूरा आंनद लिया।
अब आप सबसे भी विदा लेते हुए किसी नई वास्तविक यात्रा और उसके नए परिदृश्य की तलाश के साथ फिर से मिलने की नई उम्मीद के साथ अपनी उस आखरी किश्त का समापन करती हूँ। (समाप्त)
