रोमांटिक फिल्मों के जादूगर थे यश चोपड़ा

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भूल ना जाना, रखना याद मुझे जब तक है जान, जब तक है जान….

कल (27 सितंबर) जिनका जन्मदिवस था…

यश चोपड़ा वे चरित्रों के बाज़ीगर थे। कहानियों और इंसानी मनोविज्ञान के अंधेरे बन्द कमरों के अंदर झांकने की उनकी क्षमता अदभुत थी।

लेखिका प्रियंका राय, पटना

प्रियंका राय/पटना

रूमानी अंदाज से फिल्मों का निर्देशन करने वाले यश चोपड़ा की ख्याति से हमसब परिचित हैं। यश चोपड़ा का जन्म 27 सितंबर 1932 को लाहौर में हुआ था। उनकी पढ़ाई लाहौर में ही हुई। 1945 में इनका परिवार पंजाब के लुधियाना में बस गया।
यश चोपड़ा इंजीनियर बनने की ख्वाहिश लेकर बंबई आए थे। लेकिन, पढ़ाई के लिए लंदन जाने से पहले ही यश चोपड़ा बतौर सहायक निर्देशक अपने करियर का आरंभ बड़े भाई बीआर चोपड़ाऔर आईएस जौहर के साथ कर दी। उसके बाद वो जैसे सिनेमा के होकर ही रह गए!
1959 में उन्होंने पहली फ़िल्म धूल का फूल” का निर्देशन किया। 1961 में धर्मपुत्र” और 1965 में मल्टीस्टारर फ़िल्म ‘वक्त’ बनाई। तब तक उन्होंने यह साबित कर दिया था कि वो इस इंडस्ट्री को कुछ देने के लिए आये हैं। 1973 में उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी यशराज फिल्मस’ की नींव रखी।
रूखे रूखे से दिखने वाले यश चोपड़ा किस तरह इतनी सरस फिल्में बना लेते थे ये बात किसी को भी अचरज में डाल सकती है। वे चरित्रों के बाज़ीगर थे। कहानियों और इंसानी मनोविज्ञान के अंधेरे बन्द कमरों के अंदर झांकने की उनकी क्षमता अदभुत थी।
यश चोपड़ा को खासकर अमिताभ बच्चन, श्रीदेवी, और शाहरूख खान से विशेष लगाव था।
यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि अमिताभ बच्चन को ‘एंग्री यंग मैन’ की वास्तविक इमेज यश जी ने ही दी थी। इतना ही नहीं अमिताभ बच्चन जब मुफलिसी के दौर से गुज़र रहे थे और इंडस्ट्री ने भी यह मान लिया था कि वे थक चुके हैं तो अमित जी, यश जी के दरवाजे पर ही पहुंचे थे। यश जी ने उन्हें इस बार भी निराश नहीं किया और अपने बेटे आदित्य चोपड़ा के निर्देशन में बनने जा रही फ़िल्म मोहब्बतें में उनको साइन किया। बॉलीवुड में यह अमिताभ का पुनर्जन्म था।
 
श्रीदेवी को जब चाँदनी और लम्हे में लिया तो मानों उनको भी किसी अप्सरा के समक्ष ला कर खड़ा कर दिया। शायद ही इन दो फिल्मों के सिवा श्रीदेवी अपने पूरे करियर में इतनी खूबसूरत दिखीं थीं। वैसे भी यश राज बैनर और खासकर यश चोपड़ा निर्मित फिल्मों की ये खासियत मानी जाती थी कि, उनके फिल्म में अभिनेत्रियां बला की ख़ूबसूरत दिखती हैं।
 
शाहरुख खान के लिए तो यश जी यकीनन ‘गॉडफादर’ ही थे। शाहरुख के करियर की सारी हिट फिल्में लगभग यश जी और उनके बैनर यशराज फिल्म्स की ही हैं जैसे डर, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, दिल तो पागल है, मोहब्बतें, वीर-ज़ारा, चक दे इंडिया, रब ने बना दी जोड़ी, जब तक है जान आदि।
 
यश चोपड़ा को रोमांटिक फिल्मों का जादूगर कहा जाता है। हिन्दी सिनेमा में उनके शानदार योगदान के लिए 2001 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सिनेमा सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। फिल्मों की शूटिंग के लिए यश चोपड़ा का स्विट्जरलैंड प्रिय डेस्टिनेशन था। 25 अक्टूबर 2010 में स्विट्जरलैंड में उन्हें एंबेसेडर ऑफ इंटरलेकन अवॉर्ड से भी नवाजा गया था। स्विट्जरलैंड में उनके नाम पर एक सड़क भी है और वहां पर एक ट्रेन भी चलाई गई है।
 
यश जी ने बहुत कम उम्र में काम शुरू किया था और जब तक है जान की रिलीज़ के बाद सन्यास लेने की सोच रहे थे। लेकिन भाग्य की विडंबना देखिए कि, अपनी आखरी फ़िल्म की रिलीज़ से पहले ही उस कर्मयोगी ने दुनिया से रुखसत ले ली।
 
अंत में यश जी की कुछ पंक्तियां:
 
मेरी टेढ़ी मेढ़ी कहानियां, मेरे हंसते रोते खाब, कुछ सुरीले बेसुरे गीत मेरे, कुछ अच्छे बुरे किरदार, वे सब मेरे हैं, उन सब में मैं हूँ, बस…भूल ना जाना, रखना याद मुझे जब तक है जान, जब तक है जान….

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