“हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया”

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आज (26 सितंबर) जिनका जन्मदिवस है

अपने जमाने में हर जवां दिलों की धड़कन देव आनंद का आज जन्मदिन है. देव आनंद ने भले ही करोड़ों दिलों पर राज किया हो लेकिन उनके प्यार का अंजाम उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाया जिसकी वो चाहत रखते थे.

प्रियंका राय/पटना

लेखिका प्रियंका राय, पटना

देव आनंद की जिंदगी पल-पल बहती कलकल नदी थी. उसमें मोड़ तो खूब आए, लेकिन कभी विराम नहीं आया. अपनी जिंदगी के आखिरी पल तक वह काम करते रहे. उनके नाम के साथ हमेशा सदाबहार लगा रहा और इस शब्द को उन्होंने अपनी फिल्मों के जरिए सच भी साबित किया.

देव आनंद साहब का जन्म पंजाब के शंकरगढ़ (अब पाकिस्तान में) में 26 सितंबर 1923 को हुआ था. उन्होंने लाहौर से अंग्रेजी में पढ़ाई की लेकिन उनका मन तो सिनेमा में बसता था. सिनेमा का ही जादू था कि वो मायानगरी मुंबई तक खींचे चले आए.
 
देव आनंद ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत सन 1946 में फिल्म ‘हम एक हैं’ से की. इस फिल्म में वो हीरो बनकर परदे पर आए, हालांकि फिल्म चल नहीं पाई. इसके बाद साल 1948 में आई ‘जिद्दी’. जिसने देव साहब को हिट बना दिया. देव साहब ने आजादी के बाद देश में उभरे शहरी युवकों का सुंदर प्रतिनिधित्व किया. रोमांच और रोमांस के मिश्रण से उन्होंने रोमांटिक थ्रिलर फिल्में कीं,उन्होंने अपने कॅरियर में ‘गाइड’, ‘पेइंग गेस्ट’, ‘बाजी’, ‘ज्वेल थीफ’, ‘सीआइडी’, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘अमीर गरीब’, ‘वारंट’, ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ और ‘देस परदेस’ जैसी सुपर हिट फिल्में दीं.
 
अपने जमाने में हर जवां दिलों की धड़कन देव आनंद का आज जन्मदिन है. देव आनंद ने भले ही करोड़ों दिलों पर राज किया हो लेकिन उनके प्यार का अंजाम उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाया जिसकी वो चाहत रखते थे.
 
देव आनंद की जिंदगी में प्यार लेकर आईं सुरैया. सुरैया तब तक बड़ी स्टार बन चुकी थीं जबकि देव आनंद कामयाबी की शुरुआती सीढ़ियां चढ़ रहे थे.
अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में देव आनंद ने अपनी लव स्टोरी का जिक्र भी किया है. देवानंद ने लिखा कि ‘काम के दौरान सुरैया से मेरी दोस्ती गहरी होती जा रही थी. धीरे-धीरे ये दोस्ती प्यार में तब्दील हो गई.’
 
“एक दिन भी ऐसा नहीं बीतता था जब हम एक दूसरे से बात ना करें. अगर आमने-सामने बात नहीं हो पा रही हो तब हम फोन पर घंटों बात करते रहते थे. जल्द ही मुझे समझ आ गया कि, मुझे सुरैया से प्यार हो गया है लेकिन उनकी नानी इस प्रेम कहानी में सबसे बड़ी अड़चन थीं. सुरैया के घर में नानी की इजाजत के बगैर कुछ भी नहीं होता था. हमारी प्रेम कहानी की वो विलेन थीं.इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि सुरैया मुस्लिम थीं जबकि मैं हिंदू.”
 
देव आनंद बताते हैं कि ‘सुरैया के लिए मैंने सगाई की अंगूठी खरीदी। मैं अंगूठी लेकर सुरैया के पास पहुंचा लेकिन उन्हें पता नहीं क्या हुआ उन्होंने मेरी दी हुई अंगूठी समुद्र में फेंक दी. मैंने कभी नहीं पूछा कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया. मैं वहां से चला आया. जैसा पहले भी होता आया है मजहब की दीवार के चलते ये प्यार अंजाम तक नहीं पहुंच पाया.
 
ये थी देव साहब की अधूरी प्रेम कहानी, बहरहाल
अपनी अनूठी शैली में जल्दी-जल्दी संवाद बोलने का उनका अनोखा अंदाज लाजवाब था।
एक जमाना वह था, जब देव आनंद की तूती बोलती थी. अपने आकर्षण से किंवदंती बन चुके देव आनंद ने दशकों तक दर्शकों के दिलों पर राज किया है. आज चाहे देवानंद जी हमारे बीच ना हों लेकिन उनकी यादें आज भी हमारे बीच ही हैं.

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