सबको पता है बिल्डर के पास पैसे नहीं हैं, उनके प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि इनमें आम आदमी का पैसा लगा है। उसका भी जिसने घर या दुकान के लिए कर्ज लेकर पैसे लगाए हैं।
संजय कुमार सिंह, सीनियर पत्रकार/ गाजियाबाद
गाजियाबाद जिला प्रशासन ने आज 4 जुलाई को एक बड़ी कार्रवाई करते हुए इंदिरापुरम स्थित हैबिटेट सेंटर मॉल को सील कर दिया। इस मॉल की सीलबंदी के बाद एनसीआर मेें बिल्डरों के होश उड़ गये।
मॉल को सील किए जाने का मतलब है कि समस्या या तो मॉल के बिल्डर से होगी या सभी दुकानदारों से। किसी मॉल में एक भी दुकानदार ऐसा न हो जिससे समस्या न हो और पूरे मॉल को ही सील कर दिया जाए यह जरा अजीब है। इसलिए, संभावना इस बात की ज्यादा लगती है कि समस्या बिल्डर से होगी।
(Exclusive story is wrtten by Mr Sanjaya kr Singh, Journalist)
देश भर में जो हाल है, सबको पता है बिल्डर के पास पैसे नहीं हैं। उनके प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हैं। और कहने की जरूरत नहीं है कि इनमें आम आदमी का पैसा लगा है। उसका भी जिसने घर या दुकान के लिए कर्ज लेकर पैसे लगाए हैं। अब किस्तें जा रही हैं और मकान-दुकान मिले ही नहीं।
ऐसे में अगर इस आधे-अधूरे बने मॉल में दुकानें चल रही हैं तो यह नियमानुसार तो नहीं ही होगा। कायदे से पूरी बिल्डिंग तैयार हुए बगैर एनओसी नहीं दी जाती है। पर यहां अगर विशेष परिस्थिति में दी गई हो तो अब बिल्डर से पैसे वसूलने के लिए दुकानदारों को परेशान करने का क्या मतलब?
जीडीए टीम ने प्रशासनिक अधिकारियों के साथ सुबह-सुबह मॉल पर छापेमारी की और सीलिंग की कार्रवाई की। इससे सारे दुकानदार परेशान हैं। मॉल में घूमने आने वालों को भी परेशानी हुई होगा पर वो तो दूसरी जगह चले जाएंगे।
पैसे वसूलने का पुराना तरीका था कि जिससे पैसे आने हैं उसे पकड़कर बंद कर दो। पर सहारा और दूसरे मामलों में पता चल गया है कि इससे बात बनती नहीं है। दूसरी ओर, इनका धंधा खराब होने से दूसरों के रोजगार धंधे प्रभावित होते हैं। इसलिए मॉल को सील करने जैसी बड़ी औऱ बहुत सारे लोगों को प्रभावित करने वाली कार्रवाई बहुत सोच-समझ कर की जानी चाहिए औऱ इसमें इस बात का तो ख्याल रखा ही जाना चाहिए कि उन लोगों को परेशानी नहीं हो जिसने पैसे चुका दिए हैं।
अगर मॉल अधूरा है तो जाहिर है पैसे उससे नहीं आए होंगे ऐसे में जिससे पैसे आ गए और नियमित आ रहे हैं या आने की संभावना ज्यादा है उसे भी बंद कर देना अक्सलमंदी नहीं है। उल्लेखनीय है कि हैबिटेट सेंटर मॉल का एक हिस्सा बकाया राशि के विवाद को लेकर पहले भी सील हो चुका है। ऐसे में मॉल के बार-बार सील होने से उसकी साख खराब होगी जिसका असल मॉल मालिक पर कम और दुकानदारों पर ज्यादा पड़ेगा।
इंदिरापुरम हैबिटैट सेंटर अभी पूरी तरह बना नहीं है। पर इसमें मॉल में कई शोरूम और कई रेस्त्रां हैं। मॉल को सील करने जैसी कार्रवाई देखिए कितने अगंभीर तरीके से की गई है। राशि सिर्फ अंकों में और काटा-पीटी के साथ कहां कॉमा लगाने के लिए जगह छोड़ी गई और कहां दशमलव के लिए कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
और यह स्थिति तब है जब मामला 50 करोड़ रुपए के करीब का है। मॉल में और भी नोटिस लगाए गए होंगे पर करोड़ों रुपए वसूलने वाला जीडीए एक सार्वजनिक हॉल को सील करने की सूचना देने वाला एक साफ-सुथरा और स्पष्ट नोटिस भी नहीं बना सकता है। तो कल्पना कीजिए कि राशि कितनी गंभीरता से मांगी गई होगी।
पूरे गाजियाबाद में ऐसे कितने मामले हैं। अधूरी इमारतों के मामले में सील करने की कार्रवाई को कोई मतलब नहीं है तो वहां मामला खिंच रहा है और जहां लोग दो पैसे कमा रहे हैं वहां हिस्सा चाहिए। भले वैध रूप से। कारण चाहे जो हो और बकाया चाहे जितना जायज हो मॉल बंद हुआ तो कुछेक नौकरियां यहां भी गईं। और जीएसटी की भी वसूली कम होगी। पर किसे परवाह है? पहली बार सुना कि पूरा का पूरा मॉल ही सील हो गया। कितनी गंभीरता से काम करते हैं हमारे अफसर।