50 एकड़ भूभाग में है स्वामी नारायण का विशाल हिंदू मंदिर
इस मन्दिर में बहुसंख्यक अप्रवासी भारतीय हर रोज आकर दर्शन करते हैं, यहां के भोजनालय में भारतीय शाकाहारी भोजन का आनंद लेते और अपने परिजनों के लिए धार्मिक पुस्तकें,मिष्ठान्न इत्यादि का क्रय कर अपने घर ले जाते हैं, साथ ही इस भव्य मंदिर की सुव्यवस्था की प्रशंसा करते हुए मंदिर की अमिट छाप अपने मन में बसा लेते हैं।
रामसुंदर द्सौंधी/शैंपेन शहर, इलोनाइस राज्य, USA
अमेरिकी यात्रा संस्मरण-10
स्वामी नारायण संप्रदाय हिंदू परंपराओं का नया चेहरा है। वैदिक सिद्धांतों पर आधारित इस संप्रदाय को संपूर्ण मानव जाति के उन्नयन के लिए भगवान स्वामी नारायण की ओर से इसे पूरे विश्व में प्रचारित किया गया। इसी क्रम में शिकागो में इस मंदिर की स्थापना की गयी। शिकागो में यह मंदिर परिसर अनुमानतः 50 एकड़ भूभाग में है।
मंदिर में संगमरमर के पत्थरों से बना विशाल द्वार है जिसमें आने और जाने के लिए अलग-अलग मार्ग है। सामने ही एक बड़े एवं सुन्दर तालाब में काफी ऊंचाई तक प्रवाहित फब्बारा। इसके साथ ही आधे दर्जन छोटे-छोटे तालाबों में प्रवाहित होते कम ऊंचाई वाले नीले रंग के फब्बारे पूरे परिसर की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं।दाहिने एवं बायें भाग से आने एवं जाने के लिए अच्छी सड़कें। अग्रभाग में ही एक तरफ वाहनों के लिए पार्किंग स्थान और पीछे तरफ बड़े भूभाग पर बड़ा पार्किंग स्थान।बाकी बच्चे स्थानों पर हरे-हरे दूब की तरह के घास।
बीच मे है एक बड़ा भवन…जिसमें प्रबंधन से संबंधित व्यवस्था है जैसे जूतों को रखने के लिए दो बड़े बड़े कमरों में सुन्दर रैक बने हैं, अति उच्च गुणवत्ता के दो रेस्ट रूम (शौचालय), विशाल सभागार, पुस्तकों की दूकान, दो बड़े-बड़े लिफ्ट, सीढ़ियां, भोजन कक्ष, खाद्य सामग्री बिक्री कक्ष,भोजनालय इत्यादि।
इसी के बगल में है खूबसूरत नक्काशी के साथ सफेद संगमरमर का भव्य मंदिर। मंदिर के खंभों एवं छत में भी भीतर से खूबसूरत नक्काशी है।मंदिर और भवन आपस में कोरिडोर से जुड़े हुए हैं।मंदिर में भी उपर चढ़ने के लिए सीढ़ियां और लिफ्ट भी बने हैं।पूरा भवन एवं मंदिर परिसर वातानुकूलित है।
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मंदिर के बड़े मुख्य कक्ष में स्वामी नारायण की सुन्दर मूर्ति स्थापित है। एक तरफ दीवारों के किनारे अलग -अलग कक्ष बने हैं जिसमें एक में भगवान राम,माता सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां, दूसरे में है भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और राधा की मूर्तियां और इसी तरह एक अन्य कक्ष में भगवान शंकर और माता पार्वती की मूर्तियां स्थापित हैं।सभी मूर्तियों को अत्यंत खूबसूरती से सजाया गया है।
कोरिडोर की दीवारों को भारत और हिन्दुत्व के द्वारा विश्व को किए गए योगदान संबंधित आलेख वाले विभिन्न बड़े-बड़े पोस्टरों को खूबसूरती से सजाया गया है जिनमें से कुछेक के सारांश को नीचे अंकित किया जा रहा है:
1 विश्व को भारत का योगदान… दर्शन शास्त्र, संगीत से वास्तु कला,शिक्षा से संस्कृति सहित सभी ग्यान क्षेत्रों में भारत आश्चर्यजनक पथ-प्रदर्शक रहा है।इसमें भारत संकीर्ण एवं कट्टरपंथी कभी नहीं रहा है।
2.भारत के विभिन्न दिव्य अवतार: ईमानदारी एवं पारिवारिक मूल्यों के लिए भगवान राम,धर्म की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण एवं ग्यान, भक्ति एवं कर्म योग से संबंधित आत्माओं के परम मुक्ति हेतु मौलिक अग्यान को नष्ट करने वाले भगवान स्वामी नारायण को उल्लिखित किया गया है।
3. भारत के महान संत एव साधक: नारद,शुकदेव, वाल्मीकि, तुलसीदास, कबीर, मीरा, सूरदास, नरसिंह मेहता, गुरु नानक, तुकाराम, संत ग्यानेश्वर,रामकृष्ण परमहंस जैसे संत और साधक ने अपने गहन बुद्धिमत्ता और आध्यात्मिक अनुभव से भारत की शोभा बढ़ाये।
4.भारत के महान आचार्य: वेदव्यास, कपिल, पतंजलि, गौतम बुद्ध, महावीर, आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, रामानन्दाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, माधवाचार्य, वल्लभाचार्य जैसे महान आचार्य हुए।
5.भारत के महान ऋषि महान ऋषि वैग्यानिक वैग्यानिक खोज और अनुसंधान के अग्रदूत रहे। उन्होंने विग्यान, औषधि, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, धातु विग्यान, अंतरिक्ष विग्यान, गणित, ज्यामिति, त्रिकोणमिति, भूगर्भ विग्यान, वनस्पति विज्ञान, वास्तु शास्त्र सहित विग्यान की सभी सीमाओं में खोज की
6.वनस्पति शास्त्र और कृषि का मूल: ईसा से 9,500 वर्ष पूर्व (आज से 11,500 वर्ष पूर्व) ऋग्वेद एवं आयुर्वेद में वनस्पति और कृषि का विस्तृत वर्णन है।
7.भाषा और साहित्य: संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है और ऋग्वेद सबसे प्राचीन साहित्य।तक्षशिला (700 ईसा पूर्व) सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय हुआ जहां 10,500 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। नालंदा, बल्लभी और वाराणसी विश्वविद्यालय भी हुए।
8.ब्रह्मांड विग्यान: आचार्य कपिल, कर्दम एवं देवहूति (3000 वर्ष ईसा पूर्व) ब्रह्मांड विग्यान (Cosmology) के पिता के रूप में जाने गए जिन्होंने सांख्य दर्शन का उपहार दुनिया को दिया।
9.वैमानिकी (Aviation): आचार्य भारद्वाज (800 ईसा पूर्व) आयुर्वेद एवं यंत्र विग्यान के उत्कट देवदूत हुए जिनका आश्रम पवित्र नगर प्रयाग में अवस्थित था। इन्होंने’ यंत्र सर्वस्व’ नामक ग्रंथ की रचना की जिसमें विमानन विग्यान, अंतरिक्ष विग्यान उड़नेवाले उपकरणों की जानकारी है।
इसमें a.धरती पर एक जगह से दूसरी जगह, b.एक ग्रह से दूसरे ग्रह एवं c.एक ब्रह्मांड से दूसरे ब्रह्मांड तक उड़ान भरने की जानकारी दी गई है।
10,औषधि: आचार्य चरक(600वर्ष ईसा पूर्व)औषधि विग्यान के जनक हुए जिन्होंने आयुर्वेद के विश्वकोष ‘चरक संहिता’ की रचना की।
11.अणु सिद्धांत: द्वारका (गुजरात) के समीप प्रभास क्षेत्र के आचार्य कणाद(600वर्ष इशा पूर्व)आणविक सिद्धांत के संस्थापक थे। डाल्टन से 2,500 वर्ष पूर्व इन्होंने बताया था कि सभी वस्तु अणुओं से बने होते हैं।
12.गणित: कुसुमपुरी (बिहार) के आर्यभट (476वर्ष ईसा पूर्व) ने मात्र 23 वर्ष की उम्र में गणित और सौर विग्यान के ग्रंथ ‘आर्यभटीय’ की रचना की और शून्य और पाई का ग्यान दिया। इसके बिना आज के कम्प्यूटर तकनीक का अस्तित्व नहीं होता।
13. पहला अस्पताल: चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य काल(350 ईसा पूर्व)में पहले अस्पताल का निर्माण हुआ जिसमें सामान्य औषधि एवं सर्जरी विभाग, टौक्सीकोलोजी,स्री रोग विभाग,प्रसूति(Obstetrics )विभाग थे।
14.सर्जरी: आचार्य सुश्रुत (6,00 वर्ष ईसा पूर्व) चिकित्सा विग्यान के महारथी थे। इन्होंने ‘सुश्रुत संहिता’नामक ग्रंथ की रचना की जो सर्जिकल विधि का अनोखा विश्वकोष है। ये निश्चेतन एवं प्लास्टिक सर्जरी के जनक हुए।
15.योग: आचार्य पतंजलि (200 वर्ष ईसा पूर्व) उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के थे।इन्होंने विश्व को योग के रूप में अनोखा योगदान दिया है।
इन्होंने 84 योग मुद्राओं को विकसित किया जो स्व अनुभूति, प्रसन्नता और स्व अनुशासन विग्यान में अग्रणी स्थान रखता है।
16.रसायन विज्ञान: नागार्जुन (1,00 वर्ष ईसा पूर्व) मध्यप्रदेश के बालुका गांव से आते थे।
इन्होंने रसायन विज्ञान और धातु विग्यान के संकाय में अभिनव अनुसंधान एवं खोज किया।रस रत्नाकर, रश्रुदय, रसेन्द्र मंगलम, आरोग्य मंजरी, योगासर आदि रसायन विज्ञान के क्षेत्र में इनके योगदान है जो आज भी वैग्यानिकों को प्रभावित और स्तब्ध करते हैं।ये प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी थे।
17.बीजगणित: भास्कराचार्य द्वितीय (1114-1183) जलगाँव (महाराष्ट्र) के विज्जाडित से आते थे।इन्होंने लीलावती, सिद्धांत शिरोमणि एवं सूर्य सिद्धांत ग्रंथ की रचना की।न्यूटन से 500 वर्ष पूर्व इन्होंने गुरुत्वाकर्षण की जानकारी दी थी।
18.खगोल विग्यान: अवन्ति (उज्जैन) के विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक ज्योतिषी और खगोल शास्त्री वराहमिहिर थे जिन्होंने ‘पंच सिद्धांत’नामक ग्रंथ की रचना की जो खगोल विग्यान के क्षेत्र में प्रमुख स्थान रखता है।
18.ज्यामिति: यग्य वेदियों के निर्माण के लिए ज्यामिति का जन्म भारत में हुआ।ज्यामिति पर आधारित मंदिर वास्तुकला के रूप में उपहार है।
भारत और हिन्दुत्व के द्वारा विश्व और मानवता को रेखांकित करते हुए इन फ्रेम्ड पोस्टरों के अमेरिकी भूमि पर प्रदर्शन की एक झलक मात्र से हर भारतीय दर्शनार्थी गौरवान्वित होते हैं।
इस मन्दिर मे बहुसंख्यक अप्रवासी भारतीय प्रतिदिन आकर दर्शन करते हैं, यहां के भोजनालय में भारतीय शाकाहारी भोजन का आनंद लेते हैं और अपने परिजनों के लिए धार्मिक पुस्तकें तथा मिष्ठान्न इत्यादि का क्रय कर अपने घर ले जाते हैं साथ ही इस भव्य मंदिर की सुव्यवस्था की प्रशंसा करते हुए मंदिर का अमिट छाप अपने मन में बसा लेते हैं।
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