मिथिला: पोखरि, पान और मखान कहाँ गया?

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मिथिला से…( 1)

चावल और मिथिला के बीच अन्योन्याश्रय संबंध रहा है!मिथिला का मुख्य भोजन भी और उपज भी चावल ही है! “मखान”मिथिला से ज्यादा मिथिला के बाहर अपना महत्व प्राप्त कर विस्थापन का दर्द झेल रहा है!

ईश्वर करुण/बिहार से लौटकर चेन्नई से रिपोर्टिंग

मिथिला की एक सहज परिभाषा है “पग पग पोखरि पान मखान, ई थिक मिथिला के पहचान. मिथिला की सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और खास कर आर्थिक व्यवस्था में” पोखरि” यानी” तालाब” की सर्वाधिक महत्ता रही है,”पान” आतिथ्य का आधार रहा है और “मखान” स्वर्गिक आनंद देने वाला अद्भुत जलीय फल या ड्राई फ्रूट्स रहा है। इन तीन चीजों में छुपा विकास का अद्भुत तंत्र आज मिथिला के लोग भी भूल रहे हैं तो…फिर विकास के इस सरल सहज प्रामाणिक सूत्र पर भारत सरकार /बिहार सरकार ही भला क्यों सोचे!..

“पोखरि” व्यक्ति के सोशल स्टेटस का प्रतीक था, तो सबल आर्थिक आधार भी. आज “पोखरि” की चिंता किसी को नहीं..वह अपने दुर्भाग्य पर आँसू बहाने लायक पानी रख कर अंदर ही अंदर घुट रहा है ,”पान” में तुलसी यानी तंबाकू घुसकर बलशाली बन कर अड्डा जमाकर अकड़ रहा है, “मखान”मिथिला से ज्यादा मिथिला के बाहर अपना महत्व प्राप्त कर विस्थापन का दर्द झेल रहा है और मिथिला का आर्थिक ढाँचा लड़खड़ाया हुआ ही चल रहा है
चावल और मिथिला के बीच अन्योन्याश्रय संबंध रहा है. मिथिला का मुख्य भोजन भी और उपज भी चावल ही रहा है! तुलसीफूल(भोग), चाननचूर जैसे सुगंधित चावल आज भी बासमती को मात देने में सक्षम हैं,करियाकामरि सहित कई देसी चावल किस्मों का चलन लगभग खत्म हो गया है. मैं जहाँ खड़ा हूँ ये निर्मली है, कभी मिथिलांचल ही नहीं देश की प्रमुख चावल मंडी, जहाँ से नेपाल सहित देश के विभिन्न हिस्सों में चावल का निर्यात होता था. आज यहाँ के चावल मिल लगभग समाप्त हो चुके हैं, मंडी भी अंतिम साँस ले रही है. नेपाल बोर्डर पर अवस्थित निर्मली भौगोलिक शिकार भी होता रहा, कभी जिला के हिसाब से प्रशासन की अव्यावहारिकता तो, कभी यातायात का विनष्ट होना तो कभी बाढ की मार.
मेरे दोस्त आज भी मेरे घर निर्मली चावल के भात की सुगंध से खिंचे मेरे यहाँ आकर मेरा आतिथ्य स्वीकार करते हैं. चावल की मंडी और चावल व्यवसाय प्रगति करे, इसके लिए शुभकामनाएं आप भी मेरे साथ करें और इस दिशा में जो कर सकते हैं करें!

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