Edited by Roy Tapan Bharati, Editor, khabar-india.com
ये साल अब और कितने लाल लेकर जायेगा पता नहीं। एक के बाद एक दिग्गजों का न रहना बहुत बड़ा खालीपन छोड़ जाता है। लेखक और वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर का देहावसान हो गया। कुछ दिन पूर्व ही जवान पुत्र का सदमा था शायद, कभी महसूस तो न होने दिया उन्होंने। राजकिशोर जी का जाना पत्रकारिता के एक सुनहरे युग का अंत है।
1महीने पहले उनके पुत्र का जाना उनके लिए बहुत बड़ा धक्का था और अब वो भी नहीं रहे परिवार के लिए बहुत बड़ा शोक का समय है,ईश्वर उनके परिवार को शक्ति दे इस दुख से उभरने की। विनम्र श्रद्धांजलि।
Devpriya Awasthi: सुबह -सुबह बहुत दुखद खबर। दिग्गज पत्रकार राजकिशोर जी नहीं रहे। हाल ही में उन्होंने अपना जवान बेटा खोया था। वह वज्रपात राजकिशोर जी सहन नहीं कर पाए। भाभी जी को सांत्वना देने के लिए कोई शब्द नहीं सूझ रहे हैं।
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उनके जैसे सामाजिक अध्येता, गम्भीर चिन्तक और गहन विश्लेषक को खो देना वाक़ई हिन्दी पत्रकारिता की अपूरणीय क्षति है. विनम्र श्रद्धाँजलि.
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अभी कुछ ही दिनों पहले उनके युवा पत्रकार पुत्र विवेकराज का असामयिक निधन हो गया था। राजकिशोर जी और हम सब उस दुख से उबर ही रहे थे कि राजकिशोर जी भी हम सबको छोड़कर पुत्र विवेक का अनुसरण करते हुए अनंत की यात्रा पर चले गए। उनके निधन से भारतीय हिंदी पत्रकारिता और खासतौर से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष धारा की पत्रकारिता को अपूरणीय क्षति हुई है।
राजकिशोर जी के साथ हमारे संबंध सरोकार 1977-78 में रविवार के प्रकाशन के समय से ही बन गए थे लेकिन 1982 हम जब कोलकाता में रविवार की संपादकीय टीम के साथ स्वयं भी जुड़ गए तो हमारे संबंध और भी प्रगाढ़ होते गए। रविवार के साथ ही नवभारतटाइम्स टाइम्स में भी हम लोग कुछ समय एक साथ काम किए।
यह कितना दुखद है कि रविवार के संपादक सुरेंद्र प्रताप सिंह, उदयन शर्मा और योगेंद्र कुमार लल्ला जी के बाद अब राजकिशोर जी भी नहीं रहे। पिछले दिनों, उनके बीमार पड़ने से पहले हम और गीता उनके निवास पर गए थे। काफी देर तक सम सामयिक राजनीति, पत्रकारिता और फिर अतीत के झरोखों को साफ करते हुए रविवार, नवभारत टाइम्स, एसपी सिंह, उदयन,राजेंद्र माथुर जी के बारे में बातें होती रहीं। उनका ह्यूमर भी पूर्ववत सामने था। सोशल मीडिया पर उनकी चुटीली टिप्पड़ियां भी पूर्ववत जारी थीं।
कतई नहीं लगा कि वह इतनी जल्दी हम सबको अलविदा कहनेवाले हैं लेकिन नियति को शायद यही मंजूर था। उनके परिवार, खासतौर से पत्नी, विमला भाभी, पुत्री गुड़िया, बहू और उसके बच्चों पर तो दुखों का पहाड़ सा टूट पड़ा है। असह्य दुख और शोक की घड़ी में हमारी सहानुभूति और संवेनाएं उनके साथ हैं। ईश्वर राजकिशोर जी की आत्मा को शांति और विमला भाभी, गुड़िया और बहू-बच्चों को इस दुख को भी बर्दाश्त करने का साहस और धैर्य प्रदान करे।
राजकिशोर जी को अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि और उनसे जुड़ी स्मृतियों को प्रणाम।
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राजकिशोर जी वैचारिक पत्रकारिता में अपना विशिष्ट स्थान रखते थे। उनसे वैचारिक मतभेद रखने वाले पत्रकार भी उनको पढ़ते थे। नई पीढ़ी को उनसे लिखने की शैली मिलती थी। मैं स्वयं नए पत्रकारों को कहता था कि आप उनका लेख पढ़िए, शब्द और वाक्य विन्यास का ज्ञान इस समय उनसे बेहतर और किसी के लेख में नहीं मिल सकता।
अपना परिचय काफी पुराना था। हालांकि पिछले काफी समय से मेरा संपर्क और संवाद नहीं था, फिर भी अपनापन का भाव कभी दूर नहीं हुआ।
लेकिन मृत्यु पर किसी का वश नहीं। यहीं पर आकर अपना सारा अहं ध्वस्त हो जाता है। हम, आप सब उस मौत की अमानत ही तो हैं। कभी किसी क्षण आकर हमें ले जा सकता है। इसीलिए कहता हूं कि किसी स्तर की दुश्मनी, घृणा, विद्वेष क्यों पालना। जब तक हैं प्रेम और सद्भाव से जिएं, जितना बन पड़े एक दूसरे का और समाज का सहयोग करें।
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· Provide translation into English
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Kishore kumar: हिंदी के वरिष्ठ लेखक और पत्रकार राजकिशोर जी अब हम सबके बीच नहीं रहे। पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य, धर्म, सांप्रदायिकता और राजनीति, एक अहिंदू का घोषणापत्र, जाति कौन तोड़ेगा, रोशनी इधर है, सोचो तो संभव है, स्त्री-पुरुष : कुछ पुनर्विचार, स्त्रीत्व का उत्सव, गांधी मेरे भीतर, गांधी की भूमि से आदि वैचारिक लेखन के जरिए समाज को दिशा-दशा देने वाले इस साहित्य मनीषी को भावभीनी श्रद्धांजलि।
उनकी लेखनी से काफी पहले से वाकिफ था। पर व्यक्तिगत रूप से परिचय वरिष्ठ पत्रकार सत्येंद्र रंजन की वजह से हुआ था। कुछ महीनों पहले ही उनके 40 वर्षीय बेटे विवेक का ब्रेन हैम्रेज से निधन हो गया था। इससे उन्हें गहरा सदमा लगा था और वह पूरी तरह टूट गए थे। स्थिति ऐसी बनी कि उन्हें खुद भी एम्स के आईसीयू में भर्ती होना पड़ा, जहां आज सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। परिवार में अब पत्नी और बेटी बची हैं। उन्हें विपत्ति से सहने की शक्ति मिले।
Asima Bhatt: एक शोक ग्रस्त वृद्ध लेखक-पत्रकार मर गया दिल्ली में!
जीते जी उसे देखने-मिलने की फुर्सत शायद किसी को नहीं थी.
अब सबके फेसबुक वॉल शोक संवेदनाओं से पटे पड़े हैं.
दो-चार दिन या एक हफ़्ते भर रूदाली रोना चलेगा…..
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आश्चर्य नहीं हुआ मुझे आपके जाने का.
मुझे पूर्व भान था…
Rest in peace राजकिशोर जी.
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