ये TVS की मोपेड, महिलाओं का एक पूरा बाज़ार है इसकी तुलना AMAZON या FLIPKART से कर सकते।
लेखक: धर्मेंद्र कुमार, डायरेक्टर at DHARMENDRA’S SOCIOLOGY, New Delhi
बेटियों को थोड़ी आज़ादी होती है पर बहुएं (खास कर यंग) घरों में ही रहती हैं,।पर बाजार सबकी जरूरतों को जानता है और अगर ग्राहक बाजार तक नहीं पहुंचता तो बाज़ार खुद आ जाता है।पहले ये बाजार साईकल पर आता था, अब मोपेड पर।इस मोपेड पर माइक भी लगा है।आप फोन करके भी सामान मंगवा सकते हैं।
ये TVS की मोपेड, महिलाओं का एक पूरा बाज़ार है। आप इसकी तुलना AMAZON या FLIPKART से कर सकते हैं।
मेरी भाभियों, चाचियों और बहुओं की आवश्यकता की लगभग सभी वस्त्र इस मोपेड पर उपलब्ध है। इसे हमारी भाषा मे मेहररुई सामान कहते हैं।
औरतें कुछ ले या न लें पर उनके सौदेबाज़ी का पैटर्न फिक्स होता है। जैसे-
“ये साड़ी कैसे?”
“150”
“40 रुपये में दोगे?”
फिर शुरू होता है आधे घंटे की बहस। जिसमें दुकानदार कहता है कि बस सिर्फ दस रुपये की बचत है। और चाची कहती है कि लूट लो…बेवकूफ मत समझो…मुझे रेट पता है.. आदि आदि….।
अंततः 90-100 रुपये पर सौदा पक्का होता है।
हर समाज के व्यक्ति की अपनी आवश्यकताएं होती हैं। वो पूरी कैसे होंगी, ये उनकी संस्कृति निर्धारित करती है।यहाँ के आस पास के गाओं के amazon, flipkart, myntra,snapdeal यही TVS मोपेड है और इसके PROUD OWNER, विकास केशरी जी हैं।