बैंक का संकट खत्म नहीं होगा 2.4 लाख करोड़ के बेलआउट से

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इन बैंकों का बाजार में 8 लाख करोड़ रुपए खराब लोन में डूब चुका है

राय तपन भारती/ संपादक, khabar-india.com
बैंकों की हालत अंदर से बहुत खराब है। वह देश में लोगों को खुले दिल से कर्ज देने की स्थिति में नहीं है। बैंकिंग सिस्टम का एक बड़ा हिस्सा एनपीए यानी कर्ज न चुकाने के कारण डूब गया है। जाहिर है बैंक का यह फंड पहले और मौजूदा दोनों सरकारों की गलतियों से डूबा है। सरकार को बैंकिंग सिस्टम की आर्थिक स्थिति पर एक श्वेत पत्र लाना चाहिए ताकि आयकरदाता सच्चाई से रुबरू हो सकें। हालांकि, अगस्त 2015 में जब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह संदेश दिया कि घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है, तब उनके लिए भी यह एक बड़ी समस्या हो गई थी।
 
अरबों का कर्ज गतालखाते में डूब जाने के कारण सार्वजिनक बैंकों की अंदरुनी हालत अब भी पतली है। यूं तो सरकार ने मनी फ्लो बढ़ाने के लिए सरकार ने 2.4 लाख करोड़ रुपए बैंकिंग सिस्टम को देने की घोषणा की जबकि इन बैंकों का बाजार में 8 लाख करोड़ रुपए खराब लोन में डूब चुका है। यह डूबा हुआ बैंकिंग सिस्टम का तकरीबन 12 फीसदी है। इसका मतलब सरकार बैंकिंग सिस्टम के बारे में झूठ बोल रही है। सरकार की ओर से पैकेज देने पर भी बैंक के उबरने की उम्मीद बहुत कम है।
 
अगर सरकारी बैंकों के रुके हुए कुल कर्ज़ की पूरी वसूली हो जाए तो वह साल 2015 (वित्तीय वर्ष) के रक्षा, शिक्षा, हाईवे और स्वास्थ्य के बजट को पूरा कर सकता है। इंडिया स्पेंड के एक विश्लेषण के मुताबिक़ यह फंसा हुए कर्ज़ – जिसे बैंकिंग की भाषा में नॉन-पर्फामिंग असेट्स (एनपीए) कहा जाता है, 4.04 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है. अगर मार्च 2011 के स्तर से तुलना करें तो 450% की बढ़ोतरी। सरकारी सूत्रों के मुताबिक समस्याग्रस्त बैंकों में 8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लगभग डूबने के कगार पर है उसकी रिकवरी की उम्मीद नहीं के बराबर है।
 
प्राइवेट क्षेत्र के बैंकों में भी एनपीए की समस्या है लेकिन उनके फंसे हुए कर्ज़ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मुकाबले आधे हैं, जो कुल कर्ज़ का 73% है।

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