सदर बाजार, मेरा गांव जनाढ़ और GST: विक्रांत

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दो हजार की आबादी वाले जनाढ़ गांव के 500 से ज्यादा लोग सदर बाजार में काम कर रहे हैं। जब ये आये तो एक दशक तक उन्होंने किसी दुकान में काम किया और 1,990 से 2,000 तक आधे से अधिक के पास अपनी दुकानें हो गईं। 100 से ज्यादा ऐसे हैं जिनके पास अपनी दिल्ली में 5 से ज्यादा दुकानें, 5 से ज्यादा प्लॉट और 25 करोड़ से ज्यादा की प्रॉपर्टी होंगी

विक्रांत वत्सल/ नई दिल्ली

राहुल की तरह मैं भी IIT का पेपर देने के देने के बाद और दाखिले होने से पहले के लगभग एक महीने के टाइम में पापाजी को हमलोगों की जो दवा की दुकान थी उसमें हाथ बंटाया था। राहुल का भी दाखिला NEET परीक्षा के माध्यम से MBBS में होने वाला है। पिछले डेढ़ साल से मेरे साथ वो हॉस्टल में रोहिणी में ही था। राहुल की जिद थी कि आप एक बार सदर बाज़ार आते तो मैं आपको पूरा सदर घुमाता और सब लोगों से मिलवाता। मेरे गाँव जनाढ़ का और सदर बाज़ार का जो आर्थिक संबंध है उसपर कोई पूरा का पूरा Ph.D कर सकता है इतना बड़ा विषय है। ये दावा मैं ऐसे ही नहीं कर रहा हूँ, अगर आप ये लेख पढेंगे तो आपको खुद ही ये महसूस हो जायेगा।
मेरा गाँव जनाढ़, जो मुजफ्फरपुर सीतामढ़ी रोड (NH-77) के बगल में है, यह नेपाल के बॉर्डर के नजदीक में है। बागमती नदी के बाढ़ के कारण यह इलाका लगभग 6 महीने से ज्यादा प्रभावित रहता था। जो सिर्फ खेती पर निर्भर थे वो आर्थिक रूप से काफी परेशान रहते थे। लगभग 1980 के बाद लोगों का पलायन गाँव से शुरू हुआ। मेरा अनुमान है लोगों का तीन समूह बना, एक समूह नेपाल का काठमांडू गया दूसरा समूह असम गया और तीसरा समूह दिल्ली आया। पहले समूह ऐसा कहा जाये की पेट पालता रह गया और वहां तीन दशक बिता दिया, दूसरा समूह भी असम में उल्फा आतंकवादियों के बिहारियों पर हमलों के कारण सफल नहीं हो पायें और सबको लौटना पर गया।
लगभग 2 हजार जनसंख्या वाले हमारा गाँव का 500 से ज्यादा लोग सदर बाजार में काम कर रहे हैं। जब ये आये थे तो लगभग एक दशक तक इन्होने किसी दूसरे के दूकान में काम किया और लगभग 1990 से 2000 तक आधे से अधिक लोगों के पास अपनी दूकान हो गयी। अभी लगभग 100 से ज्यादा ऐसे लोग हैं जिनके पास अपनी दिल्ली में 5 से ज्यादा दूकानें, 5 से ज्यादा प्लोटें और लगभग 25 करोड़ से ज्यादा की प्रॉपर्टी होंगी ही क्योंकि इन सब लोगों को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ।
पुरानी दिल्ली का का यह इलाका, जो नॉन ब्रान्डेड प्रोडक्ट की भारत में सबसे बड़ी मंडी है, से लगभग 100 करोड़ से ज्यादा का व्यापार प्रतिदिन होता है। जो लोग भी यहाँ काम कर रहे हैं उन सबलोगों की सामाजिक भागीदारी बहुत ही उच्च श्रेणी की है। गाँव में इनके चंदे से चार बड़े बड़े मंदिर का निर्माण हुआ, हर साल के दुर्गा पूजा में महायज्ञ का आयोजन करवाते हैं।
कोई पर्व से पहले सदर बाज़ार में अचानक से भीड़ बहुत ज्यादा ही बढ़ जाती है, इतनी भीड़ रहेगी की आप पैदल ढंग से नहीं चल सकते। रक्षाबन्धन आने वाली है लेकिन मैंने वहाँ चहल पहल कम देख के राहुल से पूछ बैठा, क्या बात है सदर में भीड़ नहीं दिख रही है? राहुल ने बोला, सर GST के कारण बाहर के व्यापारी एकदम नहीं आ रहे हैं। जो आ भी रहे हैं वो जितना सामान ट्रोली बैग में भर सकते हैं उतना ही सामान खरीद रहे हैं, ट्रांसपोर्ट वाले सामान लेने से मना कर रहे हैं। इन सबलोगो को GST नंबर लेना है, अब कोई कच्चा काम नहीं होगा, मंथली ऑडिट करवाना पड़ेगा, बोला सर अभी फिलहाल सब कुछ सामान्य होने में लगभग 3-4 महीने लग जायेंगे। इन सब लोगों के साथ रहते हुए मुझे ऐसा नहीं लगता कि मैं गाँव से ज्यादा दूर रहता हूँ। 

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