पत्रकारिता का सफरनामा-2
जब मैं एक टैक्सी से लातूर के गांवों में पहुंचा तो तबाही का भयानक मंज देखा। किल्लारी में मलबों से शव और कीमती वस्तुएं निकालने का काम रात में भी जारी था। इस इलाके में अंगूर की बेहतरीन खेती होती है। अच्छी आमदनी के बावजूद बहुत कम किसानों ने पक्के मकान बनवाये थे।
Written by Roy Tapan Bharati
महाराष्ट्र के दैनिक लोकमत समाचार ने मुझे राष्ट्रीय स्तर की जोखिम भरी रिपोर्टिंग के कई अवसर दिये जिससे मैं ऐतिहासिक पलों का साक्षी बन सका। मुझे आज भी याद है कि 30 सितंबर 1993 को तड़के 3 बजे महाराष्ट्र में भूकंप आया तो लातूर से लेकर नाशिक तक की धरती हिल गई। भूकंप के हलचल को मैंने नागपुर में सोमलवाड़ा के अपने तपोवन आवास में भी महसूस किया। उसी वक्त मन में ख्याल आया कि कोई अनहोनी तो नहींं हो गई। अगले कुछ ही मिनटों में आकाशवाणी ने जलजले से आई तबाही का संकेत दे दिया, तब टीवी की उतनी लोकप्रियता नहीं थी। दूरदर्शन था पर चौबीस घंटे की खबरें नहीं थी।
बीहड़ रिपोर्टिंग का जज्बा मेरे अंदर जबरदस्त था और तमाम संपादकों से ऐतिहासिक रिपोर्टिग का एसाइनमेंट मांगा करता था। लोकमत में संपादक एस एन विनोद जी से लेकर सुनील श्रीवास्तव जी तक सब मेरी सलाह ध्यान से सुनते थे। ऐसा ही जज्बा रांची के प्रभात खबर, पाटलिपुत्र टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा, टोटल टीवी में भी रहा। और कुछ ही पल में मुझे नागपुर से लातूर जाने की इजाजत मिल गई।
मैं उस दिन टैक्सी या ट्रेन के बजाय बस से निकला। शाम तक मैं लातुर पहुंच गया। छोटा शहर। शहर में चारों तरफ गाड़ियां ही गाड़ियां। देश-विदेश के तमाम कोनों से 80-90 पत्रकार और फोटोग्राफर आ चुके थे। होटल में कमरे खाली नहीं थे। एक स्थानीय पत्रकार की मदद से एक मंझोले होटल में मुझे एक कमरा मिला तो मेरी जान में जान आई।
वहां जाने के पहले ही मुझे पता लग गया था कि 6.4 तीव्रता के आए भूकंप ने पूरे लातूर जिले में भारी तबाही मचा दी है। इस भूकंप में जिले के 52 गांव पूरी तरह से तहस-नहस हो गए। भूकंप का सर्वाधिक असर लातूर के औसा ब्लॉक और बगल के उस्मानाबाद जिले में हुआ था। लातूर में आए भूकंप का केंद्र किलारी नामक स्थान था। ऐसा माना जाता है कि जहां भूकंप का केंद्र था, उस जगह कभी एक बड़ा सा क्रेटर (ज्वालामुखी मुहाना) हुआ करता था।
जब मैं एक टैक्सी से लातूर के गांवों में पहुंचा तो तबाही का भयानक मंज देखा। किल्लारी में मलबों से शव और कीमती वस्तुएं निकालने का काम रात में भी जारी था। इस इलाके में अंगूर की बेहतरीन खेती होती है। अच्छी आमदनी के बावजूद बहुत कम किसानों ने पक्के मकान बनवाये थे। ज्यादातर पत्थरों और कच्ची मिट्टी से जोड़कर बनाये मकानों में रहते थे। महज 6 रिक्टर स्केल के भूकंप ने डक्कन की तलहटी में आने वाले भूकंप ने लातूर में सैकड़ो की जान ले ली।
लातूर के भूकंप पीड़ितों का दर्द समझने और राहत कार्यों का जायजा लेने के लिए करीब एक सप्ताह तक लातूर में रहा। आज भी मुझे याद है कि तब के प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहराव लातूर के गांवों का जायजा लेने आये तो प्रशासन के निर्देश पर मैं भी पीएम की मीडिया टीम में शामिल हुआ। इस दौरे में मुझे प्रधानमंत्री के साथ रहने और उन्हें भूकम्प पीड़ित गांवों का दर्द बताने का अवसर मिला। जब मेरे पिता को पता चला कि भूकम्प की त्रासदी में चौतरफा दिक्कतों के बाद भी मैं रोज रिपोर्टिंग कर रहा तो उन्होंने फोन पर कहा- तपन, तुम्हारा यह जज्बा पत्रकारिता के ऊंचे मुकाम तक पहुंचाएगा।
लातूर के भूकंप की रिपोर्टिंग को 24 साल बीत चुके हैं। पर आज भी मुझे याद है कि लातूर में लगभग रोज भूकंप आता था इस वजह से हम होटल में रात में ठीक से सो नहीं पाते थे। एक सप्ताह की तूफानी रिपोर्टिंग कर नागपुर लौटा तो आराम करने के बजाय लातूर के भूकंप से तबाही पर सीरीज लिखना आरंभ कर दिया। मैं मराठी कम जानता था पर कुछ पत्रकार मित्रों ने बधाई दी कि लोकल मराठी अखबारों से भी बेहतर रिपोर्ट हिन्दी दैनिक लोकमत समाचार में छपी। (कल तक इंतजार करें अगली किस्त का)
Comments on Facebook:
Amit Sharma: सही कहा आपने लातूर का भूकंप किसी त्रसादी से कम न था उस हालात मे वहॉ जाकर रिपोर्ट करना वेहद कठिन कार्य था…हिम्मत को सलाम।
Ssangeeta Tiwari: प्राकृतिक प्रकोप।
Shivam Bhardwaj: तब के परिदृश्य पर बहुत अच्छा लेख लिखा।