कमालपुर गाँव -माँ गंगा में विलीन एक समृद्ध गाँव
आदरणीय संगीता जी जो मेरी चाची लगती हैं ,जिन्होंने अपनी कल्पना के आधार पर बड़े-बूढ़ों से सुनकर कमालपुर गाँव का जो चित्रण किया है वह बिलकुल सटीक और सुंदर है |
वैसे यह गाँव गंगा की गोद में लगभग 35 वर्ष पूर्व ही समाहित ही गया था| इसका मुख्य कारण बंगाल में फरक्का के पास गंगा नदी में बैरेज सह सड़क का निर्माण होना है | गंगा नदी पर इस बैरेज के बनने से नदी में बालू का जमाव बहुत होने लगा ,जिससे उस क्षेत्र के गंगा नदी की गहराई कम होती गई | गहराई कम होने तथा बैरेज से नदी के पानी के प्रवाह कम
होने से बाढ़ के समय गंगा नदी के पानी आस-पास के गांवों में फैलने लगे
जिससे गांवों के खेतों की चिकनी मिट्टियों का काटा तेजी से होने लगा | इस तरह कई गाँव गंगा के जल में विलीन होते चले गए और इसमे हमारा सभी तरह से समृद्ध और उन्नत गाँव कमालपुर भी है |
अब यह गाँव एक पूर्ण दियारा का रूप ले लिया है | उस दियारे में कलाई ,
जिसे काला सोना भी कह जाता है की खेती बहुतायत में होती है | इसकी खेती में ज्यादा मेहनत भी नहीं करना पड़ता है | गंगा में बाढ़ के बाद जब पानी घटने लगता है ,तो किसान दियारा के दलदल भरे क्षेत्र में कलाई के बीज छींट देते हैं | फसल के पकने पर पुलिस फोर्स की सहायता से कटाई जाती है ,क्योंकि दबंगों की लुटपाट में कई बार खून-खराबा हो जाया करता है | इसके अलावा दियारा पर परवल ,तरबूजा ,खीरा ,ककड़ी आदि की खेती प्रचुर मात्रा में की जाती हैं | ये सभी छोटी जाति द्वारा बटाई पर ही की जाती है |
जैसा कि संगीता जी ने बताया है कि उस समय इस गाँव में सत्तर-अस्सी घर स्वजातीय थे | अन्य जातियाँ जैसे ब्राह्मण ,राजपूत ,खैरवार (जन-जाति )
आदि भी थे | इनमें खैरवारों की संख्या भी अधिक थी ,जो काफी मेहनती और खेती के कार्य करने वाले होते थे |
माँ गंगा की गोद में विलीन हो जाने के कारण इस गाँव के सभी लोग कटिहार ,मनिहारी ,पूर्णियाँ आदि निकट के शहरों में आकर बस गए हैं |
मुझे अभी भी अपने बचपन की वो भूली-विसरी कुछ सुंदर यादें मेरे मानस -पटल पर आज भी आंकित हैं ,जो गाँव की यादें जागृत होते ही झंकृत हो उठी हैं | मैं अपने गाँव परिवार सहित 1965 में गया था | उस समय मेरी उम्र लगभग 11या 12 साल रही होगी | उस समय मेरा और मेरे सभी भाइयों का उपनयन संस्कार गाँव में ही हुआ था | उस समय मेरे दादा स्व अनंत प्रसाद राय और दादी जीवित थीं | गाँव का वातवरण बहुत ही सुंदर और सुहावना था | गाँव के सभी लोगों में काफी प्रेम था | सभी कोई एक-दूसरे की मदद करने में सदा तत्पर रहते थे | बचपन और लड़कपन जनित स्वभाव से कभी दौड़कर आम के बगीचे में जाकर पेड़ों से पके -पके आम बड़े चाव से खाता तो कभी खेतों में जाकर चने की झंगरी उखाड़ लाता और लड़कों के संग मिलकर बड़े चाव से खाता |
उस समय गाँव में शिक्षा काफी उन्नत थीं | गाँव में एक प्रतिष्ठित उच्च विद्धलय भी था | उच्च शिक्षा के लिए लड़के गाँव से बाहर चले जाया करते थे |
अभी भी मनिहारी से साहेबगंज जाने के लिए लोग स्टीमर का ही इस्तेमाल करते हैं | मनिहारी घाट से कमालपुर दियारा दूर से ही दिखाई पड़ता है जहां खेती करने के लिए जाने के लिए नावों का इस्तेमाल कराते हैं |
छट पूजा के अवसर पर गंगा में स्नान करने वालों मनिहारी गंगा घाट पर काफी भीड़ हो जाती है | सारा गंगा घाट मेले जैसा प्रतीत होता है | उस अवसर पर गंगा में स्नान करने वालों के लिए रेलव द्वारा कटिहार से मनिहारी कई स्पेशल ट्रेनें चलाई जाती हैं |
मनिहारी में जो पीर पहाड़ है वह हजरत जीतन शाह रहमतुल्ला का मजार है ,जहां सभी धर्मों के लोग जाते हैं और मन्नतें मांगने पर उनकी मन्नतें अवश्य पूरी होती हैं |
सरकार ने मनिहारी से साहेबगंज तक चार लेन के पल का निर्माण गंगा नदी पर होने वाला है ,जिसका शिलान्यास किया जा चुका है | इस पुल के बन जाने से उत्तरी बिहार और झारखंड से संपर्क हो जाएगा और यातायात सुलभ हो जाएगा | साहेबगंज से गोबिंदपुर ( धनबाद ) G.T रोड तक फोर-लेन का निर्माण हो चुका है |
मैंने अपनी जानकारी के अनुरूप अपने गाँव कमालपुर का विस्तृत चित्रण कर दिया है | बाँकी तो हमारी आदरणीय चाची संगीता जी ने भी गाँव के बारे में विस्तृत जानकारियाँ दे चुकी हैं | मेरी किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा करेंगे |