किसी के इशारे पर नहीं चलते नीतीश

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेजोड़ हैं। इनकी राजनीति के सामने सबकी राजनीति बेकार है। नीतीश कुमार का साफ़ सन्देश है कि जदयू अध्यक्ष किसी के इशारे पर नहीं चलते बल्कि वही करते हैं जो उनके मुताबिक उनकी पार्टी के लिए सही है।

अखिलेश अखिल, वरिष्ठ पत्रकार/नई दिल्ली 
राजग के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के समर्थन में उतरे जदयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीति सबसे जुदा है। नीतीश की ऐसी कोई पहली बार देखने को नहीं मिल रही है। उनकी राजनीति बार बार देश को चकित करती रही है और बिहार को असमंजस में भी डालती रही है। नीतीश अपने आप में राजनीतिक प्रयोगशाला हैं। उनका टेस्ट डराता भी है, हंसाता भी है और कभी-कभी भरमाता भी है। राजनीति अगर एक भ्रम है तो नितीश उस भ्रम के एक मजबूत खिलाड़ी हैं, मदारी हैं और जादूगर भी। उनका प्यार कब किस पर बरस जाय और कब किससे सरक जाए भला कौन जाने। नीतीश कुमार राजनीति के लिए भी एक पहेली हैं और मीडिया के लिए भी एक अनुभूति।
कौन जानता था कि लालू विरोध के नाम पर लालू से अलग होने वाले नीतीश बीजेपी के साथ गठबंधन कर लेंगे। यह भी कोई नहीं जानता था कि गुजरात दंगा मसले पर तबके पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के विरोध में वे राजग से अपना पुराना नाता तोड़ लेंगे। लेकिन उन्होंने ऐसा किया। उन्होंने ही तो महागठबंधन की रचना की। फिर से लालू प्रसाद के गले लगे। सरकार बनायी। मुख्यमंत्री बने।
नीतीश कुमार यहीं नहीं रुके। बार-बार मोदी सरकार को ललकारा भी और पुचकारा भी। हर पुचकार के साथ नीतीश की राजनीति राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खिंया बनी। नीतीश आगे बढे। विपक्षी एकता की राजनीति को आगे बढ़ाने की पहल भी की। उन्हें लगा कि विपक्ष एक होकर मोदी-शाह की राजनीति पर नकेल कस सकता है। कई ऐलान हुए। मिलने-मिलाने का सिलसिला चला। लेकिन नीतीश कुमार, सोनिया के घर विपक्षी नेताओं की बैठक में शामिल नहीं हुए। सोनिया ने विपक्षी एकता से जुड़े नेताओं के लिए भोज का आयोजन किया था। सब पधारे लेकिन नीतीश नहीं आये। लेकिन इस घटना के दूसरे दिन नीतीश पीएम मोदी के एक कार्यक्रम में आ पहुंचे जहा मौरीशस के प्रधानमन्त्री आये थे। नीतीश तमिलनाडु भी गए जहां द्रमुक नेता का जन्मदिन मनाया जा रहा था। अन्य विपक्षी नेताओं के समागम कार्यक्रम में नीतीश जमकर बोले भी। लेकिन राष्ट्रपति चुनाव के मसले पर नितीश राजग उम्मीदवार कोविंद के साथ खड़े हो गए अंगद की पांव की तरह।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेजोड़ हैं। इनकी राजनीति के सामने सबकी राजनीति बेकार है। नीतीश कुमार का साफ़ सन्देश है कि जदयू अध्यक्ष किसी के इशारे पर नहीं चलते बल्कि वही करते हैं जो उनके मुताबिक उनकी पार्टी के लिए सही है। जाहिर है पार्टी के भीतर उनके फैसले पर चर्चा हुई होगी। सबकी राय बनी होगी। भविष्य की राजनीति खड़ी हुई होगी तभी कोविंद के समर्थन में वे आये होंगे। जाहिर है कि नीतीश के इस फैसले से विपक्ष खफा है लेकिन विपक्ष मजबूर भी है। एक कहानी यह है कि विपक्ष की राष्ट्रपति उम्मीदवार मीरा उसी बिहार से हैं और दलित हैं जहां नीतीश वर्ष 2005 से शासन करते आ रहे हैं। जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा, नीतीश समय-समय पर ऐसे विरोधाभासी फैसले लेते हैं, जो उन्हें लगता है कि जनहित में हैं। वह 17 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में धारा के विपरीत जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने सत्तारूढ़ राजग को ऐसे मुद्दों पर समर्थन दिया है जिनकी विपक्ष ने आलोचना की, मसलन पिछले वर्ष अक्तूबर माह में सर्जिकल स्ट्राइक और नवंबर में उच्च मूल्य वाले करंसी नोटों पर प्रतिबंध का राजग का फैसला। वर्ष 2012 के राष्ट्रपति पद के चुनाव में उन्होंने तत्कालीन गठबंधन सहयोगी राजग को तब हैरत में डाल दिया था जब उन्होंने राजग के उम्मीदवार पीए संगमा के खिलाफ संप्रग के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को समर्थन दिया था। बताया जाता है कि ऐसा उन्होंने मुखर्जी के साथ व्यक्तिगत संबंध होने के कारण किया था।
संभव है कि बिहार की दलित मतदाता को लुभाने के लिए ही नीतीश यह खेल कर रहे हों ? लेकिन मीरा भी तो दलित है ? जाहिर है नीतीश भविष्य की राजनीति पर ज्यादा यकीं करते हैं। कोई कारक ऐसी है जो अभी समझ से परे है। इतना तो साफ़ है कि वर्तमान विपक्ष को भारी झटका लगा है लेकिन ये भी साफ़ है कि मौक़ा मिलने पर नीतीश बहुत जल्द मोदी सरकार पर भी हमला करने से चुकने वाले नहीं है। हो सकता है कि मुद्दों आधारित समर्थन वाली उनकी राजनीति आज विपक्ष को बेकार लगे लेकिन ऐसा भी संभव है कि यही बेकार की राजनीति विपक्ष के लिए भविष्य में तारणहार ना बन जाए।
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