छत्तीसगढ़ में बरसात में भी नक्सल आपरेशन जारी रहेंगे। रावघाट माइनिंग एरिया में एंटी नक्सल ऑपरेशन के तहत ऑपरेशन तेज हो रहे हैं। इसके अलावा रात्रि गश्ती, यूएवी और द्रोण से मॉनीटरिंग दिन के अलावा रातों में की जा रही है ताकि माओवादियों की हर मूवमेंट पर फोर्स नजर रखी जा सके।
प्रमोद ब्रह्मभट्ट वरिष्ठ पत्रकार, रायपुर
जम्मू कश्मीर में देश की सुरक्षा करते हुए लंबा अरसा बिताने वाले बीएसएफ इंटेलीजेंस डिपॉर्टमेंट के नए डीआईजी आईएस राणा के हवाले से यह बात कही गई है कि छत्तीसगढ़ में बरसात में भी नक्सल आपरेशन जारी रहेंगे।
पत्रकारों से उन्होंने कहा कि रावघाट माइनिंग एरिया में एंटी नक्सल ऑपरेशन के तहत ऑपरेशन तेज हो रहे हैं। इसके अलावा रात्रि गश्ती, यूएवी और द्रोण से मॉनीटरिंग दिन के अलावा रातों में की जा रही है। ताकि माओवादियों की हर मूवमेंट पर फोर्स नजर रख सके।
कांकेर में तैनाती के पूर्व बंगाल से आई नई बटालियन को प्री इंडक्सन ट्रेनिंग देकर उन्हें मानसिक रूप से जंगलों में रहने के लिए तैयार किया जा रहा है। वहां की मूलभूत समस्याओं से उन्हें अवगत कराया जा रहा है। बरसात में भी बीएसएफ अपना सर्च ऑपरेशन जारी रखेंगे।
उन्होंने कहा कि अगर कश्मीर में जिहाद हावी है तो छत्तीसगढ़ में माओवादियों की सोच। जिसके कारण भोले-भाले आदिवासी माओवादियों के बीच पीस रहे हैं। हाल ही में सुकमा में सीआरपीएफ जवानों पर माओवादी हमले का जिक्र करते हुए डीआईजी राणा ने बताया कि माओवाद प्रभावित क्षेत्र में यह उनकी पहली पोस्टिंग है। ऐसे में बॉर्डर से ज्यादा यहां फोर्स को अपनी काबिलियत साबित करना एक बड़ी चुनौती है। बॉर्डर से ज्यादा जंगलों में फोर्स को अलर्ट रहना पड़ता है। बॉर्डर में दुश्मन सामने होता है पर जंगलों में माओवादी छिपे हुए हैं। इसलिए सुकमा हमले के बाद एंटी नक्सल ऑपरेशन में तैनात सभी सुरक्षाबल और स्थानीय पुलिस मिलकर काम कर रही है।
बुनियादी सुविधाओं के विकास से जल्द बदल सकते हैं हालात
उन्होंने कहा कि विकास की मुख्य धारा से कटे हुए क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं के विकास से हालात जल्द बदल सकते हैं। माओवाद प्रभावित बस्तर में भी विकास कार्यों से लोगों की सोच बदलेगी तो वो फोर्स और पुलिस की मदद जरूर करेंगे। उन्होंने बताया कि रावघाट में लगातार बीएसएफ विकास योजनाएं जैसे सड़क, बिजली, पानी और मोबाइल टॉवर लगाने के काम में सुरक्षा दे रही है। जवान 24 घंटे मुस्तैदी से तैनात होकर उनकी सुरक्षा में लगे हुए हैं। वहां के आदिवासी भी बीएसएफ पर भरोसा करने लगे हैं।