बैंकों के कर्ज ना चुकाने वाली कंपनियों पर आखिरकार कार्रवाई की शुरुआत हुई है। आरंभ उन 12 खातेदारों से होगा, जिन पर कुल नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) का एक चौथाई हिस्सा बकाया है। रिजर्व बैंक ने इन खातेदारों पर तुरंत ऋण चुकाने में अक्षमता एवं दिवालिया संहिता के तहत कार्रवाई का आदेश कर्जदाता बैंकों को दिया है।
विशेष संवाददाता/नई दिल्ली
सरकारी बैंक से कर्ज लेकर भागते फिरने वाले अब बच नहीं पाएंगे। सरकार ने इन्हे पकड़ने की पूरी तैयारी कर ली है। सरकार अब ऐसे लोगों पर लगाम लगाने की पूरी तैयारी कर ली है। जैसे-जैसे राज्यों के चुनाव सामने आते जाएंगे सरकार कर्जखोरों पर शिकंजा कसते जायेगी। इस शिकंजे के दो लाभ हैं एक राजनीतिक लाभ है जो जनता में यह मैसेज देगा कि मोदी सरकार ने जो कहा सो किया। और दुसरा लाभ ये है कि पैसे लौटेंगे तो बैंक की हालत ठीक हो सकेगी।
बैंकों के कर्ज ना चुकाने वाली कंपनियों पर आखिरकार अब कार्रवाई की शुरुआत हुई है। आरंभ उन 12 खातेदारों से होगा, जिन पर कुल नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) का एक चौथाई हिस्सा बकाया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने इन खातेदारों पर तुरंत इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (ऋण चुकाने में अक्षमता एवं दिवालिया संहिता) के तहत कार्रवाई का आदेश कर्जदाता बैंकों को दिया है। पिछले 31 मार्च तक सरकारी बैंकों के 7.11 लाख करोड़ रुपए के कर्ज को एनपीए माना गया था। अत: अनुमान है कि इन 12 खातेदारों पर 1.78 लाख करोड़ रुपए का बकाया होगा। आरबीआई ने अभी इन खातेदारों का नाम नहीं बताया है। यह अपेक्षित होगा कि उनके नाम सार्वजनिक किए जाएं ताकि देश को पता चल सके कि देश को बर्बाद करने में किन किन लोगों की सहभागिता है। सरकार से पैसे लेकर पैसा नहीं लौटाना एक अपराध है। आम जनता को यह सुविधा नहीं मिलती। बड़े लोग और कॉर्पोरेट घराने सरकारी कर्मचारी और नेताओं से मिलकर बैंको को अब तक खोखला करते रहें। सरकार अभी तक इस खेल पर चुप्पी ही साधे रही है। अगर इन लोगो के नाम सामने आएंगे तो जनता को इनके चेहरे भी दिखेंगे। यह बात और है कि मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद से ही ऐसे लोगों पर लगाम कसने की तैयारी में है। अब इसमें देरी करने की भी कोई जरुरत नहीं है। एनडीए सरकार ने आरबीआई अधिनियम में संशोधन किया है । इससे रिजर्व बैंक को कर्जदाता बैंकों को दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्देश देने का अधिकार मिल गया है । इससे पहले इस तरह की व्यवस्था नहीं थी।
विधि विशेषज्ञों के मुताबिक इसके तहत पहला कदम कर्जदार कंपनी का प्रबंधन संभालने के लिए किसी पेशेवर कर्मी की नियुक्ति होगा। इसके लिए बैंकों को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के पास जाना होगा। नियुक्ति के बाद पेशेवर कर्मी को ऐसा व्यावहारिक समाधान पेश करने के लिए छह महीनों का वक्त मिलेगा, जिससे कंपनी कर्ज चुका सके। जरूरी होने पर इस समयसीमा को तीन महीनों के लिए और बढ़ाया जा सकेगा। इसके बावजूद कंपनी कर्ज चुकाने में अक्षम रही, तो फिर कंपनी के विघटन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इस दौरान कंपनी के मालिकों और कर्मचारियों को दावे पेश करने का मौका मिलेगा। उन सब पर विचार करने के बाद ट्रिब्यूनल अपना फैसला देगा। मगर उसे हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी। हाई कोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट का विकल्प खुला रहेगा। इसलिए यह आशा करना ठीक नहीं होगा कि जल्द ही कर्ज ना चुकाने वाले दंडित हो जाएंगे। लेकिन ताजा कदम से देर-सबेर ऐसा होने की संभावना जरूर पुख्ता हुई है।
इसका दूरगामी प्रभाव होगा। इससे ये धारणा टूटेगी कि धनी-मानी कर्जदारों का कुछ नहीं बिगड़ता है। अब कर्जदार कंपनियां पहले की तरह निश्चिंत नहीं रह सकेंगी। किसान कर्ज माफी की वकालत करने वाले लोगों का यह तर्क अब कमजोर पड़ेगा कि जब कॉरपोरेट सेक्टर के कर्ज बिना किसी कार्रवाई के छोड़ दिए जाते हैं, तो ऐसा किसानों के साथ क्यों नहीं होना चाहिए? स्पष्ट है, इससे बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में स्थिरता व उत्तरदायित्व भाव आएगा। अत: आरबीआई और कर्जदाता बैंकों को पूरी तत्परता से इस कार्रवाई को आगे बढ़ाना चाहिए। सरल और सख्त शब्दों में यह संदेश देना अति-आवश्यक है कि कर्ज ना चुकाना अब सुरक्षित नहीं है। ये धारणा बनना अनिवार्य है कि बड़े पूंजीपति हों या किसान या फिर कोई आम इंसान, कर्ज वसूली में सबके साथ व्यवहार होगा।
भारत सरीखे देश में अब तक ना जाने कितने लोग बैंको से भारी कर्ज लेकर चम्पत होते रहे हैं। कांग्रेस सरकार के समय में यह खेल कुछ ज्यादा ही चलता रहा। उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी सरकार रिकवरी करेगी और कर्जदारों को दण्डित भी करेगी।
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