पिछले 3 महीने में ही 500 से ज्यादा किसानों नेअपनी जान गंवाई है। मध्यप्रदेश में फैला किसान विद्रोह सरकार की नीतियों का पोल खोलता है। लेकिन सरकार को भला इससे क्या मतलब ? किसानों को राहत देने के लिए सरकार के पास कोई उपाय नहीं है।
अखिलेश अखिल, वरिष्ठ पत्रकार/नई दिल्ली

लेकिन कहानी इतनी भर ही नहीं है। नुकसान की कर्जमाफी से देश का बुरा हाल होगा लेकिन तमाम निजी संचार कंपनियों के कर्ज को माफ़ करने से देश को कोई नुक्सान नहीं होगा। ये बातें इसलिए कही जा रही है कि पिछले दिनों देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य ने सरकार से कहा है कि देश की टेलीकॉम कंपनियों का बैंक कर्ज अब 4 लाख करोड़ के पार जा चुका है। भट्टाचार्य ने कहा कि सरकार को इससे निपटने के लिए अब इन कंपनियों को छूट और स्पेक्ट्रम भुगतान के लिए अधिक समय देने जैसे राहत उपायों पर जोर देना चाहिए। यानी 4 लाख करोड़ के कर्ज में डूबी टेलीकॉम कंपनियों को सरकार बड़ी राहत देने के मूड में हैं। रिपोर्ट कहती है कि सरकार एजीआर यानी एडजेस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू लाइसेंस फीस को 8 फीसदी से घटाकर 5-6 फीसदी कर सकती है।

ऐसे में साफ़ है कि हमारे देश में किसानों को लेकर केवल राजनीति होती है। किसी भी सरकार ने किसानों को लेकर कोई उचित काम नहीं किया है। मोदी सरकार की सत्ता में वापसी किसानों की बात करके ही हुई थी।
