सपा-बसपा की एकता से बदल जाएगी भारतीय राजनीति

0
723

सपा और बसपा के रिश्तों में बीते 22 साल से जमी बर्फ अब पिघल रही है। बदलते हालात में सपा और बसपा एक मंच पर आकर मोदी की अगुवाई वाली भाजपा को चुनौती दे सकते हैं।

अखिलेश अखिल/वरिष्ठ पत्रकार, नई दिल्ली

अखिलेश अखिल/वरिष्ठ पत्रकार

सामाजिक स्तर पर दलित और पिछड़े कभी एक नहीं हुए। पिछड़ों और दलितों के बीच कभी भाईचारे वाली बैठके नहीं हुयी।  दोनों समाज अपने को अब्बल मानते रहे। उधर देश की राजनीति जिस पटरी पर चल निकली थी उसमे दलित और पिछड़े केवल वोटबैंक का हिंसा बनते रहे। चुनावी राजनीति का यह खेल वर्षों तक चलता रहा। इसी बीच दलित और पिछड़े राजनीति को अंजाम देने के लिए कई नेता उदित हुए।

कुछ ने दोनों समाज को एकजुट करने की कोशिश भी की लेकिन सदियों से एक दूसरे को बौना साबित करने में लगा यह समाज एक नहीं हुए। अलग-अलग राजनीतिक दुदुम्भी बजती रही। हार-जीत की कहानी बनती रही। लेकिन अब राजनीति करवट लेती दिख रही है। जिस तरह से राजद नेता लालू प्रसाद गांधी मैदान पटना में रैली आयोजित कर एक ही मंच पर मायावती और अखिलेश यादव को ला रहे हैं वह कोई मामूली राजनीतिक खेल नहीं है। अगर ऐसा हो गया तो भारतीय राजनीति की दशा और दिशा बदल सकती है। पटना में 27 अगस्त की इस रैली को लेकर बीजेपी की चिंता भी बढ़ती दिख रही है। उसे लगने लगा है कि अगर पिछड़े और दलित एक हो गए तब बीजेपी की राजनितिक यात्रा पता नहीं कहा और कब रुक जाए।

राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की 27 अगस्त को होने वाली रैली में बसपा अध्यक्ष मायावती और सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव के एक मंच पर एक साथ आने से केन्द्र की सत्तारूढ़ भाजपा की चिंता बढ़ गई है। बीजेपी की परेशानी ये है कि इस मंच पर ऐसा कुछ घटित होने जा रहा है जो पिछले 20 साल में नहीं घटा है। सपा और बसपा के रिश्तों में बीते 22 साल से जमी बर्फ अब पिघल रही है।

बदलते हालात में सपा और बसपा एक मंच पर आकर मोदी की अगुवाई वाली भाजपा को चुनौती दे सकते हैं। आपको बता दें कि यूपी में भाजपा की जीत से बहुजन समाज में भारी निराशा फैल गई है।  बाकी रही सही कसर सहारनपुर दंगों ने और दलित और पिछड़ी जातियों के खिलाफ बढ़ते अपराधों ने यूपी में बीजेपी के प्रति पिछड़ी और दलित जातियों के गुस्से को औऱ बढ़ा दिया है। ऐसे मे दलित और पिछड़ी जातियां चाहती हैं कि सपा और बसपा के नेता अपने आपसी मतभेद भुलाकर एक मंच पर आ जाऐं, ताकि बीजेपी को चुनौती दी जा सके। इसीलिए दलित और पिछड़ी जातियों के सामाजिक चिंतक अपने नेताओ पर साथ आने का दबाव बना रहे हैं। पिछले 20 साल में नहीं हुआ वो अब होने जा रहा है।  गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा-बसपा के रिस्तों में आई कड़वाहट की बर्फ अब समय के साथ पिघल रही है. अब दोनों दलों के नेता मंच साझा करने को तैयार हो गए हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here