प्रेरणा:
आख़िरकार फरवरी 15 को उनकी परीक्षा शुरू हुई और वो पूरे आत्मविश्वास के साथ परीक्षा में शामिल हुईं। उन्होंने कहा, मेरा सारा पेपर सही हुआ है, अंग्रेजी का भी सही हुआ है, तुम देखना मैं पास हो जाउंगी। मैं फ़ोन पर उन्हें सिर्फ खुश करने के लिए जताया कि हाँ, माँ तुम पास हो जाओगी, लेकिन ईमानदारी से बोल रहा हूँ, माँ जिस अवस्था में थी, उनकी जो मानसिक स्थिति थी मुझे थोड़ी भी उम्मीद नहीं थी।
विक्रांत वत्सल/नई दिल्ली/ मुजफ्फरपुर
6 सितम्बर 2016 रात के लगभग 2 बजे मुज़फ्फरपुर के पास सड़क के किनारे बाँस से लदी एक लावारिस बैलगाड़ी से टकराकर हुई कार दुर्घटना में मेरे पिता श्री शंभू गुप्ता जी की अकाल मृत्यु हो गयी थी। कार दुर्घटना में मेरी माँ और पिताजी साथ में ही थे। बाँस शीशे से होते हुए कार के अंदर तक आ गया था। मुझे ऐसा लगता है कि एक स्त्री के लिए उसके पति से बड़ा कोई नहीं होता है। माँ ने पिताजी को अपने सामने दम तोड़ते हुए देखा।
पिता जी के अंतिम संस्कार होने के बाद हम दोनों भाइयों की मनोदशा ऐसी नहीं थी कि बहुत ज्यादा कुछ सोच पायें और माँ हम दोनों भाइयों के साथ वापस दिल्ली आ गयीं। गम भुलाना काफी मुश्किल था, हम दोनों भाइयों से ज्यादा माँ की स्थिति ख़राब थी। हादसे को उन्होंने सामने से देखा था, फिर भी महीने 2 महीने पता ही नहीं चला कि आखिर ऐसा हो कैसे गया हमलोगों के साथ। सच्चाई पर भरोसा करना थोड़ा मुश्किल था।
मेरे पिताजी राजेपुर मोतिहारी में मिडल स्कूल में हेडमास्टर के रूप में कार्यरत थे। अपने पूरे जीवन में हम दोनों भाइयों के लिए बहुत ज्यादा त्याग किया उन्होंने। जब मैं कोटा में IIT की तैयारी कर रहा था तो माँ 1 साल तक साथ में रहीं थीं तब पिताजी अकेले जैसे तैसे खुद से खाना बना के खाए थे और रहे थे। जो हमारे परिवार को नजदीक से जानते हैं वो उनकी महानता को बखूबी जानते होंगे। उनके त्याग और दूरदर्शिता ने हम दोनों भाइयों को देश के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में से एक IIT Delhi तक पहुँचाया।
कुछ दिनों के बाद भाई को भी सेमेस्टर एग्जाम के लिए कुछ करना था तो वो भी हॉस्टल में ज्यादा समय रहने लगा। मैं भी अपने काम में व्यस्त रहने लगा। माँ कुछ अकेलापन महसूस करने लगी। उन्होंने पापा की जगह पर अनुकम्पा पर नौकरी करने की इच्छा जाहिर की और बोली कि मैं इस बार इंटरमीडिएट की परिक्षा दूंगी। माँ की तबियत को देखते हुए हम दोनों भाइयों ने मना कर दिया, बोला परेशान होने की कोई जरूरत नहीं हैं। हम दोनों भाइयों ने उन्हें आश्वस्त करने की कोशिश की कि हम दोनों आपको किसी ढंग का कभी कोई दिक्कत नहीं होने देंगे। उनका तर्क था कि मैं आत्मनिर्भर होना चाहती हूँ। मुझे तुमलोगों पर पूरा भरोसा है लेकिन मुझे नौकरी करनी है।
उनकी इस जिद्द के सामने हमें झुकना पड़ा। उनका फॉर्म भरवाया गया। जो सब्जेक्ट था उसकी किताब बिहार से मंगवायी गयी। दिल्ली के अपने कोचिंग संस्थान में मैंने छात्रावास की भी सुबिधा दे रखी है। हॉस्टल के अन्य बच्चो के साथ माँ भी पढती थी। छात्रावास के अन्य बच्चे पढने में माँ से प्रतिस्पर्धा करते थे और हार जाते थे, माँ उनसे ज्यादा पढ़ लेती थी। माँ ने लगभग डेढ़ दो महीने बहुत कठिन परिश्रम किया। पढने के बाद उन्हें लगता था की शायद मैं परीक्षा में ढंग से ना लिख पाऊं तो वो मुझसे प्रैक्टिस सेट प्रिंट करने के लिए बोलती थी। मैंने बोला कि फिर से कौन बिहार से मँगवायेगा इसे, वो बोलीं कि इन्टरनेट पर प्रैक्टिस सेट होता है, मैं उनके जुनून को देख कर दंग रह गया। मैं इसे टालना चाहता था की शायद वो आराम करेंगी। लेकिन वो कहाँ मानने वाली थीं, खाना नहीं खाउंगी, ये ब्लैकमेल करके सेट प्रिंट करवा ही लेती थी।
आख़िरकार, फरवरी 15 को उनकी परीक्षा शुरू हुई और वो पूरे आत्मविश्वास के साथ परीक्षा में शामिल हुईं। परीक्षा लगभग महीने भर तक चली। उन्होंने कहा, मेरा सारा पेपर सही हुआ है, अंग्रेजी का भी सही हुआ है, तुम देखना मैं पास हो जाउंगी। मैं फ़ोन पर उन्हें सिर्फ खुश करने के लिए जताया कि हाँ, माँ तुम पास हो जाओगी, लेकिन ईमानदारी से बोल रहा हूँ, माँ जिस अवस्था में थी, उनकी जो मानसिक स्थिति थी मुझे थोड़ी भी उम्मीद नहीं थी।
आज दोपहर में छोटे भाई ने कॉल करके बताया कि “पता है भैया, मम्मी फर्स्ट डिवीज़न से पास हो गयी है!!!” मैंने बोला “फर्स्ट डिवीज़न” मजाक मत करो, उसने बोला रुकिए मैं whatsapp करता हूँ, रिजल्ट देख कर मेरे आँख से आँसू रुक नहीं रहे थे… फिर पता चला कि बिहार में केवल 36% बच्चे ही पास किये हैं….. माँ, आप कितनी मजबूत हो, कितना दृढ़ निश्चयी हो, हम दोनों भाई को गर्व हैं कि आप हमारी माँ हो…. hats off mummy!!! [पहली तस्वीर हादसे के 3 महीने बाद की है।]
(Mr Vikrant Vatsal is Academic Director & Founder of Radiant Eduventures Pvt. Ltd.in Rohini at New Delhi, India)