सरकारी नीतियों के कारण फ्लिपकार्ट, होम शॉप 18 समेत सैकड़ो कंपनियों में हजारों की नौकरियां चली गईं। करोड़ों नौजवानों को रोजगार देने के लिए बड़ी स्कीम लाने की जरुरत है अन्यथा देश का बंटाधार हो जाएगा।
Written by Roy Tapan Bharati
-देश की आर्थिक तरक्की की समझ देश के कितने फीसद लोगों को है? शायद चंद लोग ही इस अर्थ शास्त्र को समझ पाते हैं। यह सब जानते हैं कि उद्योग और कारोबार को बढावा दिए बिना रोजगार का अवसर नहीं बढ़ाया जा सकता मगर कथित सरकारी प्रयास विफल है। सरकार को भी पता है कि इंडस्ट्रीज के लिए सिंगल विंडो सिस्टम कितना सफल है? सरकार और हम सबको पता है। उलटे सरकारी नीतियों के कारण फ्लिपकार्ट, होम शॉप 18 समेत सैकड़ो कंपनियों में हजारों की नौकरियां चली गईं। करोड़ों नौजवानों को रोजगार देने के लिए बड़ी स्कीम लाने की जरुरत है अन्यथा देश का बंटाधार हो जाएगा। शायद मेरा पूरा पोस्ट पढ़े बिना कुछ यहां नाचने लगेंगे, उन्माद में आ सकते हैं। इसलिए आप सब पहले इसे ध्यान से पढ़िए तब कमेंट करें। अन्यथा आपको अनफ्रेंड कर दूंगा।
-सरकार ने कहा था कि हर साल दो करोड़ रोजगार पैदा होगा? पर वास्तव में कितनों को नौकरियां मिली? सरकार खुद मानती है कि एक साल में पांच लाख को भी नौकरियां नहीं मिली। उधर सरकारी नौकरियों में दस प्रतिशत की कटौती कर दी गई। रियल एस्टेट में मंदी छा जाने से हजारों बिल्डरों ने लाखों को नौकरियों से निकाल दिया। मैनुफैक्चरिंग सेक्टर का हाल बुरा है। केवल सर्विस सेक्टर की तरक्की हुई। जीएसटी लागू होने के बाद देश की आर्थिक तरक्की नीचे या ऊपर जाएगी उस पर करोड़ों की है नजर। उधर अमेरिका में फिर मंदी आने के संकेत हैं, तब भारत समेत दुनिया की अर्थव्यवस्था का क्या हाल होगा?
-रोजगार का सृजन करना सरकार का दायित्व है। रोजगार बढ़ने से ही देश में अमन चैन कायम रह सकेगा। मेरे दर्जनों रिश्तेदारों के बच्चे बीसीए, बीटेक, एमबीए करने के बाद भी नौकरियां नहीं मिली। कुछ इंजीनियर को सरकारी बैंक में मैनेजर की नौकरी मिल गई पर ऐसे नौजवान चंद संख्या में ही हैं। बिजनेस करने के लिए लोन की लचीली नीति की मांग दशकों से हो रही पर किसी भी सरकार ने इस मामले में उदारता नहीं दिखाई। फिर बिना उद्योग धंधे के आगे बढ़े देश किस बैशाखी पर आगे बढ़ेगा?
रोजगार का सृजन नहींं होने से अपराध और आतंकवाद बढने का खतरा बढ जाता है। तमाम सेक्टरों का हाल बुरा है। सॉफ्टवेयर कंपनियों के अलावा मीडिया में भी हजारों की नौकरियां चली गई। फिर भी हम अपनी तरक्की की डफली खुद बजा रहे हैं। नौकरियों का सृजन बढ़ाने के लिए सरकार पर कौन बढ़ाएगा? विपक्ष भी इस मुद्दे पर आम जनता को समझाने में नाकामयाब रही है।