हम दूसरों को छांटते-छांटते खुद छंटुआ हो जाते

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आज मैनें प्रधानमंत्री के मन की बात सुन रहा था और बात भी वीआईपी कल्चर की उन्होंने की. सुनकर मैनें महसूस किया कि हमारे प्रधानमंत्री ने जो बात कही है वह बिल्कुल ही सही कहा है। वैसे तो उन्होंने लालबती और उसका मस्तिष्क पर पड़ रहे गहरे दुष्प्रभाव के बारे में बताया परन्तु जिनके पास लालबत्ती नहीं भी है और वे अपने को वीआईपी कल्चर वाले श्रेणी में रखते हैं या अपने आप को महसूस करते हैं, मैं साधारणतया देखता हूं कि उनका लगाव आम जनमानस से जुदा हो जाता है।
यह बात न मैं प्रधानमंत्री के बात को समर्थन करने के लिए लिख रहा हूं और न ही मैं किसी राजनैतिक पार्टी से सम्बद्धता रखने वाला व्यक्ती हूं.एक समाजिक प्राणी अपने को मानता हूं क्योंकी मैं भी एक अच्छे और क्रियाशील समाज में विचरण करते रहता हूं इस लिहाज से मुझे भी अपनी मन की बात अपने समाज के लोगों के बिच रखने की आवश्यकता महसुस हुई है।
मैं प्राय: यह देखता वो महसुस करता हूं कि अपने समाज में बहुत सारे लोग जो अच्छीखासी मेहनत और अच्छी शिक्षा पाकर किसी मुकाम पर पहुंच जाते हैं तो अपने नाते रिस्तेदार तथा अपने भाई पट्टीदार को भुल जाते हैं और उनमें भी.आई.पी.कल्चर का समावेश हो जाता है तथा वे अपने ही सगे संबंधियों से सौतेला व्यवहार करने लगते हैं. इतना ही नहीं वे अपने परिवार तथा बच्चों को उनसे दुर रहने की हिमाकत करते दिखते हैं।
क्या गरीब व्यक्ती आपका मित्र और रिस्तेदार बनने की श्रेणी में नहीं आता? आप विद्वान और बुद्धिमान किसे मानते हैं? क्या वह व्यक्ती विद्वान और बुद्धिमान है जो अपना स्वयं के समाज का विकास नहीं किया?
केवल और केवल अपने बीवी और बच्चे का विकास किया? या वह जो अपने साथ साथ अपने परिवार और समाज और रिश्तेदारों के विकास में सहयोग किया और उनका साथ दिया। हम दुसरे को छांटते-छांटते खुद छटुआ हो जाते हैं तथाअकेला जिवन वसर करने को विवस हो जाते हैं. इसलिये हमें अच्छी मुकाम तो जरूर हासिल करना चाहिए और भी.आई.पी.भी बनना चाहिए परन्तु दिमाग में यह कभी नहीं लाना चाहिए की हम भी.आई.पी हैंतो केवल उन्हीं से सम्बंध रखे.मृत्यु पश्चात तो डोम ही आग देता जिससे मुख अग्नि दी जाती है . समाज का अंतिम व्यक्ति भी आपके काम आ सकता है।

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