मेष- गुरुओं को नमन करें। यथाशक्ति सम्मानित करें। सीख की आशा से उनसे मिलें। धर्म, कर्म, भाग्य और आत्म उत्सर्ग को बल मिलेगा। सक्रियता बढ़ाएं। कार्यक्षेत्र में शुभ संकेत बढ़ेंगे। दिन उन्नतिकारक।
वृष- गुरु समझ सामर्थ्य बढ़ाता है। शिक्षा के माध्यम से समस्त विश्व के नए-पुराने अनुभव के सकारात्मक पक्ष से जोड़ता है। उन्हें सुनना सीखें। सहजता से आगे बढ़ें। दिन सामान्य फलकारक।
मिथुन- गुरु उसे बनाएं जो जीवन को सरल और समृद्ध करे। सीख दे, सहारा दे। दाम्पत्य के सहचर भी एक दूजे को गुरु बनाकर सहजता बढ़ा सकते हैं। सुख बढ़ा हुआ रहेगा। दिन शुभ।
कर्क- श्रेष्ठ शत्रु भी गुरु हो सकता है। विरोध मुद्दों का होता है, योग्यताओं का नहीं। सीखने की उत्सुकता इतनी बलवती होनी चाहिए कि आप विपक्षियों के गुणों को भी पहचान सकें। दिन सामान्य शुभ।
सिंह- प्रेम और आदरभाव गुरु को प्रसन्नता देते हैं। उनमें बड़प्पन भरते हैं। उनका बढ़ना आपकी की बढ़त है। ऐसा आप सभी के प्रति करके उनसे सीख-समझ ले सकते हैं। मित्र में भी गुरु दीख सकता है।
कन्या- अहम् भाव शिष्यवृत्ति का शत्रु है। यह आपको संकुचित और छोटा बनाकर रखता है। माता-पिता ईश्वर प्रदत्त संरक्षक और गुरु हैं। उन्हें हर हाल आदर सम्मान प्रेम और सुख दें। दिन सामान्य फलकारक।
तुला- चूक-मुक्त प्रदर्शन विश्वास के साथ तभी संभव है, जब सीखा हुआ हो। यह विश्वास ही मनुष्य का वास्तविक मूल्य है। गुरु इसका मूल उत्प्रेरक है। गुरु के संपर्क में रहिए। संप्रेषण रखिए। सौभाग्य संवारिये।
वृश्चिक- ज्ञान को संवर्धन-संरक्षण देता है कुटुम्ब। परंपराओं की असंख्य कड़ियों को जुड़ाव है कुटुम्ब। सबको जोड़ें रखें। साथ लेकर चलें। डीएनए को समृद्ध करें। सीख की श्रंृखलाओं को समुन्नत करें। गुरुत्व स्वतः जागृत हो जाएगा।
धनु- गुरु ज्ञान दे ये जरूरी नहीं। गुरु का मूल धर्म प्रेरणा देना है। उत्सुकता उत्साह और उमंग को बल देना है। संरक्षण अनुभव कराना है। ईश्वरीय सत्ता के लौकिक-अलौकिक पक्ष को देखने समझने की सामर्थ्य देना है।
मकर- गुरु का ज्ञान देना मनुष्य जाति में शिक्षा-निवेश है। इस प्रक्रिया में बाधा मनुष्यता का नुकसान है। शिक्षा ही एकमात्र ऐसी वस्तु है जो बांटने से उभयपक्षीय बढ़ती है। गुरु में समृद्ध होती है। शिष्य में संरक्षित होती है।
कुंभ- लाभ असीमित स्त्रोतों से संभव है। इन स्त्रोतों को समृद्ध गुरु कराता है। गुरु हित संरक्षण सिखाता है। स्वार्थ सरीखे भावों के सकारात्मक पक्षों से परिचय कराता है। कारपोरेट जगत से लेकर कनकी बीनने वाले तक तो अर्थ का महत्व समझाता है।
मीन- गुरु कर्म जिम्मेदारी का भाव है। शिष्य अशिक्षित असभ्य अहंकारी असंतुलित अक्षम अपढ़ और अंजान होता है। गुरु उसे संवारने का दायित्व लेता है। गुरु-शिष्य में अनोखा जुड़ाव होता है। गुरु अच्छाइयों की बारिश से अज्ञान रूपी सूखे को समाप्त करता है।