क्रिटिक रेटिंग : 4/5
स्टार कास्ट : मनोज वाजपेयी, राजकुमार राव
डायरेक्टर : हंसल मेहता
प्रोड्यूसर : संदीप शर्मा
म्यूजिक डायरेक्टर : करण कुलकर्णी
जॉनर : बायोग्राफिकल ड्रामा
ये फिल्म डॉ. श्रीनिवास रामचंद्र सिरास की लाइफ पर बेस्ड है, जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मराठी के प्रोफेसर थे। सिरास को उनके सेक्शुअल ओरिएंटेशन के कारण नौकरी से निकाल दिया गया था। बाद में रहस्यमय हालात में उनकी मौत हो गई।फिल्म में मनोज वाजपेयी ने प्रोफेसर सिरास का रोल निभाया है। सिरास की जिंदगी उस वक्त बदल जाती है, जब कॉलेज के स्टाफ मेंबर्स सिरास को एक आदमी के साथ संबंध बनाते हुए पकड़ लेते हैं। इस घटना के बाद सिरास को नौकरी से निकाल दिया जाता है और उन्हें हर जगह बेइज्जती झेलनी पड़ती है। इस मुश्किल वक्त में उनका सहारा बनता है जर्नलिस्ट दीपू (राजकुमार राव) जो इस केस की छानबीन करता है। इस दौरान वो सिरास का खास दोस्त बन जाता है।
समलैंगिक प्रोफेसर के रोल में मनोज ने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि वो एक बेहतरीन एक्टर हैं। एक होमोसेक्शुअल शख्स के हाव-भाव, उसकी तकलीफ और जिंदगी की उलझनों को मनोज ने बखूबी परदे पर जिया है। अपने हक की लड़ाई लड़ते हुए सिरास जब अपनी मातृभाषा मराठी में बात करते हैं तो ऐसा लगता ही नहीं कि मनोज एक्टिंग कर रहे हैं।
यंग जर्नलिस्ट दीपू के रोल में राजकुमार राव भी अपनी छाप छोड़ते हैं। फिल्म में उन्होंने साउथ इंडियन बैकग्राउंड से बिलॉन्ग करने वाले शख्स का रोल किया है, जिसमें उनकी मेहनत साफ नजर आती है। फिल्म में सिरास के वकील का रोल करने वाले आशीष विद्यार्थी ने भी बढ़िया एक्टिंग की है।
शाहिद और सिटीलाइट्स जैसी फिल्में बनाने वाले हंसल मेहता ने इस फिल्म में भी अपनी सिग्नेचर स्टाइल को कायम रखा है। ऐसी ब्रेव फिल्म बनाने के लिए हंसल तारीफ के हकदार हैं। फिल्म में एक ही कमी है और वो है इसकी धीमी गति। करीब दो घंटे की इस फिल्म की लंबाई और कम की जा सकती थी। फिल्म में ऐसे कई सीन्स हैं, जिन्हें हटाया जा सकता था। खासकर सिरास के अकेलेपन को दिखाने वाले सीन्स।
कुल मिलाकर हंसल ने एक शानदार फिल्म बनाई है। अगर आप बॉलीवुड की टिपिकल मसाला और मार-धाड़ वाली फिल्मों से हटकर कुछ अलग देखना चाहते हैं तो ये फिल्म आपके लिए हैं। बेहतरीन एक्टिंग और शानदार कहानी के लिए ये फिल्म एक बार जरूर देख सकते हैं।