लेखक: Roy Tapan Bharati
हमारे घर के सदस्य प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी के जबरदस्त फैन हैं…बच्चे कहते हैं कि मोदी अंकल देश को चीन और अमेरिका से भी आगे ले जाएंगे…एक दिन यह देश स्वर्ग हो जाएगा…मुझे भी उनकी बातों पर यकीन है…पर मेरे परिवार के दो बच्चों ने बीते सप्ताह दिल्ली से बाहर के राज्यों की यात्रा की तो लगा कि दिल्ली वाकई नरक है पर इसमें मोदी जी का कोई कसूर नहीं है…NCR में आवोहवा का बुरा हाल पुरानी केंद्र सरकारों और राज्य सरकारो के कारण है…इसमें मोदी सरकार की जिम्मेदारी कहाँ है? आवोहवा खराब करने के लिए दिल्ली की केजरीवाल सरकार, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों की लापरवाही है। भला केंद्र क्या करे?
…पहले सफर पर मेरा बेटा-Kshitij Bhaswar पठानकोट और कांगड़ा गया…पुत्र ने पंजाब और हिमाचल में महसूस किया कि दिल्ल्ली तो गैस चैम्बर बना हुआ है…पहाड़ी इलाकों में उन्हें लगा कि वे स्वर्ग में आ गए हैं…बेटी- Twisha Roy ने भी दिवाली में रांची पहुंचकर पाया कि वहाँ तो प्रदूषण नाम मात्र का भी नहीं है…उसने रांची से खुले और नीले आकाश की तस्वीरें भेजी कि किस तरह से वहाँ आकाश साफ है।
हमारा परिवार करीब 22 साल से दिल्ली एनसीआर में रह रहा है। पर हर साल यहाँ का पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है…केवल सुप्रीम कोर्ट को यहाँ के आवोहवा की चिंता रहती है…अदालत ने भी कहा है कि आवोहवा को साफ रखने में लापरवाही की वजह से दिल्लीवालों ने मेक्सिको शहर की तरह ख़ुद अपनी क़ब्र खोद डाली है….इसकी पहली वजह तो ये है कि दिल्ली में निजी गाड़ियां यानी कारें और एसयूवी वग़ैरह ख़ूब बिकती हैं….रोज़ 1400 के क़रीब नई गाड़ियां दिल्ली की सड़कों पर उतरती हैं…सरकार और जनता की कोशिशों की वजह से मेक्सिको शहर की हालत सुधर गई पर दिल्ली के आवोहवा की हालत जस की तस है।
हालत अब यह है कि प्रदूषण की वजह से दिल्ली वालों का दम घुट रहा है…दफ़्तर जाने और वहां से लौटने के वक़्त प्रदूषण का स्तर इस क़दर बढ़ जाता है कि जीना मुश्किल हो जाता है….यहाँ घर में 85 साल की मेरी मां का दम घुट रहा है…दिवाली के बाद से उनका जीना और मुहाल हो गया है…मजबूरी में मां को इस खतरनाक शहर के दमघोंटु माहौल में रखना पड़ रहा है…वे बचपन से दमे की रोगी भी हैं…उन्हें कहाँ लेकर जाऊं जिससे उनकी जिंदगी बच जाए? भला, सरकार को हमारी माँ और बच्चों की सेहत की चिंता क्यों हो। हमारा काम सरकार को हर साल आयकर और अन्य टैक्स बिना सवाल किए देते जाना है। मेरा ही परिवार क्यों 5 करोड़ अन्य लोग भी सरकार को आयकर दे रहे हैं।
पिछले साल भी दिल्ली के हालात इतने बिगड़ गए थे कि कि नवंबर में स्कूल बंद करने पड़े थे, ताकि बच्चों को दमघोंटू धुएं से बचाया जा सके। उस वक़्त दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण का स्तर, विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानक से तीस गुना ज़्यादा दर्ज किया गया था…यानी दिल्ली की हवा ऐसी थी कि मानो यहां के बाशिंदे रोज़ 50 सिगरेट पीने के बराबर धुआं अपने अंदर भर रहे थे।
इस बार भी हालात उसी तरफ़ बढ़ रहे हैं. पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से लेकर, गाड़ियों से निकलने वाला धुआं और फैक्ट्री से लेकर पटाखों तक से होने वाले प्रदूषण तक, वो सब कुछ हो रहा है, जो दिल्ली का दम घोंटता है. मगर, जिनके लिए घर से निकलना मजबूरी है, उन्हें रोज़ाना इस प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। सांस के साथ उनके फेफड़ों में ज़हर आहिस्ता-आहिस्ता पैबस्त होता जा रहा है।
दिवाली पर दिल्ली की हवा बुधवार की रात ‘बेहद खराब’ की श्रेणी में दर्ज की गई। राष्ट्रीय राजधानी के कई इलाकों में लोगों ने रात आठ से दस बजे के बीच पटाखे फोड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया। एक्यूआई के मुताबिक, गुरुवार को आनंद विहार में प्रदूषण का स्तर 999, चाणक्यपुरी में 459 और मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में एक्यूआई 999 रहा. प्रदूषण का यह स्तर ‘खतरनाक’ श्रेणी में आता है।
पर्यावरण के जानकार कहते हैं कि दिल्ली और आस-पास के लोग अगर खुले में जाते हैं, तो, वो अपने फेफड़ों में ज़हर भरते जाते हैं। वो कहते हैं कि दिल्ली में आप अपने परिवार का पेट पालने या ज़िंदगी बसर करने के लिए बाहर निकलते हैं, तो अपनी सांसें घटाते हैं। क्योंकि यहां की हवा में जितना प्रदूषण है, वो आपकी ज़िंदगी में से हर रोज कुछ दिन घटाता जाता है।