लक्ष्मीकान्त शर्मा , लेखक एवं मीडिया विशेषज्ञ, तिलौली / जबलपुर / लखनऊ
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खाक़ भी जिस ज़मीं का पारस है
शहर यह मशहूर बनारस है।
मिर्ज़ा ग़ालिब जब दिल्ली से कलकत्ते जाते वक़्त बनारस में रुके तो उन्होंने अपने एहसास को इस शेर के ज़रिए व्यक्त किया था और इतना ही नहीं, उन्होंने इस शहर को धरती का स्वर्ग और हिंदुस्तान का क़ाबा तक कहा। प्रख्यात वैज्ञानिक डाक्टर शांति स्वरूप भटनागर जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुल गीत की रचना कर रहे थे तो उन्होंने लिखा:
…तो तीनों लोकों से न्यारी गंगा के रम्य तट पर बसी उसी काशी नगरी में ब्रह्मभट्ट/ भट्ट ब्राह्मण वंश के 600 स्वजन एक साथ मिले 25 दिसंबर की सुबह। वैसे दिसंबर का महीना बहुत ख़ास होता है। खगोलीय दृष्टि से भी 25 दिसम्बर को वर्ष का सबसे बड़ा दिन माना जाता है। हम बनारस में थे तो महामना की भी स्मृति हो आई। 25 दिसम्बर को ही महामना मदन मोहन मालवीय का भी जन्मदिन था जिन्होंने 1916 में बनारस में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।
ब्रह्मभट्टवर्ल्ड काशी मंथन आयोजन समिति की दृष्टि भी सराहनीय लगी आयोजन के नामकरण को लेकर। वैसे काशी, वाराणसी और बनारस एक ही स्थान के नाम हैं लेकिन काशी एक प्राचीन नाम है जो कि प्राचीन सोलह महाजनपदों में से पहला राज्य था कोशल, अंग, मगध आदि राज्यों की तरह। कालांतर में वरुणा और असी नदियों के संगम पर जो शहर बसा उसे वाराणसी कहा गया और बाद में बनारस नाम पड़ा जिसका श्रेय डाक्टर सम्पूर्णानन्द को जाता है। ब्रह्मभट्ट/भट्ट ब्राह्मण का इतिहास भी काशी की ही तरह प्राचीनता एवं वैविध्य लिए हुए है इसलिए काशी मंथन का नाम चयन प्रासंगिक था। और संयोग देखिए ! ब्रम्हभट्टवर्ल्ड की स्थापना और पहला मंथन मगध ( पटना ) में तथा पाँचवा मंथन पहले महाजनपद काशी में सम्पन्न हुआ!
मधुर मनोहर अतीव सुंदर
यह सर्व विद्या की राजधानी!
ये तीनों लोकों से न्यारी काशी
सुजान धर्म और सत्य राशी
बसी है गंगा के रम्य तट पर
यह सर्व विद्या की राजधानी
वैश्विक स्तर की झलक: रुद्राक्ष अंतरराष्ट्रीय सहयोग सम्मेलन सभागार में आयोजित काशी मंथन समारोह अपने आप में अद्वितीय था। समारोह के प्रत्येक आयाम में वैश्विक स्तर की झलक दिखाई देती थी। आयोजन का “हार्डवेयर” और “साफ़्टवेयर” दोनों लाजवाब! इवेंट मैनेजमेंट की जितनी तारीफ़ की जाए उतनी कम। इस सम्बंध में मुझे एडमिन अमित रंजन ने बहुत प्रभावित किया। स्टेज प्रबंधन में कई दिक्कतें आती रहीं और बार बार भ्रम भी पैदा होते रहे लेकिन अमित रंजन ने जिस तरह का धैर्य दिखाया वह अनुकरणीय था।
सभी सत्र सर्जनात्मक थे। वे सार्थक विमर्श के मंच थे । कुछ सुधार की गुंजाईश है जिसका ध्यान अगले मंथन में करना उचित होगा। प्रत्येक प्रतिभागी को दो तीन मिनट का समय देना ठीक है लेकिन उन्हें टीवी डिबेट की तरह टोकना उचित नहीं है।
अजय शर्मा बाबा: ब्रह्मभट्टवर्ल्ड का पाँचवा मंथन पहली बार उत्तर प्रदेश में हो रहा था। मेरे गाँव तिलौली के युवा साथी अजय शर्मा बाबा, जो आयोजन समिति के उपाध्यक्ष थे, ने इसे अपने प्रदेश और ख़ासकर पूर्वांचल की प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया। दिन रात मेहनत की , न जाने कितने लोगों को फ़ोन किया और निजी यात्राएँ भी कीं ताकि अधिक से अधिक लोग रजिस्ट्रेशन कराएँ। उनके अथक श्रम का सुपरिणाम भी निकला और बड़ी संख्या में अपने गाँव से लेकर पूरे देश में रहने वाले पूर्वांचल के लोगों ने काशी मंथन हेतु अपना निबंधन कराया। अजय शर्मा बाबा का उपाध्यक्ष के दायित्व के अलावा उनका अतिरिक्त श्रम भी उल्लेखनीय है।
यह बिलकुल भी सम्भव नहीं है कि सभी 600 प्रतिभागियों को बोलने का अवसर मिले लेकिन दर्शक दीर्घा में भी दो तीन ऐंकर होने चाहिए जो परस्पर तालमेल और स्वविवेक के साथ दर्शक दीर्घा में घूमते हुए लोगों के विचारों को सुनकर और परखकर उनकी आवाज़ मंच तक पहुँचाते रहें। सुनने में आया है कि एक सदस्य ने पिछले मंथन में दहेज़मुक्त विवाह के आह्वान पर अपने परिवार में ऐसा विवाह करने का संकल्प लिया था। उनके अनुसार उन्होंने ऐसा किया भी और वे उसे काशी मंथन में बताना चाहती थीं। मेरा मानना है कि ऐसे सदस्यों को अपनी बात रखने का अवसर दिया जाना चाहिए जो मात्र आधा मिनट का समय लेगा। हाँ, इसमें विवाद भी हो सकता है लेकिन मंथन से इसका हल भी निकल सकता है। और मंथन की मंशा भी यही है ।
आनंद राज: अक्सर देखने में आता है कि आयोजन समिति का अध्यक्ष केवल शोभा बढ़ाने के लिए नामित किया जाता है । लेकिन काशी मंथन में ठीक इसके उलट था। यहाँ अध्यक्ष की पूरे मैदान में उपस्थिति दीख रही थी। अध्यक्ष आनंद राज की समारोह की हर चीज़ पर ब्रह्मभट्टवर्ल्ड के संस्थापक राय तपन भारती की ही तरह पैनी नज़र थी। चाहे मुख्य द्वार पर अतिथियों के स्वागत करने की बात हो, सभागार में बैठक व्यवस्था हो, स्टेज प्रबंधन हो, खानपान दीर्घा में एक एक व्यक्ति से आग्रह करना हो, कार्यक्रम की रूप रेखा हो, आयोजन का कोई भी ऐसा पहलू नहीं था जिसमें उनकी प्रत्यक्ष और परोक्ष व्यावहारिक भूमिका न हो! समारोह समय पर शुरू हो , यह चिंता भी थी। मुझे जानकारी मिली है कि समूचे आयोजन में आर्थिक आयाम के भी प्रमुख एवं सुदृढ़ स्तम्भ रहे आनंद राज।
यही नहीं , आनंद राज ने आयोजन की तैयारियों के लिए पटना से छः बार बनारस की यात्रा की और समिति के सदस्यों के साथ बैठक और विचार विमर्श करते रहे। इनसबके बावजूद आनंद राज के बाल सुलभ सौम्य व्यक्तित्व ने एक अलग ही छाप छोड़ी। ऐसे व्यक्ति के लिए बशीर बद्र का एक शेर मौजूँ होगा : हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है, जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा ।मुझे यह भी लगता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर की इतनी भव्य तैयारी और खर्च को देखते हुए मंथन दो दिनों का होना चाहिए।
आगामी मंथन के पूर्व इस सम्भावना पर विचार करने की ज़रूरत है। एक और विशेष सुझाव देना चाहूँगा। आयोजन के पूर्व एक प्रेस-वार्ता भी हो सकती है जिससे इतने बड़े आयोजन का समाचार अख़बारों में प्रकाशित हो सके। बाद में एक प्रेस रिपोर्ट जारी की जा सकती है। पूरे बनारस को पता होना चाहिए भट्ट समाज और ऐसे आयोजन के बारे में । मुझे ऐसा लगता है कि यदि काशी मंथन में अन्य ब्राह्मण समाज के कुछ लोगों की उपस्थित विशिष्ट अतिथि के रूप में होती तो वे विस्मित हो जाते और अपने अपने समाज में भट्ट समाज का गुणगान करते। हालाँकि, आयोजन पूर्व प्रेस वार्ता के दूसरे ख़तरे हैं मसलन खानपान की व्यवस्था को लेकर। तथापि, इस पर विचार करना चाहिए।
एक मसला ब्रह्मभट्ट और भट्ट शब्द को लेकर भी है। जब हम देश के विभिन्न हिस्सों में होने वाले आयोजनों में जाते हैं तो ऐसे सवालों का सामना करना पड़ता है। भट्ट में भी कई शाखायें हैं ।जब हम विमर्श करते हैं तब अंतत: निष्कर्ष निकलता है कि हम सब एक हैं। इसके लिए हमें समुचित जानकारी भी होनी चाहिए। इसी जानकारी और एकता को सुनिश्चित करने के लिए ऐसे समागमों की निरंतरता आवश्यक है।
ब्रह्मभट्टवर्ल्ड के सभी ऐड्मिन ने पर्दे के पीछे और सामने से जी-तोड़ मेहनत की है जिसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है। वे सभी बधाई के पात्र हैं। लेकिन एक नाम पर विशेष चर्चा करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ और वह नाम है ब्रह्मभट्टवर्ल्ड के संस्थापक राय तपन भारती का !
हिंदी के वरिष्ठ कवि राजेश जोशी की एक कविता की पंक्तियाँ है………
कम हो रहा है मिलना जुलना
कम हो रही है लोगों की ज़ान-पहचान
सुख-दुःख में भी पहले की तरह इकट्ठे नहीं होते लोग
तार ( व्हाट्सऐप ) से मिल जाते हैं बधाई और शोक संदेश
बाबा को जानता था सारा शहर
पिता को भी चार मोहल्ले के लोग जानते थे
मुझे नहीं जानता मेरा पड़ोसी मेरे नाम से।
अब सिर्फ़ एलबम में रहते हैं
परिवार के सारे लोग एक साथ
टूटने की इस प्रक्रिया में क्या क्या टूटा है
कोई नहीं जानता
कोई ताला देखकर मेरे घर से लौट गया! ……………………………………………….
ऐसे में पत्रकार राय तपन भारती ने 17,000 ब्रह्मभट्ट/भट्ट परिवारों को एक साथ एक “घर-ब्रह्मभट्टवर्ल्ड” से जोड़ा और काशी मंथन सम्मेलन में देश के कोने कोने से 600 लोगों के भीतर बनारस आने की चाह पैदा की, यह कार्य अचंभित करने वाला है। ब्रह्मभट्टवर्ल्ड का काशी-मंथन मेरा पहला मंथन था। मैं संस्थापक राय तपन भारती, समूची आयोजन समिति, सभी ऐड्मिन्स, देश के विभिन्न राज्यों से आए सभी प्रतिभागियों को हृदय से बधाई एवं शुभकामनाएँ देता हूँ।
और अमेरिकी कवि राबर्ट फ़्रॉस्ट की सुप्रसिद्ध कविता को हरिवंश राय बच्चन के शब्दों में मेरे विनम्र सुझाव के रूप में लेने का आग्रह भी: गहन सघन मनमोहक वन तरु मुझको आज बुलाते हैं किंतु किए जो वादे मैंनेयाद मुझे आ जाते हैं अभी कहाँ आराम बदा!यह मूक निमंत्रण छलना है अरे अभी तो मीलों मुझको मीलों मुझको चलना है !!
सराहनीय पोस्ट 🙏मंथन के सकारात्मक पहलू को पोस्ट के माध्यम से अपने प्रस्तुत किए उसके लिए धन्यवाद 🙏🙏
उत्कृष्ठ लेखन,जिस तरह से मंथन की बारीकियों को इन्होंने समझा और बयां किया ये आसान नहीं था। लक्ष्मीकांत जी की तो कलम बोलती है।वाकई गागर में सागर भर दिया।