“जाने कहाँ गए वो दिन”…. राजीव गांधी- एक संस्मरण

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सन् 1986 के जनवरी माह में मेरे पिता विद्याकर कवि जी का देहांत हुआ था और उस वक़्त राजीव जी प्रधानमंत्री थे और वे तभी मद्रास में थे। वहीं से एक पार्टी के मुखिया होने के नाते और सरकार के प्रमुख होने के नाते मेरे और मेरे परिवार के प्रति अपनापन और स्नेह देने में जो उन्होंने व्यक्तिगत रुचि ली थी, उसे मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूल सकता।

लेखक हिमांशु कवि

लेखक हिमांशु कवि

कल 21 मई को देश भर में अपने प्रिय नेता, सूचना क्रांति के जनक, पंचायती राज के प्रणेता, देश के युवाओं की आशाओं और आकांक्षाओं के प्रतीक, आदिवासी, अल्पसंख्यक और अनुसूचित जनजातियों के मसीहा, युगदृष्टा व भारत रत्न पूर्व प्रधान मंत्री स्व. राजीव गांधी की 30 वीं पुण्य तिथि मनायी गयी। कल सुबह से ही उनकी कई स्मृतियां मेरे मन मस्तिष्क पर ताज़ा हो रही थीं। आँखें नम हो गई। मैं उन भाग्यशाली लोगों में से हूँ, जिसकी उनसे कई बार व्यक्तिगत मुलाकातें हुई थीं। सन् 1978 में सबसे पहली बार उन्हें मैं 12, विलिंगडन क्रिसेंट रोड स्थित इंदिरा गांधीजी के सरकारी आवास (तब प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद इंदिरा जी को तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार ने एक छोटा सा सरकारी आवास आवांटित किया था

पर स्व. संजय गांधी जी से बिहार युवक कांग्रेस तथा NSUI संगठन संबंधित वार्ता हेतु पूर्व निर्धारित समय (संध्या चार बजे) के अनुसार पहुंचा था। उस वक़्त दिल्ली में बारिश हुई थी। अहाते में थोड़ी बारिश का हल्का पानी होने से अंदर की ज़मीन भीगी पड़ी थी। उसी समय एक छोटी कार अहाते में आई और उस कार से एक लंबा, गोरा- चिट्टा आकर्षक व्यक्ति, जो इंडियन एयर लायंस के पायलट की ड्रेस पहने हुए थे और उतरते ही दो कदम हमारी तरफ बढ़ कर मुस्कुराते हुए नजदीक आकर हाथ हिलाते हुए घर के अंदर प्रवेश करने के क्रम में ज़मीन पर जमे बारिश के थोड़े पानी होने के कारण एक छलांग लगाते हुए अंदर चले गए। वे और कोई नहीं, स्वयं राजीव गांधी जी ही गाड़ी चलाकर आये थे ।

बाद के दिनों में संजय गांधी जी के हवाई दुर्घटना में आकस्मिक निधन के बाद वे अमेठी के सांसद बने। फिर उसके बाद वे अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव बने, सांसद होने के नाते उन्हें सरकार ने मोतीलाल नेहरू मार्ग स्थित सरकारी आवास आवांटित किया था। उस दौरान कभी AICC दफ्तर, तो कभी उनके आवास पर बराबर उनसे मिलने का अवसर मिलता रहा। उनसे मिलना इतना सुगम और सरल होता था कि आज के लोग सोच भी नहीं सकते हैं। राजीव जी की एक बात मुझे भुलाए नहीं भूलती है कि सन् 1986 के जनवरी माह में मेरे पिता विद्याकर कवि जी का देहांत हुआ था और उस वक़्त राजीव जी प्रधानमंत्री थे और वे तभी मद्रास में थे। वहीं से एक पार्टी के मुखिया होने के नाते और सरकार के प्रमुख होने के नाते मेरे और मेरे परिवार के प्रति अपनापन और स्नेह देने में जो उन्होंने व्यक्तिगत रुचि ली थी, उसे मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूल सकता। राजीव जी सच्चाई, अच्छाई व शालीनता की प्रतिमूर्ति व सर्वगुण संपन्न व्यक्ति थे। एक निश्चल मुस्कान उनके सौम्य व सुंदर श्रीमुख की सदा शोभा बढ़ाती थी। मधुर वाणी, अच्छी, दमदार व प्रभावशाली आवाज़ कानों में अभी भी गूंजती है।

राजीव जी एक संगठन कर्ता के रूप में अपने स्वभाव, अपने आचरण, अपनी दक्षता एवम् व्यवहार कुशलता के कारण अपने संगठन के कार्यकर्ताओं और सांसद के रूप में अपने विरोधियों के बीच भी कम ही समय में काफी चर्चित एवं लोकप्रिय बन गए थे। उपरोक्त सभी बातें जो मेरे निजी अनुभव पर आधारित है, जो मैंने अपनी आँखों से देखा और महसूस किया है, वो मैंने ईमानदारी से उस महामानव को सच्ची श्रद्धांजलि स्वरूप लिखा है। आज के संदर्भ में कोई सोच भी नहीं सकता है कि 31अक्टूबर 1984 का वो मनहूस दिन, जब राजीव गांधी जी कोलकाता में थे और सुबह सवेरे उनकी माता जी (इंदिरा गांधी) की हत्या दिल्ली में उनके निजी सुरक्षा गार्ड द्वारा हो जाने की सूचना उन्हें मिली और उस परिस्थिति में भी उन्होंने अपना मानसिक संतुलन बनाए रखा। जबकि साधारण स्थिति में कोई दूसरा होता तो उसकी क्या मनोदशा होती, आप समझ सकते हैं।

राजीव जी ने बिल्कुल शांत भाव से दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। रास्ते भर में मानसिक रूप से उन्हें दिल्ली उतरते ही किन – किन चुनौतियों से निपटना है, अपने परिवार को कैसे संभालना है , राजनीतिक सहयोगियों का मनोबल कैसे ऊंचा रखना है, देश की जनता पर क्या बुरा असर होगा वगैरहा उन सभी बातों पर उन्होंने “फूलप्रूफ” तैयारी कर ली थी। दिल्ली पहुंचते ही अपनी माता को देखने वो सीधे AIIMS गए और अपनी महान माता के पार्थिव शरीर को देखा। इंदिरा गांधी जी के निधन का समाचार पूरे देश में जंगल की आग की तरह फ़ैल चुका था। दोपहर होते – होते पूरे देश भर में दंगा – फसाद होने लगा था। जनता में गजब का आक्रोश और हिंसा भरी हुई थी।

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 21 मई, 1991 की रात में तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर में एक चुनावी सभा के दौरान एक महिला आत्मघाती हमलावर ने हत्या कर दी थी

एक तरफ राजनीतिक उथल – पुथल और दूसरी तरफ राजीव गांधी प्रधानमंत्री न बने उसका षड्यंत्र तत्कालीन कुछ राष्ट्रीय नेताओं द्वारा रचा जा रहा था। इसी जद्दो जहत के बीच आखिरकार राजीव जी को शाम को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने अपनी राजनीतिक सूझबूझ से देश की जनता को विश्वास में लेकर पहला काम कानून व्यवस्था को ठीक किया। इंदिरा जी के देहांत के पश्चात राष्ट्रीय शोक से मुक्त होकर कुछ ही दिनों के अंदर अपने साहसिक कदम उठाते हुए उन्होंने तत्कालीन लोकसभा भंग कर चुनाव करवाए व जनता का विश्वास जीता और जनता ने बदले में उन्हें और उनकी पार्टी को भरपूर जीत दिलाई।

अब तक का सबसे बड़ा बहुमत राजीव जी को मिला। उसके बाद उनकी सरकार ने पांच साल में एक से बढ़कर एक क्रांतिकारी निर्णय लिए। उदाहरण स्वरूप; पंचायती राज को मजबूत बनाना, महिला सशक्तिकरण, कंप्यूटर क्रांति लाना, जबकि उस वक़्त के विपक्षी दलों ने कंप्यूटर क्रांति का जमकर विरोध किया था। लोगों की धारणा थी कि इससे देश में बेरोजगारी बढ़ेगी। कंप्यूटर की आवश्यकता के प्रति राजीव जी की सोच व दूरदर्शिता का महत्व आज जगजाहिर है। हरिजनों, आदिवासियों, किसानों, मजदूरों, विद्यार्थियों व अल्पसंख्यकों के हित के कई लाभकारी योजनाओं को मूर्तरूप देने में राजीव जी की सरकार कामयाब रही।संचार क्रांति के जनक के रूप में राजीव गांधी का नाम अमर रहेगा।

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