सावधान: फिंगरप्रिंट्स की तरह निप्पल भी होते सबके अलग-अलग

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Dr Rashmi Rekha/New Delhi

किसी भी तरह का डिस्चार्ज बीमारी का इशारा; ब्रेस्ट फीडिंग से कैंसर की आशंका कम

महिलाओं का शरीर एक बेहद खूबसूरत लेकिन कॉम्प्लिकेटेड होता है। शायद इसकी वजह ये है कि हमेशा इसे छुपाये रखने पर जोर दिया जाता है। महिलाएं भी अपने शरीर को लेकर अक्सर सकुचाती हैं और अपने ही पूरे शरीर को ठीक से ना तो जानती हैं ना पहचानती हैं। ब्रेस्ट फीमेल बॉडी का एक ऐसा हिस्सा है जिस पर बात करने से हर महिला झिझकती है और यही वजह है कि शरीर का यह अंग अक्सर अनदेखी का शिकार होता है। महिलाएं अपने शरीर के इस हिस्से में होने वाले बदलावों को लेकर हमेशा सतर्क रहें और उन्हें कभी इग्नोर न करें। सतर्क रहने के लिए यह जरूरी है कि वो रोज अपने ब्रेस्ट को गंभीरता से जांच करें और बदलाव होते ही डॉक्टर से मिलें।

ब्रेस्ट अंग को सिर्फ खूबसूरती और ममता से जोड़कर देखा जाता है। ब्रेस्ट का छोटा-सा हिस्सा निप्पल्स, जो मां और बच्चे के रिश्ते की अहम कड़ी होता है, उसे महिलाएं सबसे ज्यादा नजरअंदाज करती हैं। जबकि निप्पल हेल्थ पर गौर करना हर स्त्री के लिए बेहद जरूरी है। ‘नेशनल सेफ मदरहुड डे' पर आज स्त्री शरीर के सबसे छोटे लेकिन अहम अंग की सेहत और सुरक्षा की बात करते हैं। ध्यान रहे, शरीर में हो रहे बदलाव का असर सबसे पहले स्त्री अपने निप्पल्स पर देख सकती है। उसे अपनी बिगड़ती सेहत का इशारा भी यहीं मिल सकता है जो अक्सर वह खुद समझ नहीं पाती।

कई तरह के होते हैं निप्पल्स

हर महिला के निप्पल्स एक-दूसरे से अलग हैं। यह फिंगरप्रिंट्स की तरह यूनीक हैं, जिनका रंग गहरा गुलाबी, हल्का भूरा, गहरा भूरा या काला हो सकता है। हर महिला का निप्पल साइज भी अलग होता है। निप्पल्स कई प्रकार के होते हैं:

सुपरन्यूमेरेरी निप्पल्स: कुछ महिलाओं की ब्रेस्ट पर 2 या उससे ज्यादा निप्पल्स होते हैं जिसे सुपरन्यूमेरेरी निप्पल्स कहा जाता है।

छोटे निप्पल: इसमें निप्पल्स का साइज नॉर्मल से छोटा होता है लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

ओपन निप्पल्स: यह सूजे या क्रैक निप्पल्स होते हैं। अक्सर ब्रेस्टफीडिंग ही इसकी वजह होती है। कुछ महिलाओं के पीरियड्स के बाद भी निप्पल्स ऐसे होते हैं। इन निप्पल्स को जॉगर्स निप्पल्स भी कहते हैं, क्योंकि वुमन एथलीट्स में ये कॉमन है।

प्रोट्रूडिंग निप्पल्स: जिनकी पॉइंटेड ब्रेस्ट होती हैं उनके प्रोट्रूडिंग निप्पल्स होते हैं। यह नॉर्मल साइज से बड़े होते हैं जो अरेओला (निप्पल्स के नीचे बना घेरा) से कुछ मिलीमीटर ऊपर होते हैं।

इरेक्ट निप्पल्स: इस तरह के निप्पल बाहर की तरफ निकले होते हैं। एक स्टडी के अनुसार जिस महिला के इस तरह के निप्पल्स होते हैं, वह खुशमिजाज और फ्रेंडली होती हैं।

बालों वाले निप्पल्स: कुछ महिलाओं के निप्पल्स के आसपास बाल होते हैं। डॉक्टर इसे नॉर्मल मानते हैं। लेकिन कुछ स्टडीज में पाया गया कि जब निप्पल्स पर बाल हों तो अनियमित पीरियड्स, पीसीओएस या ओवेरियन सिस्ट की दिक्कत हो सकती है।

इनवर्टेड निप्पल्स: इन्हें रीट्रैक्टेड निप्पल्स भी कहा जाता है। यह अंदर की तरफ धंसे हुए होते हैं। कई महिलाएं इन्हें देखकर घबरा जाती हैं, लेकिन यह चिंताजनक नहीं है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के अनुसार इनवर्टेड निप्पल्स हों तो बेबी को मां का दूध पीने में दिक्कत होती है। जो माइनर सर्जरी के बाद ठीक हो जाती है।

पुरुषों के क्यों होते हैं निप्पल्स

अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि महिलाओं की तरह पुरुषों के निप्पल्स क्यों होते हैं। दरअसल, मां की कोख में भ्रूण बनने से पहले ही निप्पल विकसित हो जाते हैं। भ्रूण बनने के बाद जेंडर तय होता है। यानी जब भ्रूण में Y क्रोमोसोम आता है, उससे पहले ही निप्पल बन चुके होते हैं।

बिना प्रेग्नेंसी के निप्पल्स से हो डिस्चार्ज तो है बीमारी

गुरुग्राम के क्लाउडनाइन हॉस्पिटल में गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. रितु सेठी के अनुसार निप्पल्स महिला को सेहत से जुड़े कई इशारे देते हैं। अगर उसमें मिल्की या ब्लड का डिस्चार्ज हो तो सतर्क हो जाएं। निप्पल्स से खून आए तो यह ब्रेस्ट कैंसर की तरफ इशारा है। इस स्थिति में ब्रेस्ट में गांठ भी महसूस होती है और सूजन भी आती है। निप्पल्स से लाल या पीले-गुलाबी रंग का डिस्चार्ज भी हो सकता है।

अगर बिना प्रेग्नेंसी के मिल्की डिस्चार्ज हो तो इसकी वजह हॉर्मोन्स की गड़बड़ी है। इसे प्रोलैक्टिनोमा (Prolactinoma) कहते हैं। प्रोलैक्टिनोमा में जब प्रोलेक्टिन नाम के हॉर्मोन का स्तर बढ़ जाता है तब पिट्यूटरी ग्लैंड में ट्यूमर बनता है लेकिन यह कैंसर नहीं होता। इस वजह से पीरियड्स नियमित नहीं रहते और महिला इनफर्टिलिटी की दिक्कत झेलती है। इसके अलावा ब्रेन ट्यूमर हो या किसी महिला को थायरॉइड हो तब भी निप्पल्स से मिल्की डिस्चार्ज होने लगता है।

शरीर में हो रहे बदलावों से रंग बदलते हैं निप्पल्स

महिलाओं के शरीर में हॉर्मोन्स का उतार-चढ़ाव चलता रहता है जो उनकी ब्रेस्ट और निप्पल्स पर असर डालता है। निप्पल्स के आसपास का घेरा जिसे अरेओला (Areola) कहते हैं, यह शरीर में हो रहे बदलावों से रंग बदलता है। अगर कोई महिला मेनोपॉज या प्रेग्नेंसी के दौर से गुजर रही है तो निप्पल टाइट और आसपास का एरिया गहरा भूरा हो जाता है। इसकी वजह हॉर्मोन्स का लेवल बढ़ना होता है। ब्रेस्ट कैंसर में अरेओला का रंग संतरे के छिलके जैसा लगता है।

अधिकतर मां गलत तरीके से कराती हैं ब्रेस्ट फीडिंग, निप्पल्स होते हैं क्रैक

दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल में डॉ. मंजू वाली के अनुसार निप्पल हेल्थ में ब्रेस्ट फीडिंग बहुत जरूरी है। अक्सर दूध पिलाने वाली मां को क्रैक निप्पल्स की दिक्कत होती है क्योंकि उनका ब्रेस्ट फीडिंग का तरीका ही गलत होता है। ब्रेस्ट फीडिंग में निप्पल्स और अरेओला बच्चे के मुंह में जाना चाहिए। लेकिन मां केवल बच्चों के मुंह में निप्पल डाल देती हैं। बच्चे के मसूड़े निप्पल को क्रैक कर देते हैं।

ऐसे में मां को हर बार ब्रेस्ट फीडिंग के बाद निप्पल्स को अच्छे से धोना चाहिए और उसके ऊपर दवा लगानी चाहिए जिससे त्वचा रूखी होकर क्रैक न हो। लेकिन जब बच्चे को दोबारा दूध पिलाना हो तब दवा को अच्छे से साफ कर लेना चाहिए।

बच्चा ठीक से दूध न पिए तो निप्पल्स में पड़ जाता है पस

डॉ. मंजू कहती हैं कि जब बेबी सही तरीके से दूध नहीं पीता तो दूध के जमा होने से इन्फेक्शन हो जाता है। इसी वजह से निप्पल्स में पस तक पड़ जाता है जिसे ‘एबसेस’ कहते हैं। ये खतरनाक कंडीशन होती है। इसमें ऑपरेशन करके दूध को बाहर निकाला जाता है।

लेबर पेन का निप्पल से कनेक्शन

डॉ. रितु कहती हैं कि जो प्रेग्नेंट महिलाएं डिलीवरी के लिए पहुंचती हैं लेकिन उन्हें लेबर पेन शुरू नहीं हो रहे होते हैं तो उन्हें निप्पल्स को दबाने के लिए कहा जाता है। इससे लेबर पेन शुरू हो जाते हैं। दरअसल निप्पल में उत्तेजना (Stimulation) होने से बच्चेदानी सिकुड़ने लगती हैं और लेबर पेन होने लगता है।

वहीं, इन्हें छूने से ऑक्सिटॉक्सिन नाम का हॉर्मोन रिलीज होता है जो यूट्रस को सिकुड़ने में मदद करता जिससे बच्चे का बाहर आना आसान हो जाता है और यूट्रस सिकुड़कर अपनी नॉर्मल शेप में आ जाता है। डिलीवरी के बाद नवजात को ब्रेस्ट फीडिंग कराई जाती है तब भी मां के शरीर में ऑक्सिटॉक्सिन का लेवल बढ़ जाता है।

ओव्यूलेशन के समय उभर जाते हैं निप्पल्स

हर महीने पीरियड्स के बाद महिलाओं की ओवरी से एग रिलीज होता है। इसे ओव्यूलेशन कहा जाता है। यह मेंस्ट्रुएशन साइकिल का हिस्सा है। कुछ रिसर्च में यह सामने आया कि ओव्यूलेशन के दौरान हॉर्मोन्स का बैलेंस बिगड़ जाता है जिससे एस्ट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है और निप्पल्स सख्त होकर उभरने लगते हैं।

इसके अलावा मेनोपॉज के दौरान भी ऐसा हो सकता है। जो महिलाएं पोस्ट मेंस्ट्रुएशन सिंड्रोम की शिकार होती हैं यानी पीरियड्स के बाद पेट में दर्द, अपच, मसल्स पेन, ब्लोटिंग हो तब भी उनके निप्पल हार्ड हो जाते हैं।

इन वजहों से हो सकता है निप्पल्स में दर्द

कुछ लड़कियों और महिलाओं को पीरियड्स से पहले या प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में निप्पल्स में दर्द होता है। वहीं, कुछ महिलाएं मेनोपॉज के दौरान ब्रेस्ट में दर्द की शिकायत करती हैं लेकिन वह दर्द मसल्स का होता है। यानी ब्रेस्ट के नीचे की पसलियों में दर्द होता है।

निप्पल से मिल सकता है ऑर्गेज्म

संबंध बनाने के दौरान निप्पल्स बहुत अहम माने जाते हैं। यह स्त्री के शरीर का संवेदनशील भाग हैं, जिसे छूने से शरीर में उत्तेजना बढ़ती है।

जर्नल ऑफ सेक्शुअल मेडिसिन में छपी एक स्टडी के अनुसार कई महिलाओं को निप्पल्स से ऑर्गेज्म मिलता है जिससे उन्हें संतुष्टि मिलती है।

निप्पल कैंसर यानी पेजेट बीमारी

निप्पल्स से जुड़ी पेजेट बीमारी कुछ महिलाओं में देखी जाती है। इसमें निप्पल का रंग बदलने लगता है। निप्पल्स पर रैश हो जाते हैं जो एग्जिमा जैसा दिखता है। निप्पल्स के आसपास की पूरी स्किन लाल हो जाती है। ऐसा कम मामलों में देखा जाता है लेकिन यह ब्रेस्ट कैंसर का लक्षण होता है जो निप्पल के पीछे के टिश्यू में होता है।

सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (CDC) के अनुसार यह दुनियाभर में 4% महिलाओं में ही देखने को मिलता है।

निप्पल टेप और कवर का बढ़ता चलन

यंग गर्ल्स, मॉडल्स और एक्ट्रेस अक्सर बैकलेस या स्ट्रैपलैस ड्रेसेज के साथ निप्पल टेप या कवर यूज करती हैं। इसे लगाने के बाद ब्रा पहनने की जरूरत नहीं होती है। लेकिन इसे इस्तेमाल करने से पहले पैच टेस्ट जरूरी है। थोड़ा-सा टेप 24 घंटे के लिए ब्रेस्ट पर लगाएं और बाद में हल्के हाथों से निकालें। अगर खुजली न हो तो ही इसका इस्तेमाल करें। टेप लगाने से पहले निप्पल्स को साफ और सूखा रखें। तेल या मॉइश्चराइजर भी न लगाएं। टेप 6 घंटे से ज्यादा न लगाएं। टेप को गीला करने के बाद हल्के हाथों से इसे रिमूव करें। इसे हटाने के लिए टेप रिमूवर भी आते हैं। इसके लिए रिमूवर को 5 मिनट तक टेप पर रखें और निकाल लें।

वहीं, निप्पल कवर सिलिकन से बने होते हैं जो स्किन कलर के ही होते हैं। ये वॉशेबल होते हैं जो धोने के बाद दोबारा यूज किए जा सकते हैं। यह अपने आप निप्पल्स से चिपक जाते हैं। निप्पल कवर 8 घंटे से ज्यादा नहीं पहनने चाहिए। ये वॉटरप्रूफ होते हैं जो पसीना आने के बाद भी नहीं हटते। डॉक्टर्स के अनुसार ये प्रोडक्ट सेफ हैं।

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