संपत्ति का वसीयतनामा क्यों जरूरी?

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लेखक: एडवोकेट योगेश चंद्र भट्ट, लखनऊ, मूलतः प्रतापगढ़ जिले से

एडवोकेट योगेश चंद्र भट्ट, लखनऊ

मैं लखनऊ में एडवोकेट हूं तो मैं समय समय पर कानून की कुछ बारीकियों की जानकारी देना चाहूंगा जिससे समाज के हर प्रगतिशील व्यक्ति को लाभ हो। आज पहली बार, केवल वसीयतनामा की बात करूंगा।

वसीयत एक ऐसा अभिलेख या दस्तावेज है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद अपनी अर्जित संपत्ति की उचित व्यवस्था के लिए विश्वस्त संबंधी या शुभेच्छु को नामित करता है ताकि उसकी गैरमौजूदगी में उसकी संपत्ति किसी भी प्रकार के विवाद में ना पड़े और सही व्यक्ति को प्राप्त हो।

भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 3 में वसीयत अर्थात इच्छा पत्र को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। वसीयतकर्ता अपनी संपत्ति के बारे में ऐसा अभिलेख निष्पादित करता है जिसमें उसकी मृत्यु के उपरांत लागू किए जाने की वह इच्छा रखता है अथवा संपत्ति का उत्तराधिकारी तय करता है।

वसीयत कर्ता के विधिक प्रतिनिधि किसी वसीयत के पंजीकरण के विरुद्ध उसे मिथ्या अथवा जाली होने की बात करते हुए आपत्ति दाखिल करने के लिए सक्षम नहीं है। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 में वसीयत संबंधी योग्यताओं का वर्णन किया गया है जिसके अनुसार कोई भी स्वस्थ और वयस्क व्यक्ति स्वयं द्वारा अर्जित की गई संपत्ति की वसीयत कर सकता है।

कोई भी स्त्री स्वयं द्वारा अर्जित की गई संपत्ति का भी वसीयतनामा कर सकती है। वसीयत के संदर्भ में स्त्री और पुरुष में कोई भी अंतर नहीं है। यहां महत्वपूर्ण केवल यह बात है कि वह संपत्ति स्वयं द्वारा अर्जित की गई की गई हो।

वसीयत कर्ता द्वारा एक बार वसीयत करने के उपरांत उस वसीयत को वह अपनी मृत्यु तक कभी भी वापस ले सकता है, उसमें बदलाव कर सकता है और अपने द्वारा की गई वसीयत को पुनः किसी भी व्यक्ति के पक्ष में निष्पादित कर सकता है।मिथ्या छल और कपट इत्यादि से प्राप्त की गई वसीयत को चुनौती दी जा सकती है मुकदमेबाजी से बचने के लिए वसीयत का रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है।

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