कोरोना के कारण भारत में 32 करोड़ विद्यार्थियों की शिक्षा प्रभावित

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महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल की सरकार ने यूजीसी एक्ट के तहत सेक्शन 12 को अंकित करते हुए कहा कि यूनिवर्सिटी के बच्चों को उत्तीर्ण करना कमीशन की ज़िम्मेदारी है परन्तु यूजीसी को यूनिवर्सिटीज से भी परामर्श करना चाहिए, राज्य सरकारों ने इस दिशानिर्देश को वैधनिक नहीं बल्कि कार्यकारी आदेश बतलाया।

निशा शर्मा/खबर इंडिया संवाददता   

कोविड-19 महामारी ने पूरे विश्व को हिलाकर र दिया है। अभी तक भारत में 49,30,236 कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं जिनमें से 38,59,399 लोग ठीक भी हो चुके हैं परन्तु इसने भारत की सिर्फ अर्थव्यवस्था पर ही असर नहीं किया इससे भारत की शिक्षा व्यवस्था को भी अस्त-व्यस्त कर दिया है। तकरीबन 6 माह  से भारत के सभी शिक्षण संस्थान बंद है और शिक्षा को पूर्ण रूप से डिजिटल कर दिया गया है।

कोरोना महामारी के कारण भारत में लगभग 32 करोड़ छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई है जिसमें 15.81 करोड़  लड़कियाां और 16.25 करोड़ लड़के शामिल है। वैश्विक स्तर की बात करे तो, इस महामारी से दुनिया के 193 देशों के 157 करोड़ छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई है। जो विभिन्न स्तरों पर दाखिला लेने वाले छात्रों का 91.3 प्रतिशत है। पहली बार भारत में 10वीं और 12वीं के छात्रों को कुछ विषय की परीक्षा दिए ही उत्तीर्ण करना पड़ा शुरुआत में परीक्षा को कुछ समय के लि टाल दिया गया परन्तु समय की गंभीरता को समझते हुए यु जी सी ने परिणाम निकालने का निर्णय लिया स्कूलों के साथसाथ विश्वविद्यालय भी कोरोना की चपेट में गए है। तकरीबन 5 माह से स्कूल और कॉलेजों की पढ़ाई ऑनलाइन हो रही है।

6 जुलाई 2020 को यूजीसी ने विश्वविद्यालयों की परीक्षा के लिए निर्णय लिया जिसमें अंतिम वर्ष के छात्रों के अलावा सभी वर्ष के छात्रों को उनकी इंटरनल असेसमेंट के आधार पर उतीर्ण कर दिया जाएगा लेकिन अंतिम वर्ष के छात्रों को परीक्षा देना अनिवार्या है। इस दिशा निर्देश के खिलाफ छात्रों और विश्वद्यालयों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दर्ज की। उन्होंने इसका विरोध करते हुए कहा कि छात्रों के पास ऑनलाइन परीक्षा के लिए पर्याप्त साधन नहीं है। वहीं विश्वविद्यालयों ने ऐसे समय ऑफलाइन परीक्षा का होना खतरे से परिपूर्ण बतलाया। यूजीसी ने अपने इस दिशा निर्देश में कहा कि सितम्बर अंत तक अंतिम वर्ष की परीक्षा करवाना सभी विश्वविद्यालयों के लिए अनिवार्य है।

शिक्षा के क्षेत्र में भारत का 2020 का वार्षिक बजट सबसे बेहतर व रिकॉर्ड बजट रहा। इस साल केंद्र सरकार ने शिक्षा पर व्यय होने वाले बजट को पिछले साल की तुलना में 4,500 करोड़ रुपये तक बढ़ाकर 99,312 करोड़ रुपये कर दिया है। ऐसी स्थिति में कोरोना से छात्रों की पढ़ाई पर कोई नकारात्मक प्रभाव ना पड़े, इसके लिए केंद्र सरकार व राज्य सरकारें काम कर रही है। सीबीएसई ने एक हेल्पलाइन टोल फ्री नम्बर जारी कर दिया है, जिसके जरिये विद्यार्थी घर बैठकर अधिकारियों से बात करके सहायता ले सकता है। सरकार ने 12वीं तक की सभी पुस्तकों को ऑनलाइन कर दिया है । ताकि इन सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों को पढ़ाई करने के लिए सामग्री मिलने में कठिनाईयों का सामना ना करना पड़े।

महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल की सरकार ने यूजीसी एक्ट के तहत सेक्शन 12 को अंकित करते हुए कहा कि यूनिवर्सिटी के बच्चों को उत्तीर्ण करना कमीशन की ज़िम्मेदारी है परन्तु यूजीसी को यूनिवर्सिटीज से भी परामर्श करना चाहिए। राज्य सरकारों ने इस दिशानिर्देश को वैधनिक नहीं बल्कि कार्यकारी आदेश बतलाया। यूजीसी ने अपनी आफै देते हुए कहा की बिना परीक्षा के छात्रों को डिग्री देना अनुचित है।

28 अगस्त 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एम आर शाह की बेंच ने इस मुद्दे पर फैसला देते हुए कहापरीक्षा का होना जरुरी है ताकि छात्रों के शैक्षणिक भविष्य की रक्षा करने के लिए परीक्षा के बिना डिग्री नहीं दी जा सकती। जस्टिस अशोक भूषण ने कहा की यदि राज्यों को लगता है कि यूजीसी के अंतिम दिन तक परीक्षा करने में सक्षम नहीं है तो वह यूजीसी से नई तारीख के लिए परामर्श कर सकते हैः। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यूनिवर्सिटीस परीक्षाओ को आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत विलंब कर सकती है। अब देखना है कि महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों में विश्वविद्यालय उन बच्चों के लिए क्या करेंगे जो बिहार या पश्चिम बंगाल से हैं जहाँ पर बाढ़ और चक्रवात की परिस्थिति से जूझ रहे हैं और उनके इलावा उन बच्चो को क्या जो गरीबी रेखा के नीचे स्त्तर से है जिनका अपनी फीस भरना ही बहुत बड़ी बात है वह किस प्रकार से इसका विकल्प निकलेंगे

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