अथ योगानुशासनं।।- पातंजल योग सूत्र (1ली किश्त)

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आम लोगों के लिये योग का अर्थ आसनों व प्राणायाम के अभ्यास तक सीमित है।टीवी पर योगी बाबा सिखाते हैं सांस लो और बीच में बिजली चली जाये तो कल छोड़ना। यथार्थ में अपने कार्य को कुशलतापूर्वक करने वाला हर व्यक्ति योगी है। आगे की किश्तों में अष्टांग योग और हठ योग की मानव स्वास्थ्य के उद्देश्य के साथ चर्चा होगी।

अनामिका राजे/नई दिल्ली
वृहत् विश्व परिवार का आह्वान करते हुए मैं आज योग विषय पर प्रथम किश्त सभी सहृद जनों की सेवा में प्रस्तुत कर रही हूँ। आग्रह है कि यदि योग विषय में आपकी रुचि है तो इसे पूरा जरूर पढें और यदि नहीं है तब तो अवश्य ही पढें।
योग क्या है?
योग: कर्मसु कौशलम।।
यह योगेश्वर श्रीकृष्ण प्रदत्त शाश्वत ज्ञान है।
महर्षि पतंजलि की तपस्या का सार है।
मीरा और राधा का प्रेम योग है।
तुलसी और सूर की भक्ति योग है।
यशोदा का निष्काम वात्सल्य योग है।
उर्मिला और यशोधरा का महान त्याग योग है।
बुद्ध की निस्पृह घोर तपस्या योग है।
अस्तु, योग सनातन की जीवन शैली और आत्मा है।
जीवन को उद्देश्य से जोड़ने वाला माध्यम योग है।
योग के व्याख्यान में गीता बन गयी और योग के मात्र एक स्वरूप ‘हठयोग ‘पर लिखे गये अनेक ग्रंथ आज मार्गदर्शन कर रहे हैं।
अब हठ का हठ यह है कि हठ को हठात समझना होगा। पर चिंता न करें, उलझे हुए को सुलझाने में मेरा अच्छा अभ्यास है।
अष्टांग योग के 8अंग –
#यम
#नियम
#आसन
#प्राणायाम
#प्रत्याहार
#धारणा
#ध्यान
#समाधि
किन्तु सामान्य जन के लिये योग का अर्थ मात्र आसनों व प्राणायाम के अभ्यास तक सीमित है। टीवी पर योगी बाबा सिखाते हैं सांस लो और बीच में बिजली चली जाये तो कल छोड़ना। यथार्थ में अपने कार्यों को कुशलतापूर्वक करने वाला प्रत्येक व्यक्ति योगी है। यदि विद्यार्थी जीवन में मेरे लगनपूर्वक लिखे गये शोध कार्यों का आज भी शिक्षण में प्रयोग होता है या फिर बैंक में मेरे प्रयासों से भ्रष्टाचार मुक्त तेज सेवा देने की कार्य प्रणाली बलवती हुई तो मैं संतुष्टि के साथ कह सकती हूँ की निष्काम कर्म योग का मेरा मार्ग प्रशस्त रहा।
आज मैं स्वयं को गृहस्थ योग साधक मानती हूँ और दृढ़ विश्वास के साथ कह सकती हूँ कि हमारा समाज कर्म योगियों, ज्ञान योगियों, गृहस्थ योगियों आदि से भरा पड़ा है। आगे की किश्तों में अष्टांग योग और विशेष रूप से हठ योग की मानव स्वास्थ्य के उद्देश्य के साथ चर्चा होगी।
तब तक सांस लेते और छोड़ते रहें।
हरि ओम।।

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