चीन ही नहीं, भारत, इंडोनेशिया कहीं भी अगला विषाणु प्रकट हो सकता: डॉ स्कन्द

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इंटरनेट पर शी व उनकी प्रयोगशाला को बदनाम करने की एक पूरी मुहिम चलायी गयी। यह दुष्प्रचारित किया गया कि वर्तमान सार्स-सीओवी 2 विषाणु उनकी प्रयोगशाला से ‘लीक’ हुआ है जबकि इस विषाणु का जेनेटिक सीक्वेंस उनकी प्रयोगशाला के किसी पूर्व-ज्ञात कोरोनाविषाणु से मेल खाता ही नहीं

डॉ स्कन्द शुक्ल/लखनऊ

Dr Skand Shukla
“चमगादड़ों में कोरोनाविषाणुओं की लगभग पाँच हज़ार प्रजातियाँ मौजूद हैं। वे हम-तक पहुँचें , इससे बेहतर होगा कि हम पहले ही उन-तक पहुँच जाएँ।” शी जेंगली एक निश्चिन्त ठहराव -भरे स्वर में कहती हैं।
इंटरनेट पर शी व उनकी प्रयोगशाला को बदनाम करने की एक पूरी मुहिम चलायी गयी। यह दुष्प्रचारित किया गया कि वर्तमान सार्स-सीओवी 2 विषाणु उनकी प्रयोगशाला से ‘लीक’ हुआ है जबकि इस विषाणु का जेनेटिक सीक्वेंस उनकी प्रयोगशाला के किसी पूर्व-ज्ञात कोरोनाविषाणु से मेल खाता ही नहीं। दुनिया-भर के शीर्षस्थ वैज्ञानिकों ने इस बात का खण्डन किया और कहा कि शी की प्रयोगशाला की गुणवत्ता हर मामले में विश्वस्तरीय है।
बदनामी के बाद भी अपना शोध जारी रखेंगी।: शी-जैसे वैज्ञानिक चमगादड़ों को पकड़कर उनके रक्त, लार, मूत्र व मल के नमूने एकत्र करते और उनमें विषाणुओं की तलाश करते हैं। इंटरनेट पर अपनी झूठी बदनामी के बाद भी वे चमगादड़ों और उनमें पाये जाने वाले कोरोनाविषाणुओं पर अपना शोध जारी रखेंगी। समूचे चीन की अँधेरी बदबूदार गुफ़ाओं में रह रहे चमगादड़ों की विषाणु-सैम्पलिंग की जाएगी। उन्हें आज भी दिसम्बर 30 की वह शाम याद है। सात बज रहे थे , जब वूहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी के निदेशक का उनके पास फ़ोन आया था। “जो भी कर रही हो , छोड़कर तुरन्त इस समस्या से निबटो !” उन्होंने कहा था। शी उस समय शंघाई एक कॉनफेरेन्स में थीं , तुरन्त वे पहली ट्रेन पकड़ कर वूहान की ओर चल दीं जहाँ दो एटिपिकल न्यूमोनिया के नमूने उनका जाँच के लिए इंतज़ार कर रहे थे।
कहीं यह पुराना सार्स ही तो नहीं: रास्ते-भर उनके मन में विचार चलते रहे। कहीं ये हमारी लैब से तो नहीं निकले हैं ? उन्हें नये कोरोनाविषाणु के वूहान से निकलने की बात अजीब लगी थी। वूहान मध्य चीन में है और उनका अंदाज़ा था कि अगर कभी नया कोरोनाविषाणु फैला तो वह दक्षिणी चीन में ही उभरेगा। कहीं यह पुराना सार्स ही तो नहीं? यह दरअसल है क्या !
शी ने लैब के नमूनों से छेड़छाड़ की जाँच की। पिछले जितने कोरोनाविषाणुओं पर काम किया था , उनमें से किसी से यह नया विषाणु मेल नहीं खाता था। जल्द ही उन्होंने जान लिया कि यह एकदम नया कोरोनावायरस है। सार्स-सीओवी 2 नाम दिया गया इसे। उन्होंने आख़िरकार चैन की साँस ली , लगा जैसे सीने से कोई बोझ हट गया हो। “न जाने कितने दिन मैं चैन से सो नहीं पायी थी !” वे कहती हैं।
आशंका बनी रहेगी: विकासशील देशों में इस तरह की नयी विषाणु-जन्य बीमारियों के उभरने की आशंका बनी रहेगी। चीन ही नहीं , भारत , इंडोनेशिया , नायजीरिया कहीं भी अगला नया विषाणु प्रकट हो सकता है। इन देशों में ख़ूब जंगल काटकर सड़कें बन रही हैं , बाँध बनाये जा रहे हैं। घनी इंसानी आबादी जंगलों को रिहाइश के लिए काट रही है , खनन का काम जारी है।
ख़तरा बना रहेगा: बाज़ार का अपना दबाव है, लोगों की अपनी आदतें हैं। प्रतिबन्ध लगाने से व्यापारी और लोग वही काम छिपकर करने लगते हैं। इसलिए जब तक जनता की सोच नहीं बदलेगी और जंगली मांस की मण्डियाँ बन्द नहीं होंगी, ख़तरा बना रहेगा। इतना ही नहीं, पालतू जानवरों सूअरों, मुर्गियों व अन्य से भी नये-नये विषाणु मनुष्यों में आ सकते हैं। ऐसे में बहुत-कुछ बहुत व्यापक स्तर पर करने की ज़रूरत है। व्यक्ति, परिवार और समाज तीनों स्तरों पर।
कॉन्सपिरेसी-प्रेमियों को विज्ञान से प्रेम नहीं। उन्हें बस एक बलि का बकरा चाहिए , जिसके मत्थे वे किसी भी समस्या का दोष मढ़ कर मानसिक तौर पर मुक्त हो जाएँ। उनकी दिलचस्पी विज्ञानपरक समाधान में न पहले थी , न आगे होगी।
इच्छुक मित्र साइंटिफिक अमेरिकन का यह ज्ञानपरक लेख पढ़ सकते हैं।

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