कोरोना तो बदल देगा दुनिया की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था

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इस भीषण दुर्लभ और अत्यंत क्रूर संक्रामक बीमारी पर नियंत्रण का आज न कल टीका अथवा दवा निश्चय ही विकसित कर पूरी दुनिया चैन की सांस लेगी। तब तक बहुत कुछ का विध्वंस हो चुका रहेगा

श्याम किशोर चौबे/रांची  

लेखक: श्याम किशोर चौबे, रांची

अबतक के सर्वाधिक घातक अति सूक्ष्म परजीवी विषाणु कोरोना जनित कोविड-19 महामारी पर नियंत्रण फिलहाल विश्व की सबसे बड़ी चुनौती है। एक से लाख में फैलने वाले इस भीषण दुर्लभ और अत्यंत क्रूर संक्रामक बीमारी पर नियंत्रण का आज न कल टीका अथवा दवा निश्चय ही विकसित कर पूरी दुनिया चैन की सांस लेगी। तबतक बहुत कुछ का विध्वंस हो चुका रहेगा। अभी ही कौन सा कम विनाश हो चुका है? स्वास्थ्य सुरक्षा और निदान मामलों में दुनिया के जाने-माने अमेरिका, इटली, स्पेन, इंग्लैंड जैसे देश तो तबाह हो चले हैं, बाकी की गिनती ही क्या? हां, यह अवश्य माना जाना चाहिए कि एक तो संसाधनों की कमी और दूसरे स्वास्थ्य मामलों में बेहद लापरवाह रहने वाले हमारे देश भारत को अपेक्षाकृत बहुत कम नुकसान हो पा रहा है। कारण? समय रहते केंद्र सरकार सजग हो गई। साथ ही साथ राज्यों ने भी कदम उठाये। जबतक चीन से निकलकर कोविड-19 भारत में अपने खूनी पंजे फैलाता, तबतक चीन के वुहान आदि शहरों सहित इटली, स्पेन आदि में तबाही के मंजर सामने आने लगे थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने इस खतरे की आशंका भांपते हुए कतिपय आवश्यक उपाय प्रारंभ कर दिया था। यात्राओं पर प्रतिबंध, हाथ की लगातार सफाई, माउथ मास्क का उपयोग, सेनेटाइजर का इस्तेमाल, एक-दूसरे से दूरी बनाकर रहने की प्रवृति पर अमल शुरू कर दिया गया था। सोने पर सुहागा की मानिंद प्रधानमंत्री ने दो दिन के अंतराल पर 22 और 24 मार्च को प्रारंभ में एक दिन और अंततः 21 दिनों का लाॅकडाउन लागू कर देश को एक तरह से बचा लिया।

आज की तारीख में निश्चय ही यह सबसे गंभीर और विचारणीय मसला है कि कोविड-19 से कैसे निजात पाई जाय। अभी विकास और देश के सर्वाधिक लोकप्रिय विषय राजनीति की कोई चर्चा तक नहीं करता। यह ऐसा आपदकाल है, जिसमें सभी एक ही दिशा में सोच रहे हैं। थोड़ा आगे बढ़कर सोचने का यही समय है कि कोविड-19 पर नियंत्रण के बाद क्या होगा? जब साइकिल, रिक्शा से लेकर रेल, हवाई जहाज तक बंद हों, सरकारी दफ्तरों से लेकर अदालतों तक प्रायः सन्नाटा पसरा हो, गली-कूचे से लेकर बाजार तक वीरानी झेल रहे हों, जेल से कैदी पैरोल पर ही सही-छोड़े जा रहे हों, उत्पादक फैक्टरियों से लेकर उद्योग-व्यवसाय ठप हो चले हों, शादियां रूक गई हों, घर में एक व्यक्ति के छींकने या खांसने से परिवार आशंकित हो जाता हो, अपराधी-नक्सली सकते में हों, हर कोई अपने घर के दरवाजों के हैंडल तक छूने में आशंका से भर जाता हो तो इस विकट काल की समाप्ति के बाद क्या होगा?

यह बाढ़ या दुर्भिक्ष से कई-कई गुणा अधिक विषम परिस्थिति है, जिससे प्रायः पूरा भू-मंडल दुष्प्रभावित है। बाढ़ या दुर्भिक्ष से पृथ्वी का कोई कोना प्रभावित होता है। उसी से हाहाकार मच जाता है। यहां तो ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि हर आदमी अपनी जान को ही लेकर चिंतित है। इससे उबरना आसान नहीं होगा।

कोरोना इफेक्ट से बचाव का जो सोशल डिस्टेंसिंग का तरीका सामने आया है, उसका सबसे घातक दूरगामी मनोवैज्ञानिक प्रभाव झेलने के लिए समाज को तैयार रहना चाहिए। इसके अलावा प्रत्यक्ष तौर पर जो आर्थिक बंदी सामने आ रही है,
वह दुनिया की अर्थ-व्यवस्था बदलकर रख देगी।
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(31 मार्च 2020 की अभिव्यक्ति)

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