कोविड-19 : योग है तो बल है: किशोर

0
816

अमेरिका कोरोनावायरस का वैश्विक केंद्र बना हुआ है। लोग सदमें में हैं। कई लोग आत्महत्या तक कर चुके हैं। प्रतिष्ठित हार्वर्ड मेडिकल स्कूल को लोगों को सदमें से उबारने के लिए योग का सहारा लेने की सिफारिश करनी पड़ी है।

किशोर कुमार/पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक 

हमारे जीवन में योग सिद्ध क्यों नहीं हो पाता? क्यों ऐसा होता है कि आसन, प्राणायाम और ध्यान के अभ्यासों के बावजूद इच्छित फल नहीं मिल पाता? ये सवाल आज के माहौल में बेहद प्रासंगिक हैं। इसलिए कि कई लोग, जो योगमय जीवन जीने का दावा करते थे, कोविड-19 यानी कोरानावायरस की चपेट में आ गए। पड़ताल हुई तो पता चला कि जिसे योगमय जीवन समझा जा रहा था, वह वास्तव में योगमय जीवन था ही नहीं।
यम-नियम योगविद्या का आधार है। प्राथमिक शिक्षा है। इसके बाद श्वास पर नियंत्रण की बारी आती है। इनकी अनदेखी करके योग की कुछ क्रियाओं के अभ्यास से योग सिद्ध नहीं हो सकता। महर्षि पतंजलि ने राजयोग के अभ्यासों को सिद्ध करने के लिए कहा है कि पहले पांच यमों और पांच नियमों की साधना की जानी चाहिए। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपिग्रह ये पांच यम हैं। शौच, संतोष, तप, स्वध्याय और ईश्वर प्रणिधान ये पांच नियम हैं। बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं– “एक यम और एक नियम को भी हम सिद्ध कर लें तो वही योग की डिग्री है।“ पर व्यवहार रूप में ऐसी साधना न किसी मरीज ने की थी और आमतौर पर की जाती।
शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहना पड़ा कि कोविड-19 से बचाव में प्राणायाम भी काम नहीं आने वाला। वे योग को बेहतर समझते हैं। फिर भी ऐसी बात की तो इसकी वजह समझना मुश्किल नहीं। उन्हें पता है कि हम जिसे योगमय जीवन समझते हैं, वास्तव में वह है नहीं। बावजूद खुद प्रधानमंत्री और भारत के लब्धप्रतिष्ठित योगी कह रहें हैं कि योग करो तो उसकी खास वजहें हैं। पहला तो यह कि रोग प्रतिरोधक क्षमता ठीक रहेगी तो वायरस लगा भी तो ठीक होने की संभावना ज्यादा रहेगी। अनेक देशों में ऐसे उदाहरण हैं। दूसरी बात यह है कि मन को नियंत्रित करने वाले योगाभ्यासों से विश्वव्यापी संकट के सदमों से उबरना आसान रहेगा।
अमेरिका कोरोनावायरस का वैश्विक केंद्र बना हुआ है। लोग सदमें में हैं। कई लोग आत्महत्या तक कर चुके हैं। प्रतिष्ठित हार्वर्ड मेडिकल स्कूल को लोगों को सदमे से उबारने के लिए योग का सहारा लेने की सिफारिश करनी पड़ी है। उसने अपने ताजा दिशा-निर्देश मे कहा है कि अवसाद और तनाव से मुक्ति के लिए योग, ध्यान और श्वास नियंत्रण के अभ्यास आजमाए हुए और वास्तविक तरीके हैं। दूसरी तरफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक ने खुद लोग से अपील की है कि वे रोग प्रतिरोधी क्षमता बनाए रखने और अवसाद से बचने के लिए योग का सहारा लें।
इसमें दो मत नहीं कि मौजूदा हालात में नए योगाभ्यासियों के लिए योगानुशासन के लिए लंबा वक्त नहीं है। उन्हें तात्कालिक संकट को ध्यान में रखकर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और मानसिक तनावों से मुक्ति पाने के लिए कुछ आसन, कुछ प्राणायाम और कुछ शिथलीकरण के अभ्यास अनिवार्य रूप से करने होंगे। ऐसे में सूर्यनमस्कार, नाड़ी शोधन प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम, कपालभाति प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम और योगनिद्रा का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए। सोशल डिस्टेंसिंग के जमाने में भारत सहित पूरी दुनिया में ऑनलाइन योगा की धूम है। किसी योग्य योगाचार्य के विडियो को देखकर साधना की जा सकती है।
योग की लगभग सभी महत्वपूर्ण विधियों पर वैज्ञानिक अनुसंधान हो चुका है। अब तो शरीर और मन के विभिन्न आयामों पर योग के प्रभावों पर शोध होता है। सूर्य नमस्कार पर टोरंटो यूनिवर्सिटी और पांडुचेरी स्थित श्रीबालाजी विद्यापीठ के सेंटर फॉर योगा थेरेपी, एडुकेशन एंड रिसर्च ने शोध किया तो पता चला कि सूर्य नमस्कार से पल्मोनरी फंक्शन सही रहता है। श्वसन दबाव और तनावों में कमी आती है। हृदयाघात की संभावना कम होती है। जो लोग नियमित सूर्य नमस्कार करते हैं, उनका अनुभव भी यही है कि इससे बढ़कर कोई अन्य स्वास्थ्यवर्द्धक साधन नहीं है। जो लोग बहुत से आसनों, प्राणायामों और मुद्राओं के चक्कर में न पड़ना चाहते हों उन्हें सूर्य नमस्कार विधिपूर्वक नियमित करना चाहिए।
योगाचार्य आज के संदर्भ में प्राणायाम की मुख्यत: चार विधियों की अनुशंसा करते हैं, जिनका उल्लेख ऊपर है। स्वामी रामदेव की तरह स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान के कुलपति पद्मश्री एचआर नागेंद्र ने भी कपालभाति की जोरदार वकालत की है। ऐसा इसलिए कि इससे पाचन अंग शक्तिशाली होते हैं। मस्तिष्क का अग्रभाग रक्त की अधिक मात्रा से शुद्ध होकर ज्यादा सक्रिय होता है। फेफड़ा शुद्ध होता है व उसका विस्तार भी होता है। इससे श्वसन संस्थान अधिक सक्रिय होता है, जिससे विभिन्न प्रकार के विषाणुओं से लड़ना आसान होता है। मन को शांत और जागरूक बनाने के लिए यह शक्तिशाली विधि है। पर सोने से पहले इसका अभ्यास न करें। नींद में खलल पड़ सकती है।
 
पंजाब यूनिवर्सिटी के दो व्याख्याताओं डॉ टीएन सिंह और डब्ल्यू गीतारानी देवी की देखरेख में पंजाब की 24 छात्राओं के श्वसन तंत्र पर भस्त्रिका प्राणायाम के प्रभावों का अध्ययन किया गया। देखा गया कि उन छात्राओं के श्वास लेने की क्षमता में संतोषजनक वृद्धि हो गई थी। मौजूदा समय के लिए योग की दो क्रियाएं ऐसी हैं, जिन्हें किसी भी उम्र में आसानी से की जा सकती हैं। वे हैं – नाड़ी शोधन प्राणायाम और योगनिद्रा। बिहार योग विद्यलय के योग रिसर्च फाउंडेशन ने प्राणायाम की इस विधि पर शोध किया और पाया कि शरीर के त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ को संतुलित करके नाड़ी दोष दूर करने में यह प्राणायाम कारगर है। श्वास को अंदर रोकने की क्षमता में वृद्धि होती है। इससे श्वसन तंत्र भी ठीक से काम करता है। वैसे भी योग की किसी भी क्रिया को करने के लिए श्वास पर नियंत्रण जरूरी होता है।
 
तनाव को खत्म कर अनेक मानसिक बीमारियों से मुक्ति दिलाने में योगनिद्रा के चमत्कारों से अनेक लोग वाकिफ हैं। परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती इस अभ्यास को सबके लिए जरूरी बताते है। इसलिए कि योगनिद्रा के अभ्यास के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। यानी चेतना अंतर्मुखता और बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। चेतना के अंतर्मुख होते ही सभी प्रकार की उत्तेजनाओं, तनावों से मुक्ति मिल जाती है, जो कि सामान्य नींद की अवस्था में ऐसा कदापि संभव नहीं है।
 
महर्षि घेरंड ने कहा है कि योग के समान कोई अन्य बल नहीं है। इस बात को आज भी सर्वत्र स्वीकारा जा रहा है। मौजूदा समय में हम भले इसका आंशिक फायदा ले लें। पर स्मरण रहना चाहिए कि यम और नियम को आधार बनाए बिना खास मकसद से किया गया योगाभ्यास योगमय जीवन नहीं है।
 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here